पिथौरा – नगर से मात्र सात किमी अंचल में स्थित मुढ़िपार के आश्रित ग्राम अर्जुनी यह कभी पूर्ववत के कौड़िया जमीदार क्षेत्र हुआ करता था, वर्तमान में यह पुरतित्व करिया धुरवा एवं करिया धुरवाइन की बेशकीमती प्राचीनकाल मूर्ति स्थित है। वर्षो से नगर सहित अंचल के श्रद्धालु यहाँ मन्नते मांगने आते है, प्रतिवर्ष अगहन माह में 3 दिवसीय सुप्रसिद्ध जोरदार मेला लगता है जहाँ दूर दूर से श्रद्धालु आते है उनकी की गयी सभी मुरादे पूरी होती है,।।
ग्राम स्थित बुजुर्गो किवदंती के अनुसार सैकड़ो वर्ष पूर्व क्षेत्र में कौड़िया राजा करिया धुर्वा अपनी बारात लेकर जा रहे थे तात्कालिक काल में 6 महीने का दिन एवं 6 माह की रात हुआ करती थी, विवाह पूर्व दोनों पक्षों ने तय किया था दिन रहते ही वरमाला एवं शादी व्याह की रस्मे पूरी हो जानी चाहिये किन्तु तयानुसार ऐसा नही हो सका.
नियमानुसार दोनों पक्षों के लोग अपने साजो सामान के साथ पत्थर में तब्दील हो गए, तबसे लेकर आजतक वे पत्थर रूपित पूजते आ रहे है।।
उत्तर में धुरवा पक्ष के सभी लोग पूर्व में धुरवाइन की सेना आज भी मूर्ति रूप में मौजूद है।
बरसो से उक्त मूर्ति खुले रूप से बहार ही थी किन्तु वर्तमान में श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर बनाया जा चूका है, ये मूर्ति पाषाणकालीन तथा बहुमूल्य है बताया जाता है एक बार किसी व्यक्ति ने लालच में आकर बेशकीमती मूर्ति को चुरा ले गया, किन्तु उस व्यक्ति के साथ ऐसी परिस्थिति निर्मित हुयी की चोर मूर्ति को लेकर परेशानियों में घिर गया, मूर्ति वापस मंदिर लाना चाहा किन्तु उसकी मौत हो गयी, घटना के पश्च्यात और भी आस्था का केंद्र बन गया।। तबसे कोई भी नुकसान नही पहुचाते बल्कि ग्राम समेत आसपास के लोग सहयोग इत्यादि करते रहते है, करिया धुरवा के तीन भाई थे बड़े भाई सिंगा धुरवा धमतरी के जंगल में स्थापित है मंझला भाई कथला धुरवा बार जंगल के किसी पहाड़ी पर स्थापित है,,
लोगो के आस्था और विश्वास के स्वरुप यहाँ प्रतिवर्ष अघहन माह के अंत में 3 दिवसीय मेला लगता है, दूर दूर से श्रद्धालु आते है जहाँ सभी मन्नते पूरी होती है, विशेषकर संतानहीन दंपत्ति परिवार के साथ आकर पूजा करते है , माना जाता है यह पूजन मात्र से गोद भर जाती है,
वर्ष भर श्रद्धालु मन्नते करते रहते है,
लोगों के अनुसार कुछ मन्नते पूरी होने से पशुबलि भी देते है।।
समिति के अध्यक्ष प्रेमशंकर पटेल ने बताया आयोजक समिति द्वारा आज दूसरे दिन रविवार दीवाना पटेल नाईट का कार्यक्रम एवं अंतिम दिन सुनील सोनी नाईट (दुर्ग भिलाई) का आयोजन किया गया ।।