बिलासपुर.अचानकमार टाइगर रिजर्व का जंगल कुछ घनी आबादी के फैला हुआ है अचानकमार अभ्यारण को टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है शहर से दूर इस अभ्यारण्य के बीच केरहापारा नाम का एक गांव बसा है महामाई ग्राम पंचायत के आश्रित इस गांव के ग्रामीणों को पीने का पानी के लिए हर रोज दो चार होना पड़ता है पूरे साल ग्रामीण झिरिया खोदकर अपनी प्यास बुझाते है ग्रामीणों ने बताया कि पास ही एक हैंडपंप लगा हुआ है एक तो उसमें पानी नही आता और जो पानी निकलता भी है वह भी पीने योग्य नहीं है कई बार गांव के सरपंच और सचिव को ग्रमीणों ने अपनी समस्या सुनाई मगर कोई निराकरण करने को तैयार नहीं।
क्या कहते है जनप्रतिनिधी..
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के सरपंच और सचिव को जब भी पानी की समस्या बताई गई वो लोग अभ्यारण के विस्थापन का हवाला देकर उन्हें चलता कर देते हैं गांव तक जाने के लिए पहुच मार्ग का भी ना होना जनप्रतिनिधियों द्वारा ग्रामीणों को बोलने का बहाना मिल जाता हैं।
अचानकमार के जंगल पर एक नजर..
अचानकमार अभ्यारण की स्थापना सन 1975 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 के तहत की गई सतपुड़ा के 553.286 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस जंगल को 2007 में बायोस्फीयर घोषित किया गया वही जिसके बाद बाघों की चहलकदमी के बाद इसे टाइगर रिजर्व के नाम से भी जाना जाता है।