बिलासपुर. आरक्षण के विरोध में कल का बंद इसलिए असफल हो गया क्यों कि ठीक एक दिन पहले आरएसएस कार्यकर्ताओं ने इससे अपना हाथ खींच लिया. सोशल मीडिया से उपजे इस आंदोलन को शुरू में BJP आईटीसेल ने काफी रसद भेजी लेकिन आखरी में सबने किनारा कर लिया.
आरक्षण के विरोध में आंदोलन जिन प्रदेशों में चुनाव होने हैं सूत्रों के अनुसार वहां जानबूझकर उसे कमजोर किया गया ताकि एससी-एसटी वर्ग को और उकसाने से बचा जा सके. एसटीएसी आंदोलन से बुरी तरह डैमेज भाजपा इस मसले को और तूल नहीं देना चाहती है.
बयानों से हुआ कन्फ्यूजन..
एससी-एसटी आंदोलन के बाद परंपरागत तरीके से राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बयान में आरक्षण खत्म करने पर जोर दिया. लेकिन बाद में एससी-एसटी आंदोलन की रिपोर्टस आंकलन करने के बाद मोदी- शाह की टीम आरक्षण के समर्थन में बयान देते और आम्बेडकर के भजन करने लगे. इससे आरक्षण विरोधी आरएसएस-भाजपाई कार्यकर्ता कन्फ्यूज हो गए.
तब तक बात दूर चली गई..
शीर्ष नेतृत्व में जब तक एक राय हो पाती तब तक सुपर फास्ट सोशल मीडिया ने 10 अप्रैल को भारत बंद का एलान कर दिया. इसमें आरएसएस, विहिप, बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ताओं के ग्रुप में दस को बंद की काली आईडी चस्पा कर दी गई. इन समूहों में आरक्षण विरोधी नारे,स्लोगन किस्से कहानियां BJP आईटी सेल से इन्जेक्ट की जाने लगी क्योंकि एक अरसे से एससी-एसटी को भाजपाई, कांग्रेस का वोट बैंक मानते रहे हैं.
सुर बदलने के ये कारण..
जब यह समझ आया कि भाजपा का हाल में तैयार हुआ हिन्दू वोट बैंक एससी-एसटी आंदोलन से दरक रहा है और भगवा छत्रछाया में आरक्षण विरोधी आंदोलन हुआ तो यह दरार और चौड़ी होगी. इसके बदले में भीम समर्थक पूरी तरह भाजपा से टूटेंगे ही नहीं अपने पुराने संरक्षक कांग्रेस के साथ शिफ्ट हो जाएंगे. ऐसा होने से बसपा और अन्य छोटे दलों में एससी-एसटी के वोट बंटने का लाभ भी हाथ से जाएगा.
आखिर में खींच लिया हाथ..
सियासत में जो न हो कम है. बरसों से राम-राम जपते हुए जो सवर्ण और पिछड़ा वर्ग भाजपा को साथ दे रहा है उसे आरक्षण विरोधी आंदोलन में साथ देने की बजाए ठीक एक दिन पहले रसद रोक दी गई. उन्हें संगठित कर जुलूस निकलवाने की तैयारी भी बीच में छोड़ दी गई. यहां सारी आईडी से काले रंग में भारत बंद की अपील भी एक दिन पहले से हटने लगी. हां इनके सवर्ण और ओबीसी समाजों ने अपने दम पर कहीं- कहीं जोर लगाया.