रायपुर.यह शीर्षक आपको चौंका सकता है, लेकिन जिस तरह से लोगों ने टीवी देखना बंद कर दिया है ठीक उसी तरह अखबारों को मंगाने और उन्हें बाटना बंद करने की मुहिम जल्द ही प्रारंभ हो सकती है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कतिपय बड़े अखबारों का जो चेहरा सामने आया है उसके बाद एक बड़ा वर्ग अखबार पढ़ना बंद करो मुहिम छेड़ने की तैयारी रहा है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि इस बार के चुनाव में एक पार्टी विशेष ने पानी की तरह पैसा बहाया है। पार्टी विशेष से मिलने वाले पैकेज की वजह से भ्रष्टाचार और अनियमितता को बेनकाब करने का ठेका लेकर चलने का दावा वाले अखबार भी चटाई लेकर लेट गए। खबरों का टोन बदल गया। हर तरफ शंख बजने लगा। हर तरफ से जय-जयकार। सारी खबरें जनभावनाओं के खिलाफ प्रकाशित की गई।
अब जबकि परिवर्तन की लहर चल पड़ी है तब अखबार के मालिक, सीईओ और विज्ञापन बटोरने के काम में लगाए गए लोग कांग्रेस के नेताओं को फोन- फोन कर- कर के बधाई दे रहे हैं। अन्यथा कल से पहले तो यहां विपक्ष एकजुट नहीं था। भूपेश बघेल और प्रदेश प्रभारी के बीच झगड़ा हो रहा था। बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच दूरियां बढ़ाई जा रही थी। कांग्रेस अपने अंर्तकलह से जूझ रही थी। अगर प्रदेश के पाठक पिछले पांच सालों के अखबारों को उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर खबरें चाटुकारिता को बढ़ावा देने वाली थीं। पिछले दो महीनों में तो स्तुतियों के रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए गए। अखबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी विशेष के लोगों ने राहुल गांधी की सभा और भाषण को ढंग से कवरेज न देने के लिए अखबार के मालिकों को विशेष पैकेज दिया था। राहुल गांधी ने कई मर्तबा पनामा पेपर को लेकर गंभीर बातें कहीं, लेकिन सारा कुछ मैनेज कर लिया गया। सब जानते हैं कि राजनांदगांव में राहुल गांधी ने जबरदस्त रोड़ शो किया था लेकिन पार्टी विशेष के दबाव के चलते रोड़ शो को ठीक से जगह नहीं मिली। एक गंभीर बात और… अखबार मालिकों ने पार्टी विशेष के लोगों को यह सुझाव भी दिया- हम राहुल गांधी के रोड शो की खबर केवल राजनांदगांव एडीशन में छापेंगे।
आप लोग राजनांदगांव में एडीशन बंटने मत दीजिएगा। वहीं हुआ भी… बाकी जगह तो खबर छपी नहीं और राजनांदगांव में एडीशन बंटा नहीं। यकीन मानिए अगर सोशल मीडिया नहीं होता तो शायद लोगों को कभी यह भी पता नहीं चलता कि राहुल गांधी छत्तीसगढ़ आए थे?
अब परिणाम आ जाने दीजिए… देखिएगा अखबार में एक से बढ़कर एक खुलासे होंगे। ( मतलब अखबार वाले अपनी तोपचंदी दिखाएंगे कि हम निष्पक्ष है और बड़े से बड़े लोगों को छोड़ते नहीं है।) याद करिए… वर्ष 2003 में जब जोगी सत्ता से बाहर हुए थे तब अखबार वालों की खबरों का स्तर कहां से कहां पहुंच गया था। कोई लिखता था- जोगी के बाथरूम में भी कैमरा मिला। किसी अखबार में पढ़ने मिलता था- जोगी का कुत्ता भी निकला जासूस।
स्मरण रहे- जो लेखक/ कवि/ पत्रकार खौफनाक और अंधेरे समय से मुठभेड़ नहीं करता…. इतिहास में उसकी हैसियत एक दलाल से ज्यादा की नहीं होती। जिस प्रकार से मुफ्त का सामान दे-देकर इस राज्य के लोगों को निकम्मा बना दिया गया ठीक उसी तरह से छत्तीसगढ़ के लेखक/ कवि-पत्रकारों को भी पंगु बनाने की दिशा में सरकार सफल रही हैं। छत्तीसगढ़ के अखबारों को घरों में बंद करने की योजना पर इसलिए भी विचार चल रहा है कि पंगु मार्गदर्शक नपुंसक समाज की स्थापना करेंगे। छत्तीसगढ़ की नई पीढ़ी और जिम्मेदार लोग कभी नपुंसक नहीं थे। आगे भी नहीं रहेंगे।
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