छत्तीसगढ़:विजय बघेल, ओपी चौधरी और रामविचार नेताम में से बीजेपी अध्यक्ष कौन?

‘विजया पाठक’

छत्तीसगढ़ में भाजपा संगठन में जल्द ही बड़ा परिवर्तन होने वाला है। इस परिवर्तन में पहला पड़ाव होगा प्रदेश अध्यक्ष का पद। जिसमें विजय बघेल, ओपी चौधरी और रामविचार नेताम के नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। कयास लगाये जा रहे हैं कि छत्तीेसगढ़ में इस बार ओबीसी या आदिवासी चेहरे को बीजेपी की कमान सौंपी जा सकती है।

जहां तक विजय बघेल और ओपी चौधरी की बात की जाये तो ये दोनों नेता ओबीसी वर्ग से आते हैं। रामविचार नेताम छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी नेता हैं। नेताम 2008 से लेकर 2013 तक रमन सिंह मंत्रीमण्‍डल में गृहमंत्री रह चुके हैं। इसके बाद उन्हेंं राज्यसभा भेजा गया, वो बीजेपी के आदिवासी सेल के प्रभारी भी हैं। नेताम पर अभी तक किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार का आरोप या चरित्रहीनता का दाग नही लगा है। वह एक साफ-सुथरी छबि के नेता हैं।
अब देखना होगा कि इन तीनों में से बीजेपी हाईकमान किसको बीजेपी का अध्यक्ष मनोनीत करती है। प्रदेश में विजय बघेल एक ऐसा चेहरा है जिसका न केवल बीजेपी लोहा मानती है बल्कि कांग्रेस भी मानती है। बघेल की राज्य में अच्छी खासी पैठ है। विजय बघेल ने दुर्ग से लगभग 4 लाख रिकॉर्ड वोटों से दुर्ग लोकसभा से उन हालातों में विजय हासिल की, जब उन्हें स्थानीय संगठन खेमा कोई मदद नहीं कर रहा था। साथ ही मुख्यमंत्री, गृहमंत्री सहित 04-04 मंत्रियों का निर्वाचन जिला होने के कारण कांग्रेस ने भी दुर्ग लोकसभा को प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था। ऐसी कठिन चुनौतियों के बावजूद विजय बघेल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीती हुई दुर्ग लोकसभा सीट को भाजपा की झोली में डालने में सफलता हासिल की। यह बात भी सच है कि यदि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व बघेल, चौधरी और नेताम पर दांव लगाती है तो प्रदेश में बीजेपी की खोई जमीन भी वापिस आ सकती है।

वैसे उच्च स्तर से निम्न स्तर तक फेरबदल की तैयारी की बात चल रही है। इस फेरबदल के कयास 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद से लगाए जा रहे थे। जब धरमलाल कौशिक के साथ में प्रदेश बीजेपी की कमान थी तब बीजेपी रसातल में पहुंचती जा रही थी, यही कारण रहा कि कौशिक को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। कौशिक के ऊपर भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता के भी कई आरोप लगते रहे हैं। कौशिक के समय में हुये तमाम चुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि कौशिक न तो संगठन को मजबूती दे पा रहे थे और न ही बीजेपी की छबि को भुना पा रहे थे। धरमलाल कौशिक के बाद विक्रम उसेंडी के कमान संभालते ही लोकसभा चुनाव होने के कारण बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। खींचतान ऐसी मची कि बड़े नेता अपने पसंद का मंडल अध्यक्ष बनाने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी। अंदरूनी खींचतान का नतीजा यह रहा की लोकसभा में भारी सफलता के चंद महिनों बाद नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी। लगभग सारे बड़े निगम में पार्टी को करारी शिकस्त मिली।

ऐसे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व छत्तीसगढ़ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सहित संगठन स्तर पर तमाम बड़े चेहरों के बदलाव का मन बना चुका है। छत्तीसगढ़ की राजनीति के मौजूदा हालातों में भूपेश बघेल की अगुआई में कांग्रेस जिस तरह से आक्रामक राजनीति कर रही है उसे देखते हुए भाजपा को भी अपनी रणनीति बदलने की आवश्यकता है। रमेश बैस के राज्यपाल बनाए जाने के बाद पार्टी में ऐसे ही किसी बड़े ओबीसी चेहरे को स्थापित करने की आवश्यकता महसूस कर रही है। विजय बघेल का ओबीसी मुख्यमंत्री का करीबी रिश्तेदार होने के अलावा निर्विवाद छवि भी उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में स्थापित करवाने में फिट बैठ रही है।

पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के नजरिये से सांसद विजय बघेल ही छत्तीसगढ़ के सबसे अनुकूल नजर आ रहे हैं। वहीं बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह की पसंद भी ओपी चौधरी हैं। चौधरी पर किसी प्रकार का आरोप भी नहीं है। यहां तक चौधरी के प्रदेशाध्यक्ष बनने से कांग्रेस को भी परेशानी हो सकती है क्योंकि चौधरी जैसे नेता के पॉवरफुल बनने से कहीं न कहीं कांग्रेस को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। यहां तक रमन सिंह भी नहीं चाहेंगे कि ओपी चौधरी को प्रदेश बीजेपी की कमान दी जाए। इससे रमन सिंह का कद कम हो सकता है।

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