पैसे लेकर पद बांटने वाले को बना दिया नेता प्रतिपक्ष..

‘राजकुमार सोनी’

रायपुर. विधानसभा चुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा के सामने एक बार विकट स्थिति आन खड़ी हुई है. केंद्रीय नेतृत्व के दबाव के चलते धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए हैं, लेकिन महज 15 विधायकों की टूटी-फूटी पार्टी में कोई भी नेता ( रमन सिंह और पुन्नूलाल मोहिले को छोड़कर ) धरम कौशिक के साथ मन से काम करने को तैयार नहीं है. वैसे तो धरमलाल कौशिक को संसदीय मामलों का जानकार माना जाता है, लेकिन अब कोई भी सदस्य उनके ज्ञान का लाभ उठाना चाहता है ऐसा दिखता नहीं है. भाजपा विधायकों का कहना है कि भले ही कौशिक नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए हैं लेकिन हकीकत यह है कि उनके नेतृत्व में पार्टी कभी आगे नहीं बढ़ पाई. उन पर कमजोर अध्यक्ष होने का ठप्पा लग चुका है. शुक्रवार को नेता प्रतिपक्ष चयन को लेकर एकात्म परिसर के भाजपा कार्यालय में बैठक के दौरान भी कई विधायकों ने पर्यवेक्षकों के सामने अपना गुस्सा उतारा. विधायकों का कहना था कि जो शख्स पैसे लेकर पद और टिकट बांटता हो उसे नेता प्रतिपक्ष बनाकर पार्टी ने भद्द पिटवा ली है.

रमन का गुलाम..

धरम कौशिक के नेता प्रतिपक्ष बनने से भाजपा में अनुशासन का राग अलापने वाले भी खराब प्रतिक्रिया दे रहे हैं. भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता और पार्टी के लिए समर्पित देवेंद्र गुप्ता ने तो फेसबुक वॉल पर कौशिक को रमन सिंह का गुलाम तक लिख दिया. देवेंद्र ने लिखा- आदिवासी नेता ननकीराम कंवर, सामान्य वर्ग से बृजमोहन अग्रवाल, पिछड़े वर्ग से नारायण चंदेल और अजय चंद्राकर में से किसी एक का चयन भी अगर नेता प्रतिपक्ष के लिए कर लिया जाता तो बेहतर होता, लेकिन यह सारे लोग इसलिए पीछे रह गए क्योंकि वे धरमलाल कौशिक की तरह रमन सिंह के गुलाम नहीं थे. गुप्ता केवल यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने आगे लिखा- जिस प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी 15 सीटों पर सिमट गई उसे फिर से नेता प्रतिपक्ष का तोहफा देना समझ से परे हैं. छत्तीसगढ़ में भाजपा डाक्टर रमन सिंह की जागीर बनकर रह गई है.

क्या है मजबूरी..

क्या कौशिक एक चम्तकारिक नेता है. या उन पर सुरखाब के पर लगे हैं. या फिर वे नौकरशाहों के भरोसे चलने वाली पार्टी में जान फूंकते रहे हैं. ऐसे और भी कई सवाल है जो राजनीति के गलियारों में तैर रहे हैं. वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे कहते हैं- रमन सिंह और सह-संगठन मंत्री यह कभी नहीं चाहते हैं कि प्रदेश की कमान बृजमोहन अग्रवाल या ननकीराम कंवर जैसे किसी दमदार नेता को सौंपी जाए. अगर एक बार ऐसा हो गया तो रमन सिंह और सौदान सिंह का राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो जाएगा. पांडे कहते हैं- जनतंत्र को जाति तंत्र में बदल दिया गया है. अभी तो कौशिक की नियुक्ति के पीछे केंद्रीय नेतृत्व को यह तर्क दिया गया है कि चूंकि कांग्रेस का मुख्यमंत्री कुर्मी समुदाय से है इसलिए नेता प्रतिपक्ष भी पिछड़े वर्ग से होना चाहिए. अगर कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी समुदाय से होगा तो भाजपा भी आदिवासी समाज से ही अध्यक्ष बना सकती है. इधर राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को विधानसभा चुनाव में मिली करारी पराजय के बाद इस बात का अंदाजा है लोकसभा चुनाव में भी बुरी गत होने वाली है. हर लोकसभा में ( केवल बिलासपुर को छोड़कर ) पार्टी को डेढ़ से ढ़ाई लाख मतों के अंतर से पराजय मिली है. मोदी का कोई जादू भी भारी-भरकम मतों के अंतर को पाट पाने में कारगार साबित नहीं होगा. इधर नेता प्रतिपक्ष के चयन के बाद भाजपा को मातृसंस्था मानकर काम करने वाले पत्रकार-लेखक और कतिपय अफसर यह माहौल बनाने में लग गए हैं कि अब डाक्टर रमन सिंह को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनकर पूरे प्रदेश का दौरा करना चाहिए. एक-एक कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करना चाहिए. उन्हें जनता से सीधा जुड़ना चाहिए. डाक्टर साहब को ठीक वो-वो काम करना चाहिए जो कांग्रेस के भूपेश बघेल करते रहे हैं. इधर भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री और उनके अफसरों की कार्यशैली से नाराज लोगों का मानना है कि डाक्टर रमन सिंह इसलिए भी प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं क्योंकि नान, झीरम, पनामा तथा अन्य घोटालों की जांच और उसमें तेजी के बाद उन्हें भीड़ तंत्र की आवश्यकता होगी।

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