दिल्ली. केन्द्र कीयूपीए गठजोड़ के लिए भाजपावाले सभी दलों ने 2014 में यूपीए-2 की सरकार जाने के बाद कांग्रेस और सोनिया का साथ एक-एक कर छोड़ दिया था। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के सरकारी आवास 10 जनपथ पर भोज में शामिल कई दलों ने तो यूपीए 2 के कार्यकाल के प्रमुख विपक्ष दल भाजपा के साथ पींगे भी बढ़ाना शुरू कर दिया था। इसी का नतीजा था कि क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का दायरा भी सिमटता चला गया और एक समय संपूर्ण देश में राज करने वाली कांग्रेस 41 पर आकर सिमट गई थी। कांग्रेस के ये सभी घटक दल जिन्होंने रात्रि भोज में हिस्सा लिया, वे सभी अपनी भ्रष्टता की वजह से सिमटते चले गए। यूपीए शासनकाल में भी समय-समय पर आंख दिखाने वाले ये घटक दल अपने ही जाल में फंसते नजर आए। यूं कहें कि कांग्रेस के साथ-साथ उनका भी समय के साथ कबाड़ा हो गया। मायावती जहां जीरो पर आउट हुई, वहीं भाजपा के साथ आंतरिक अपवित्र गठजोड़ से सपा केवल अपने परिवार को बचाने में कामयाब रही। शरद पवार ने भी लोकसभा चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अंगूठा दिखाते हुए अलग से चुनाव लड़ा। नतीजा महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस को 41 और खुद को 40 पर सिमटा लिया। कांग्रेस का हर हाल में समर्थन करने वाले लालू ने राजद कुनबे को बढ़ाते हुए कांग्रेस को निबटाने का ही काम किया। आज भी वही रणनीति काम कर रही है। कांग्रेस को काबू में रखने के लिए अपने ही गुर्गे को कांग्रेसी कोटे से टिकट दिलवाकर उनको राज्यसभा भिजवाने का चमत्कार अभी तक बिहार की जनता भूली नहीं है। लालू कुनबा के असर का चमत्कार तो देखिए, तीन अंकों में रहने वाली कांग्रेस का विधायक दल, ईकाई पर सिमट कर रह गया। पुराने कांग्रेसियों में आज भी धारणा व्याप्त है कि लालू अगर 2019 के महगठबंधन में मजबूत होते हैं तो कांग्रेस का इकाई से अधिक पार नहीं कर सकती। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में दो अंकों का आंकड़ा नीतीश के गठबंधन की वजह से कांग्रेस में दिखा, लेकिन अब लालू के हाथों में कांग्रेस के पहुंचने से इकाई में समेटती दिखाई देगी। लालू की पार्टी को यूपीए चेयरपर्सन के रात्रि भोज का निमंत्रण मिलते ही लालू ने कांग्रेस को दांव दे दिया। अपने चेले अखिलेश कुमार सिंह को कांग्रेस कोटे से राज्यसभा तक पहुंचवा दिया। प्रदेश के कांग्रेसी हक्के-बक्के रह गए। आपको बता दें कि 15 विधायकों ने अखिलेश का विरोध किया था, दूसरा भी राज्यसभा का नामांकन पत्र भी आस्कर फर्नांडीस ने 12 मार्च को जारी किया जो नामांकन की अंतिम तिथि थी। खैर राजद के सहयोग से ही सही अखिलेश को सांसदी हासिल हो गई। राज्यसभा चुनावों में प्रभारियों ने अच्छी-खासी खिंचाई कर ली। खिंचाई की इस सिंचाई में अखिलेश का बेड़ा पार हो गया
यूपी के गोरखर और फूलपुर दोनों ही सीटों में पार्टी की मिट्टी पलित हो गई, वहीं थोड़ी बहुत इज्जत भभुआ में बच सकी क्योंकि राजद ने तो अपना वोट ट्रांसफर करवा दिया था, मगर प्रदेश कांग्रेस के नामचीन नेताओं के आपसी सिरफुटव्वल की वजह से उनके कोटे से 1000 वोट तक भी कांग्रेसी प्रत्याशी शंभु पटेल को नहीं मिले। लिहाजा रिंकी आनंद के पक्ष में नतीजे आने से कांग्रेसी बेहद निराश हैं। अपने राजनीतिक पैंतरेबाजी और तुनकमिजाजी के लिए मशहूर ममता बनर्जी ने टीएमसी कोटे से जरूर विश्वासपात्र सुदीप बंधोपाध्याय को डिनर के लिए भेजा। झारखंड के नेताओं में एक-दूसरे के घोर विरोधी बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन ने भोज शिरकत की। इन दोनों का पुराना इतिहास रहा है कि कब गच्चा दे दें. हेमंत के कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के बाद कांग्रेस के विधायक दलों में केवल सुखदेव भगत को छोड़ दिया जाए तो बाकी पांचों विधायकों, पूर्व मंत्री व सांसद सुबोध कांत सहाय, फुरकान अंसारी, मनोज यादव के सामने प्रभारी महासचिव आरपीएन सिंह की खासी बेइज्जती की गई। इन सब की जानकारी कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने राहुल गांधी को है। गांधी परिवार के करीबी नेता इन सभी घटक दलों पर करीबी नजर रखे हुए हैं। कांग्रेस के तीन दिवसीय अधिवेशन के बाद पार्टी के अंदरुनी संगठन और राज्य इकाईयों को मजबूत करने के लिए विजन डाक्युमेंट तैयार किए जा रहे हैं। डीएमके से कनिमोझी और एआईयूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल पहुंचे। इनके अलावा राजद के तेजस्वी यादव, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी, उमर अब्दुल्ला, एनसीपी के शरद पवार और तारिक अनवर, बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा के अलावा कांग्रेस की तरह से गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, ए.के. एंटोनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, रणदीप सिंह सुरजेवाला भी शरीक हुए। सपा के रामगोपाल यादव, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अबदुल्ला, सीपीआई के डी राजा, रालोद के अजित सिंह, सीपीएम के मोहम्मद सलीम, बसपा के सतीश मिश्रा, आरएसपी के रामचंद्र, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, जेडीएस के डॉ. के रेड्डी, आईयूएमएल के कुट्टी, केरल कांग्रेस के जोश के मनी के अलावा जदयू से अलग अपनी नई राजनीतिक पारी को दिशा देने वाले हिंदुस्तान ट्राइबल पार्टी के प्रमुख शरद यादव जरूर वहां उपस्थित रहे।
इस डिनर पर सत्तारुढ़ दल के कद्दावर मंत्री अनंत कुमार ने नजर रखते हुए कहा कि सोनिया गांधी डिनर के जरिए विपक्ष को गोलबंद करने का प्रयास कर रही हैं। कांग्रेस का विघटन हो रहा है। हर चुनाव में हार रहे हैं तो गोलबंदी कैसे होगी। इस बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने बड़े संयमित और शालीन तरीके से कहा कि यूपीए अध्यक्ष के द्वारा आयोजित भोज में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ सकारात्मक बातचीत हुई। खैर देश के विभिन्न राज्यों में हो रहे उपचुनाव के नतीजे भाजपा खेमे में बेचैनी जरूर बढ़ा रही हैं, मगर इन सबके बीच 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष ने सत्तारूढ़ बीजेपी के विजय रथ को रोकने की नई पहल के रूप में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के रात्रिभोज को जरूर देखा जाना चाहिए। इसमें विपक्षी दलों में एक-दूसरे का विश्वास बढ़ाना, उन्हें एकजुट करना और सबसे महत्वपूर्ण 2019 में लोकसभा चुनावों में भाजपा को पटखनी देने के लिए आपसी मतभेद भुलाकर कांग्रेस के नेतृत्व में अखिल भारतीय गठबंधन की राह तलाशना प्रमुख रही।