नौसिखिए नेतृत्व के कमाल से उपजा परिसीमन का बवाल..

‘मनोज शर्मा’

रिसीमन.. परिसीमन, परिसीमन। किसका भला होगा परिसीमन से, सोचा है कभी। कम से कम शहर और नवप्रवेशी गांवों का तो भला होने से रहा। तो फिर भाजपा की इस पुरानी योजना को बिल्डर गुट के कांग्रेसी क्यों ताबड़तोड़ तरीके से पूरा करने में जुटे हैं।

सीधा सा मतलब है कि सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की, जमीन के धंधों में सब भाई-भाई हैं। अगर किसी का नसीब ही खोटा है तो वह है शहर की जनता और दलों के कार्यकर्ताओ का, जो हर बार अपनी ही बनाई सरकार में हाथ मलते रह जाते हैं। भाजपाई इसको लेकर मौन इसलिए हैं कि यह परिसीमन का जख्म उनकी ही देन है, जिसे कांग्रेसी नासूर बनाने पर तुले हुए हैं। अरे भाई, वैसे ही नगर निगम की माली हालत खराब है और राज्य सरकार के भरोसे है। इसके बाद भी वह शहर के 66 वार्डों का तो ढंग से विकास नहीं करा पाती थी। परिसीमन के बाद उजाड़ गांवों को शहर में जोड़ तो दिया जाएगा पर उनका विकास वह किसके भरोसे करेगी न तो शहर संवर पाएगा और ना ही ग्रामीण इलाके में विकास की गंगा बहेगी।

भाजपा के पूर्व नगरीय कल्याण मंत्री अमर अग्रवाल यह करना तो चाहते थे पर अपनी पन्द्रह साल की सत्ता में शायद इसलिए ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि ग्रामीण इलाकों का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा विधायक इससे सहमत नहीं थे।

सहमत होते भी क्यों?..

अपने विधानसभा क्षेत्र में आने वाले गांवों के विकास के लिए मंत्री के चमचे (मेयर) के हाथ पांव थोड़े ही जोड़ते। मतलब तब जो नहीं हो सका, उसे अब अपने बिल्डर कांग्रेसी मित्रों की बदौलत करा लेंगे। बेचारा कांग्रेस का कार्यकरता अपनी ही सरकार में चीख पुकार के लिए उतर आया है। इतना ही नहीं जिले में कांग्रेस के दो ही विधायक हैं और दोनों परिसीमन के खिलाफ हैं तो प्रश्न है कि किसके लिए किया जा रहा है परिसीमन। सीधा-सीधा दिखता है कि यह बिल्डरों और जमीन का धंधा चमकाने के लिए होने वाला है। पहले लोगों को शहर में जमीन नहीं मिल पाती तो आसपास के इलाकों में अपना घर बना लिया करते या सस्ते में मकान ले लेते थे अब वहां भी बड़े बिल्डरों के रेट पर घर बनाना होगा। गांव के लोग ज्यादा टैक्स भरेंगे और इसके बाद भी उनके विकास का भार पुराने शहर के लोगों पर भी पड़ेगा। निगम अमले पर काम का दबाव बढ़ेगा, निगम कर्मी वैसे ही हलाकान हैं।
जमीन के धंधेबाजों के अलावा अगर किसी और का फायदा होगा, तो वह है कांग्रेस सत्ता की नजदीकी से बिलासपुर में पैदा हुए नौसिखिए नेतृत्व का। जिनकी टेढ़ी-मेढ़ी चाल बताती है कि वह अपने चेले चमचे को मेयर बनाकर बिठाएंगे और धोखे से जीत गए तखतपुर और बिलासपुर के कांग्रेस विधायकों के इलाकों की वाट लगाएंगे। सच में ऐसा हुआ तो इसका सियासी लाभ भाजपाई मित्रों को मिलना अटल है। भले ही कांग्रेस टूटी-फूटी और उसके कार्यकरता निराश हों तो हों, कल किसने देखा है..

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