‘राजकुमार सोनी’
रायपुर. भले ही पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह खिसयानी बिल्ली खंबा नोचे मुहावरे को चरितार्थ करते हुए नई सरकार की हर जांच पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन हकीकत यह भी है गत पन्द्रह सालों में नौकरशाहों ने प्रदेश को लूटतंत्र के एक बड़े ठिकाने में तब्दील कर रखा था. जनता के गाढ़े खून-पसीने की कमाई पर सरकारी और गैर सरकारी डकैती का आलम यह रहा है कि अब हर विभाग से नाना प्रकार की गड़बड़ियां सामने आ रही है. यदि नई सरकार विभाग के हर सेक्शन की हर फाइल की भी जांच करना चाहेगी तो जांच कम पड़ जाएंगी. अफसरों ने छत्तीसगढ़ को जिस बुरी तरह से लूटा-खसोटा और निचोड़ा है कि आंखे फटी रह जाती है. तरह-तरह की लूट-खसोट में माहिर अफसर अब भी मलाई छानने के काम में लगे हुए हैं. हाल के दिनों में राज्य लघु वनोपज संघ में एक गड़बड़ी पकड़ में आई है. यह गड़बड़ी भी जनसंपर्क विभाग की गड़बड़ी से मिलती-जुलती है. जिस तरह से जनसंपर्क विभाग के आयुक्त राजेश टोप्पो ने निजी फर्मों को रमन सिंह के चेहरे पर फेयर एंड लवली चुपड़ने का ठेका दे रखा था ठीक उसी तर्ज पर राज्य लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक मुदित कुमार सिंह वन विभाग के कई डिवीजन को आदेशित कर रखा था कि साहब ( रमन सिंह की ) सवारी जब भी आएंगी तो जमकर स्वागत-सत्कार होना चाहिए. अब स्वागत-सत्कार के चक्कर में वन समितियों में पदस्थ अफसरों ने तेंदूपत्ते की बिक्री के उस हिस्से फूंक डाला जिसे खर्च करने का उन्हें अधिकार नहीं था.
यह है पूरा मामला
प्रदेश में बड़े पैमाने पर तेंदूपत्ते की नीलामी होती है. तेंदूपत्ते के ठेकेदार जिस ढंग से भी ठेका लेते हैं उसका भुगतान वे क्रमशः चार टर्म में करते हैं. नियमानुसार तेंदूपत्ते की बिक्री के शुद्ध लाभ 80 फीसदी पैसा संग्राहकों को बोनस के तौर पर दिया जाता है. शेष 20 फीसदी राशि में से पांच फीसदी धनराशि उन समितियों पर खर्च की जाती है जो घाटे में चल रही होती है. शेष 15 फीसदी धन अराष्ट्रीयकृत वनोपज के संग्रहण और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए खर्च किया जाता है. यहां तक ठेकेदार जो चार बार राज्य लघु वनोपज संघ को भुगतान करते हैं उससे मिलने वाला ब्याज भी वनोपज के संग्रहण और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने में खर्च होता है. वनोपज संघ के नियमों में यह साफ है कि तेंदूपत्ते के शुद्ध लाभ की राशि का किसी अन्य मद में उपयोग नहीं होगा, लेकिन मुदित कुमार सिंह के आदेश के बाद विभिन्न वन समितियों में पदस्थ अफसरों ने कहीं वन मंडई के नाम पर पैसे फूंके तो कहीं विकास यात्रा के नाम पर तो कहीं बोनस तिहार को लेकर.
नहीं लिया संचालक मंडल से अनुमोदन
तेंदूपत्ते की बिक्री के शुद्ध लाभ में से 15 फीसदी धन के दुरपयोग के मामले का खुलासा तब हुआ जब वनसमितियों के प्रबंध संचालकों ने बकाया भुगतान लेकर राज्य वनोपज संघ को पत्र लिखा. अभी हाल के दिनों में भानुप्रतापपुर ( पूर्व ) के प्रबंध संचालक पत्र लिखकर बकाया राशि मांगी है. पत्र में लिखा गया है कि चार दिसम्बर 2017 को अंतागढ़ में बोनस तिहार मनाया गया था. इस तिहार में वाहन की व्यवस्था में पांच लाख 12 हजार पांच सौ रुपए, पेट्रोल-डीजल में चार लाख 72 हजार पांच सौ, टेंट-पंडाल, माइक एवं बैठक व्यवस्था में नौ लाख रुपए, चायपानी- भोजन व्यवस्था में सात लाख 36 हजार 250 रुपए, बैनर और फ्लैक्स दो लाख 80 हजार एवं नाच-गाने में 35 हजार रुपए का खर्च किया हुआ है. समिति ने लिखा है कि कुल 29 लाख 36 हजार 250 रुपए का खर्च हुआ है. अब तक 17 लाख 95 हजार 494 रुपए खर्च हो गए हैं, शेष 11 लाख 40 हजार सात सौ छप्पन रुपए का भुगतान बकाया है. यह तो एक वनमंडल का मामला है. ऐसे कई वन मंडलों से पैसों तकादे के लिए खत आ रहे हैं. खबर है कि रायपुर वन मंडल का भी दो से ढाई करोड़ का भुगतान बकाया है जो वन मंडई से संबंधित है. सूत्रों का कहना है कि कई वनमंडलों में 15 फीसदी धनराशि से गाड़ियों की खरीदी कर ली गई. कुछ वनमंडलों ने ऐसे हाइब्रिड पौधों की खरीदी जिसकी आवश्यकता नहीं थीं. नियमानुसार सारे खर्चों के लिए राज्य लघु वनोपज संघ के संचालक मंडल से भी अनुमोदन प्राप्त करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. वन अफसर मुदित कुमार ने ऐसा क्यों किया… इस बारे में उनका पक्ष जानने के लिए दूरभाष पर संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया. अपर मुख्य सचिव सीके खेतान ने कहा कि वे अभी दिल्ली प्रवास पर है, सो लौटकर ही बता पाएंगे. लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि वे पूरे मामले को दिखवा लेंगे. यहां यह बताना लाजिमी है कि मुदित कुमार वे अफसर है जिनका नाम कई तरह के कोल ब्लाक को क्लीरेंस दिलाने के विवाद से जुड़ता रहा है. भू-प्रबंधन मामलों की देख-रेख की वजह से उनका नाम तब भी उछला था जब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल ( अब मुख्यमंत्री ) ने भैंसा कन्हार और आरीडोंगरी में अवैध खनन का मामला उठाया था. इधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील ओझा का आरोप है कि मुदित कुमार पूर्व सीएम और सुपर सीएम के सबसे ज्यादा विश्वासपात्र रहे हैं. वे अपनी पदस्थापना के दौरान राजकीय कोष को नुकसान पहुंचाने का काम ही करते रहे हैं. ओझा का आरोप है कि नई सरकार के गठन के बाद भी मुदित कुमार इधर-उधर चक्कर काटकर अपनी जुगत बिठाने के खेल में जुटे हुए हैं, वे अब भी पूर्व सरकार के सुपर सीएम के संपर्क में हैं. ओझा ने उनके कार्यकाल और संपत्ति की जांच की मांग की है. करोड़ों के इस खेल की सच्चाई जानने में जुटे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां भी मांगी है.