‘विजया पाठक’
हाल ही में मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने तीर्थयात्रियों को करतारपुर साहिब (पाकिस्तान) के दर्शन कराने के लिए बड़ा फैसला लिया है। सरकार 60 वर्ष से अधिक आयु वाले तीर्थयात्रियों को करतारपुर साहिब के मुफ्त में दर्शन कराएगी। इन तीर्थयात्रियों को ‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना’ के तहत दर्शन कराए जाएंगे। सिख समाज की मांग को मंजूर करते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने करतारपुर साहिब को उन तीर्थस्थलों की सूची में शामिल कर लिया है।
सीएम कमलनाथ ने यह फैसला सिखों के आराध्य गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर लिया है। सरकार के इस फैसले के पीछे भी बहुत कुछ छुपा है। दरअसल मुख्यमंत्री कमलनाथ पर 1984 के सिख नरसंहार के दाग लगे हैं और हाल ही में मोदी सरकार ने इस केस को दोबारा खोलने की मंजूरी दी है। कमलनाथ पर आरोप हैं कि दिल्ली में हुए दंगों के दौरान जब दो सिखों को जिंदा जलाया गया था उस समय कमलनाथ वहां मौजूद थे। इस आरोप के चलते देश भर के सिख कमलनाथ से खासे नाराज हैं और आक्रोशित हैं। सिख समुदाय मांग कर रहा है कि सज्जन कुमार की तरह कमलनाथ पर भी केस दर्ज कर सजा दिलाई जाए। अब जब कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और प्रदेश में ‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना’ चल रही है तो उन्हें लगा क्यों न सिख समुदाय के तीर्थ को भी इस योजना में शामिल कर लिया जाए। जिससे सिखों के प्रति सहानुभूति भी प्रदर्शित हो जाएगी और जाने अनजाने में जो पाप हुआ है उसका पश्ताचाप भी हो जाएगा। इस फैसले में कमलनाथ ने सिखों को साधने की कोशिश की है। अब देखना होगा कि उनके इस प्रयास का सिख समुदाय के उपर कितना असर होता है।
कमलनाथ की यह पहल सराहनीय हो सकती है लेकिन इस पहल के पीछे की मंशा ने लोगों को सोचने पर मजबूर किया है। उनकी इस पहल से एक बात भी स्पष्ट होती है कि कहीं न कहीं 1984 के सिख दंगों का उन्हें मलाल है,पश्ताचाप है। भले ही इस वाक्या को काफी समय बीत चुका है पर 1984 में हुए उस अमानवीय कृत्य ने कमलनाथ को गुनहगार जरूर माना है। जिसका खामियाजा एक न एक दिन कमलनाथ को भुगतना पड़ेगा।