‘राजकुमार सोनी’
जो लोग ज़िंदगियों से खिलवाड़ करते हैं…वे इस बात को कभी महसूस नहीं कर पाएंगे कि एक जीवन को बचाने की खुशी क्या होती हैं ? छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के मालखरौदा ब्लाक के पिहरीद गांव के एक बोरवेल एक सौ पांच घंटे से भी ज्यादा समय तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करने वाले राहुल को आखिरकार छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने अथक प्रयासों से बचा लिया है. सचमुच राहुल को नया जीवन मिल जाने की खबर…देश में कई-कई तरह से पैदा की जा रही बुरी खबरों से बड़ी हैं और भारी हैं. यह खुशी चट्टानों में खिले हुए बहुत सारे फूलों को देखने जैसी हैं. किसी ने सच ही कहा है कि जब कायनात के बहुत-बहुत सारे अच्छे लोग एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं तो जीवन धड़कने लगता हैं.
ऐसे खतरनाक वक्त में जबकि फासीवादी शक्तियों ने हरेक आदमी को एक-दूसरे के खून का प्यासा बना दिया हैं. हर कोई हाथ में छुरा-त्रिशूल और पत्थर थामे घूम रहा है तब…
तब… देश में कुछ हिन्दू-मुस्लिम ऐसे भी थे जो राहुल की सलामती के लिए अपने ईश्वर और खुदा से लगातार प्रार्थनाएं कर रहे थे. दुआएं मांग रहे थे.
दूसरों के आल-औलाद की चिंता वहीं शख्स कर सकता हैं जो खुद भी बच्चों को बहुत प्यार करता हो.बच्चों के संदर्भ में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जिम्मेदारी से भरी स्वाभाविक चिन्ता मैं पहले भी कई मौकों पर देख चुका हूं. मुझे याद है कि बिलासपुर में एक बच्चे के अपहरण के दौरान मुख्यमंत्री ने कैसे रात-रातभर जागकर अफसरों को ठोस कार्रवाई के प्रेरित किया था. मुख्यमंत्री की पहल के बाद बच्चा अपराधियों के चंगुल से बच पाया था.
एक दूसरा मौका तब दिखा जब रायपुर के समता कालोनी में रहने वाली एक बच्ची कोरोना से पीड़ित हो गई थीं. यह संभवतः छत्तीसगढ़ का पहला केस था तो मूर्ख लोग बच्ची को ही कोसने में लग गए थे.सबको लग रहा था कि बच्ची की वजह से पूरे छत्तीसगढ़ में कोरोना फैल जाएगा और कोई नहीं बचेगा…तब भी भूपेश बघेल ने स्वयं आगे होकर मॉनिटरिंग की थीं. वे लगभग हर रोज़ बच्ची और उसके परिजनों से बात किया करते थे. राहुल को बचाने में भी उनकी यहीं संवेदनशीलता नज़र आई हैं. यह कहने में कोई गुरेज नहीं हैं कि छत्तीसगढ़ की जनता को नेता तो बहुत से मिले हैं… पहली बार ऐसा ” मुखिया ” मिला है जिसकी त्वचा में संवेदनाओं की बूंद की आवाजाही कायम रहती हैं. निश्चित रुप से उन्होंने छत्तीसगढ़ की एक बड़ी आबादी का दिल जीत लिया है.
मुख्यमंत्री बघेल की शानदार टीम में शामिल कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला और पुलिस कप्तान विजय अग्रवाल के अथक प्रयासों को भी पूरे सम्मान के साथ रेखांकित किया जाना अनिवार्य होगा. राहुल को अंधेरी दुनिया से बाहर निकालने में कलेक्टर और एसपी की शानदार प्लानिंग और उनका योगदान भी बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसके साथ ही राष्ट्रीय आपदा मोचन बल ( एनडीआरएफ ) के निरीक्षक महाबीर मोहंती, सेना और पुलिस के जवानों के साथ-साथ प्रार्थना और दुआ के लिए उठे असंख्य हाथों को भी सलाम बनता है.
और…हां…उस मीडिया को भी धन्यवाद जिसने कुछ समय के लिए ही सही खुद को न्यायमूर्ति बनने से बचाया और मोदी की चकल्लसबाजी से दूर यह जानने-समझने का प्रयास किया कि “जीवन” कितने सम्मिलित प्रयासों का नाम हैं. जीवन सामूहिकता से बचता-निखरता और संवरता हैं. हममें से हरेक की ज़िदंगी… बेहद महत्वपूर्ण हैं. यह सत्य हैं कि मौत सबको आनी हैं. मृत्यु अटल हैं, लेकिन यमदूत को यह कहकर रोक देना कि अभी आपको इंतज़ार करना होगा… इसका आनंद ही कुछ और हैं. मूक बधिर होते हुए भी राहुल ने अंधी गुफा में सांप और बिच्छुओं से मुकाबला किया.मौत के साथ पूरी जीवटता के साथ कई घंटों तक रेसटीप खेलने वाले राहुल के लिए भी जोरदार तालियां बनती हैं. इस बच्चे का शेष जीवन बेशुमार खुशियों के साथ गुज़रे यहीं कामना करता हूं.
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