रायपुर.छत्तीसगढ़ में चुनाव की बेला बेहद करीब है। देश की राजधानी सहित दिल्ली सहित अन्य कई हिस्सों के मीडियाकर्मियों का डेरा रायपुर में जमने लगा है। इसके साथ ही यह चर्चा भी खूब चल रही है कि क्या छत्तीसगढ़ की मीडिया ने रमन सरकार के आगे सरेंडर कर दिया है। जनता को वहीं दिखाया या पढ़ाया जा रहा है जो सरकार चाहती है। क्या छत्तीसगढ़ का मीडिया दबाव में है? हर अखबार में एक जैसी खबरें हैं। ज्यादातर खबरें वही हैं जो दिनभर सोशल मीडिया में चलती है। इस मीडिया से जुड़े नागरिक और पत्रकार तो खुलकर लिख भी रहे हैं, लेकिन प्रिंट मीडिया में?
खैर…. हकीकत यही है कि छत्तीसगढ़ के पत्रकार जरा भी डरपोक नहीं है, लेकिन महज एक पत्रकार के ईमानदार होने से या प्रतिबद्ध होकर काम करने से क्या होने वाला है। सूत्र बताते हैं कि पत्रकार तो अपने संस्थानों में खबरें लिखकर भेज रहे हैं। वहीं खबरें बना रहे हैं जो कुछ वे देख रहे हैं या भोग रहे हैं लेकिन ज्यादातर संस्थानों के न्यूज एडीटर, एडीटर और वरिष्ठजन यह कहते हुए खबरें रोक रहे हैं कि सरकार नाराज हो जाएगी। मामला सरकार के खिलाफ चला जाएगा। हर छोटे से छोटे आरोप पर पत्रकारों से कहा जाता है कि वह सरकार का पक्ष ले लें। यहां तक अगर कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी लेता है तो उसकी कान्फ्रेंस का टोन डाउन कर दिया जाता है। तो… पाठकों मामला पत्रकार के स्तर का नहीं बल्कि उस मैनेजमेंट के स्तर का है जिसे बाजार की भाषा में पैकेज कहा जाता है। चुनाव के समय तो पत्रकार को यह पता ही नहीं चलता कि मैनेजमेंट ने उसके नाम पर कितने करोड़ की बोली लगा ली है?