बिलासपुर.सिम्स में शार्ट सर्किट से हुई आगजनी की घटना में अब तक हुई चार मासूमों की मौत को लेकर कई सवाल सिम्स प्रबंधन पर उठाया जा रहा है जबकि सिम्स के एमएस और डॉक्टरों समेत घटना के वक्त मौजूद स्टाफ ने भरकस प्रयास कर मासूमों को वार्ड से बाहर निकाल कर दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट किया था इसके बाद भी सिम्स प्रबंधन को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है वही इस घटना के बाद स्वास्थ एवं कल्याण विभाग ने कुछ निर्देश जारी किया है।
एक्सपर्ट व्यू..
सिम्स में हुई आगजनी की घटना को जांच समिति ने असामान्य घटना नही माना है क्योकि ऐसी तमाम घटनाएं होती ही रहती है और इसलिए ऐसी आपदा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए जानकारों की माने तो अमेरिका जैसे अत्यधिक तकनीकी वाले देशों में भी आगजनी की घटनाएं होती है चाहे शार्ट सर्किट से हो या फिर ब्लास्ट किसी भी स्थिति में इन तमाम घटनाओं को टाला नही जा सकता है।
डॉ सिंह कहिन..
‘Omg news network’ से खास बातचीत में सिम्स के एमएस डॉक्टर बीपी सिंह ने पूरी घटना की जानकारी दी और मासूमों को बचाने के प्रयास पर विस्तार से बताया उन्होंने कहा कि आवश्यकता है तो इन घटनाओं से बचने का और सिम्स प्रबंधन ने भी यही किया यदि समय पर सही निर्णय नही लिया होता तो शायद 20 के 20 नवजात सिम्स में ही स्वाहा हो गए होते पिछले नवम्बर के महीने में डॉ सिंह के द्वारा आपदा प्रबंधन पर कार्यशाला आयोजन किया गया था और लगभग 120 लोगो को आगजनी की घटना से बचने के उपाय बताए गए इस कार्यशाला का सही उपयोग भी हुआ और कार्यशाला सफल भी हुआ आग लगने की घटना पाकर ना सिर्फ अधीक्षक घटना स्थल पर पहुचे बल्कि वे सभी कर्मी भी तत्परता से घटना स्थल पर पहुच गए थे डॉ सिंह के जोर से आवाज लगाने पर तत्काल अग्निशमक ले आया गया और खुद डॉ सिंह अपने मोबाइल टार्च की रोशनी दिखाते हुए खड़े होकर आग को बुझवाते हुए लोगो को गाइड भी किया इस काम मे लगे तीन लोग घायल भी हुए इसी बीच ऊपर के फ्लोर में धुंए की खबर पाकर डॉ सिंह भागते हुए नेनेटल केअर यूनिट के बरामदे पहुचे वह पूरा अंधेरा बिना लाइट के बच्चों को देख रहे चिकित्सको से चर्चा की और इसी बीच मेडिसीन के डॉ लखन भी वहा पहुंच गए थे निर्णय ये हुआ कि बिना लाइट के बच्चों को बहुत देर रखा जा नही सकता और लाइट आने की संभावना भी नही थी फिर हल्का धुंआ भी यूनिट के अंदर घुस रहा था जिससे बच्चो की जान जा सकती थी बाहर का धुँवा हटाने के लिए खिड़कियों के शीशों को तोड़ने के अलावा कोई चारा नही था और साथ ही साथ बच्चो को सुरक्षित किसी दूसरे स्थान में स्थानांतरित करना बस क्या शिशु रोग के डॉ राकेश मेडिसिन के डॉ लखन और अधीक्षक सिंह ने निर्णय लिया और मौखिक जानकारी डीन को दी और सहमति लेकर बच्चो को सुरक्षित दूसरे वार्ड में परिचरिको और सुरक्षाकर्मियों की मदद से पूरे लाइफ सुपोर्ट के ले गए थे।
इस काम को इतनी फुर्ती से किया गया कि 20 बच्चों को मात्र 15 से 18 मिनट में हटा लिया गया तब तक नीचे दमकल और तमाम लोग पहुच चुके थे अब जरूरत थी बच्चो को दूसरे नेनेटल केअर यूनिट की और समस्या थी ले जाये तो ले जाए कहा पर जिला चिकित्सालय डॉ भाटिया से बात हुई उन्होंने बताया कि उनके यह 10 -12 मरीज रखे जा सकते है और फिर बात हुई डॉ श्रीकांत गिरी से जिनके यंहा भी 10 -12 मरीज रखें जाने की सहमति मिल गई फिर क्या था डॉ बी पी सिंह भागते हुए नीचे गए और ऊपर दोनो डॉक्टर को समझा दिया कि जैसे ही मै मोबाइल से बताऊंगा तुम बच्चों को लाइफ सपोर्ट के साथ नीचे भेजना और पहले गंभीर नवजातों को भेजना नीचे जाकर डॉ सिंह ने ट्रामा एम्बुलेंस और दूसरे एम्बुलेंस को लाइन अप किया ऊपर मोबाइल से बात की और सिक्योरिटी गार्ड्स को एक खाली जगह बनाने का आदेश दिया सुरक्षकर्मियो ने आदेश का पालन करते हुए मरीजो को बाहर रोक कर अंदर से नवजातों को लेकर आने वाली परिचारिकाओं को रास्ता बना दिया और पलक झपकते सब के सब बच्चे पहले शिशु भवन और फिर जिला अस्पताल भेज दिए गए प्रत्येक खेप में डॉ और नर्स साथ भेजे गए जिन दो बच्चो को अत्यधिक गंभीर बताया गया उन्हें अम्बु बैग के सहारे भेजा गया था बच्चो को स्थानांतरित करने का पूरा काम भी एक से देढ़ घंटे में पूरा हो गया इतना ही नही फिर उन बच्चों को जा कर सेटल करना जिसमे जिला चिकित्सल्य में एक शिशुरोग विशेषज्ञ, 2 जूनियर डॉक्टर और तीन नर्स ले जाकर उनकी देखभाल शुरू और शिशु भवन में डॉ राकेश खुद वहा के डॉक्टरों के साथ उपचार में भिड़े हुए थे इधर सिम्स में लौट के आने के बाद जनप्रतिनिधियों के आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया था।
फिर शुरू हुआ नेताओ के पहुचने का दौर..
जिला विधायक शैलेश पांडे, तखतपुर विधायक श्रीमती रश्मि सिंह, कलेक्टर , एस पी , और कुछ देर बाद मंत्री जय सिंह अग्रवाल ने भी सिम्स का दौरा किया जिसके बाद सिम्स प्रबंधन को कटघरे में खड़ा कर जांच की आंच में बिठा दिया गया जबकि जो हुआ और जिन परिस्थितियों में सिम्स के डॉक्टर्स और स्टाफ ने अपने साहस का परिचय देते हुए काम किया उस पर किसी ने भी सिम्स के उन अधिकारियों को शाबाशी नही दी जिनके सूझ बूझ से इतना बड़ा हादसा टला और बहुत सी जाने बच गई।
अब जांच की आंच में बैठा सिम्स..
हमेशा की तरह फिर से इंसानियत की रक्षा करने वालो को ही जांच की आंच झेलना पड़ा लोगो के ताने सुनने पड़ रहे हैं मानव अधिकार आयोग ने भी अपनी उपस्थिति जताई और मीडिया में अपनी बातें रखी और डॉक्टर्स के चद्दर, दवा में अपना ज्ञान झलकाकर लोगो को महिमा मंडित करने की कोई कसर नही छोड़ी सिम्स के जिस फ़ाइल का गर्दा झाड़कर देखा जाना चाहिए था उस पर किसी ने घ्यान नही दिया और मामला जस का तस फिर किसी नई घटना की तलाश में चुप बैठ पड़ा है हमेशा की तरह आग बुझाने वाली दमकल आग बुझने के आधे घण्टे बाद पहुची थी आपदा प्रबंधन का दम्भ भरने वाले रेडक्रॉस में वलिटीएर्स भी अपने काम मे व्यस्त थे गौरतलब है कि सिम्स के नेनेटोलॉजी यूनिट में ना तो आग लगी थी और ना ही किसी बच्चे की मौत आग या उसके धुंवा उठने से हुई पर तमाम लोगो ने बड़े आश्चर्यजनक ढंग से बताया कि दो नवाजातो की मौत आग लगने से हुई हैं।
बस मंत्री-विधायक से संतुष्ट..
वैसे तो सिम्स के डॉक्टर्स और स्टाफ इतना कुछ करने के बाद भी आलोचनाओ को झेल रहे है किसी ने उनकी तारीफ नही की तो वही स्वास्थ मंत्री टीएस सिंह देव और नगर विधायक शैलेश पांडेय की बातों से बहुत नही तो जरा सा ही सही सिम्स प्रबंधन संतुष्ट नजर आ रहा है इस पूरी घटना के बाद यदि किसी ने बच्चो और चिकित्सको की सुध ली तो वे थे नगर विधायक शैलेश पांडेय जिन्होंने पहले ही दिन डॉक्टरों का पीठ थपथपाई और नवजात शिशुओं के परिजनों को सभी उपचार निशुल्क देने का वादा किया तो वही दूसरे मंत्री टी एस सिंह देव ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया डॉक्टर तो दोषी नही है फिर भी जांच होगी और दोषियों पर करवाई होगी क्योकि पुरानी सत्ताधारी पार्टी और उनके भेजे गए एजेंट जांच चाहते है।