छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच अब तक जितने भी विवाद हुए वो सब राजनीति की भेंट चढ़ गए. दोनों राज्यों के बीच अब एक और नया विवाद शुरू हो गया है. पहले महानदी जल विवाद, कुछ दिन पहले सामने आया जमीन विवाद और अब सिंचाई विवाद को लेकर छत्तीसगढ़ और के बीच परेशानियां बढ़ गईं हैं.
यह विवाद दोनों ही राज्यों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. दोनों ही राज्यों की सरकार इनको सुलझाने की जितनी कोशिश कर रही है, उससे कहीं ज्यादा इन मुद्दों पर राजनीति होने के कारण ये मुद्दे सुलझने के बजाए और उलझते जा रहे हैं. पिछले साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अमाड गांव में अपने दौरे के दौरान ग्रामीणों की मांग पर 49 करोड़ की अमाड व्यपर्तन योजना को मंजूरी दी थी.
इस योजना के तहत ओडिशा सीमा से लगी तेल नदी पर एक सिंचाई परियोजना को मूर्त रूप देना है. योजना से छत्तीसगढ़ की 1600 हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी. छत्तीसगढ़ शासन ने इस पर काम शुरू कर दिया है, लेकिन ओडिशा कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद प्रदीप मांझी ने इस योजना से ओडिशा सीमा के किसानों की जमीन डुबान में आने का हवाला देकर इस योजना को बंद करने की मांग की है.
प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष प्रदीप मांझी के लगातार विरोध करने के कारण ओडिशा के सीमावर्ती इलाके में तनाव की स्थिति बन गई है. ओडिशा सरकार ने हालात को देखते हुए बीते 2 जुलाई से नवरंगपुर जिले में धारा 144 लागू कर दी है, लेकिन उसके बाद भी ओडिशा कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. छत्तीसगढ़ सिंचाई विभाग ने दावा किया है कि इस योजना से न सिर्फ ओडिशा बल्कि छत्तीसगढ़ में भी कोई डुबान नहीं होगा.
छत्तीसगढ़ के अधिकारियों के इस दावे पर ओडिशा सरकार की भी सहमति बताई जा रही है, लेकिन ओडिशा कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना लिया है. इस पर अब छत्तीसगढ़ की देवभोग बीजेपी मंडल भी प्रदीप मांझी के विरोध में उतर आई है.
दोनों राज्यों के बीच जारी विवादों पर राजनीतिक पार्टियां जनहित को दरकिनार कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगीं हैं. अमाड व्यपर्तन योजना भी राजनीति का भेंट चढ़ गई है. हालांकि अभी योजना पर काम जारी है और ओडिशा सरकार ने इस योजना से उसके राज्य को कोई नुकसान नहीं होने का दावा किया है.