बिलासपुर. वक्त कब किसे क्या रूप दिखाए ये कोई नही जानता महामारी और लॉक डाउन की जद्दोजहद में सात समंदर पार से भाई के नही आ पाने की वजह से इंजीनियर बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार किया।
हम अक्सर सुनते है कि पुत्र के योग से वंचित फलाना की बेटी द्वारा अंतिम संस्कार किया गया। मगर इस बार बिल्कुल अलग देखने को मिला। प्राइवेट सेक्टर में मेकेनिकल इंजीनियर महेंद्र सिंह चौहान (73) निवासी नेहरू नगर कल्पना विहार का 14 सितम्बर की रात निधन हो गया। बड़ी बेटी शैली सिंह ,एक पुत्र रिशु सिंह और छोटी बेटी ऋतु सिंह को उनके पिता ने अच्छी शिक्षा दीक्षा दी। जिसके फलस्वरूप आज बड़ी बेटी और पुत्र इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफल है और अमेरिका की एक बड़ी कंपनी में जॉब कर रहे हैं तो वही छोटी बेटी बैंगलूर में अपने पति के साथ रह कम्प्यूटर इंजीनियर है। पिता की लंबी बीमारी (कैंसर) के बाद निधन की खबर जहा एक ओर पूरा परिवार स्तब्ध हो गया तो छोटी बेटी आननफानन में बैंगलूर से 15 सितम्बर को शहर पहुची वक्त का तकाजा कुछ ऐसा था कि सात समंदर पार से बेटा ऐन वक्त पर पिता के अंतिम दर्शन के लिए नही पहुंच पाया।
समाज के रीति रिवाज से परे होकर ऋतु सिंह ने पिता के अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया और अपने कुछ परिजनों के साथ पूरे रीति रिवाज से बेटे का फर्ज निभाया और पिता की अर्थी को कांधा देकर सरकण्डा स्थित मुक्ति धाम में नम आंखों से मुखाग्नि दी।
कैंसर की जंग जीते मगर जिंदगी की जंग हार गए..
स्वर्गीय महेंद्र सिंह चौहान ने अपनी जॉब का आरंभ अमलाई की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर के तौर पर की। रिटायरमेंट के बाद उन्हें कैंसर से जूझना पड़ा लेकिन उन्होंने कैंसर से जंग जीत ली थी। लेकिन अपनी उम्र का आधा पड़ाव पार कर चुके स्वर्गीय सिंह अंतिम में काफी बीमार रहने लगें और आखिरकार जिंदगी की जंग हार गए।