रायपुर/बिलासपुर.छत्तीसगढ़ के चुनाव में इस बार मीडिया जगत में खास तरह की स्थिति देखने को मिल रही है। अखबार-चैनलों के मालिक और उनके द्वारा नियुक्त किए गए संपादक भाजपा के गुणगान के लिए पत्रकारों पर दबाव बना रहे हैं। चिल्ला- चिल्लाकर कह रहे हैं कि सरकार का पक्ष मजबूत तरीके से रखना है, लेकिन पत्रकार बगावत पर आमादा है। पत्रकारों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि जैसी स्थिति नहीं है उससे अलग लिखने को न कहा जाए। जनता सरकार और उनके अत्याचार करने वाले अफसरों से बुरी तरह खफा है। सरकार का सुपड़ा साफ होना दिख रहा है मगर हमें लीपा-पोती करने को कहा जा रहा है। इस बार पत्रकारों का बड़ा धड़ा विपक्ष के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है।
चुनाव में सरकार समर्थित खबरों के लिए पैकेज लेना आम बात है। कई बार पैकेज इस बात के लिए भी होता है कि सरकार के खिलाफ खबरें न दिखाई जाए। अखबार और चैनलों की खबरों तथा उसकी भाषा को देखकर यह साफ समझ में आ रहा है कि पैकेज सरकार की नाकामियों और कमजोरियों को दबाने का है।
सरकार को बेनकाब करने का काम सोशल मीडिया बखूबी कर रहा है। हालांकि इस मीडिया में भी कुछ वेबसाइटों को सरकार के अफसर फाइनेंस करते हैं। कुछ वेबसाइटों को तो सरकार ने चुनाव के सालभर पहले ही पालना- पोस्ट प्रारंभ कर दिया था। ये पालित- पोषित वेबसाइट वाले अक्सर लिखते हैं- रमन का बड़ा बयान। रमन ने बोला बड़ा हमला। बिंग ब्रेकिंग- रमन आज देंगे करोड़ों की सौगात।
अभी चंद रोज पहले विपक्ष ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी। यह कान्फ्रेंस एक वीडियो को जारी करने को लेकर था। जैसे ही यह वीडियो खत्म हुआ पत्रकारों ने जोरदार तालियां बजाई। हकीकत यहीं हैं कि इस बार प्रदेश के अलावा देश के सभी समझदार पत्रकार सरकार को जाते हुए देख रहे हैं। पिछले कई सालों से सरकार के गुणगान में लगे स्तुति और प्रवक्ता अखबार में कार्यरत एक पत्रकार ने विगत दिनों सार्वजनिक तौर पर यह चिंता जाहिर कि है हालात खराब है…. मगर क्या करें नौकरी करनी तो कर रहे हैं तो कर रहे हैं।इधर इन सब के बीच पत्रकारों के एक धड़े ने विधानसभा चुनाव लड़ने का मन भी बना लिया और राज्य के कुछ जिले में अपने प्रत्याशीयो के नामों की घोषणा भी कर दी है।
तो पत्रकार साथियों नौकरी करिए
लेकिन थोड़ा बहुत अपनी आत्मा की भी सुनिए..
सोचिए कि पिछले पन्द्रह सालों में प्रदेश के पांच पत्रकारों की हत्या क्यों हुई? प्रदेश के ढाई सौ से ज्यादा पत्रकारों पर जुर्म दर्ज क्यों है? प्रदेश का वह अफसर कौन है जो खुलेआम कहता है- पत्रकारों को जूते की नोंक पर रखता हूं। कौन है जिसने पत्रकारों पर सर्वाधिक झूठे केस दर्ज करवाएं है।
अखबार और चैनलों के मालिक, संपादक तो पैकेज लेते रहेंगे और समय-असमय नंगे होते रहेंगे।
मगर…. यह पत्रकारों के खामोश रहने का
समय नहीं है। इस सरकार की बिदाई समारोह का वक्त आ चुका है। समारोह ठीक से होना चाहिए।
(पीड़ित पत्रकार की कलम से)