राजकुमार सोनी’
रायपुर.भले ही पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह मंगलवार को हार की समीक्षा के बहाने राजनांदगांव से यह कहकर लौट आए हैं कि सिर्फ चुनाव हारे हैं, हौसला परास्त नहीं हुआ है, लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा का एक मजबूत धड़ा उन्हें हर तरह की जिम्मेदारी से मुक्त देखना चाहता है. भाजपाइयों का कहना है कि पन्द्रह साल तक मुख्यमंत्री बने के दौरान रमन सिंह ने कभी भी कार्यकर्ताओं की सुध नहीं ली. वे केवल और केवल भ्रष्ट और आततायी अफसरों के संरक्षक बने रहे. अब जबकि प्रदेश से भाजपा का सुपड़ा साफ हो गया है तब प्रदेश का दौरा कर कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने और खुद को पार्टी का सर्वे-सर्वा बताने की कवायद कर रहे हैं.
कहीं कोई सुनवाई नहीं..
चुनाव में करारी पराजय के बाद राजनीतिक गलियारों में सिर्फ और सिर्फ इसी बात की चर्चा है कि हार पर मंथन कब होगा. भाजपा के एक सक्रिय कार्यकर्ता का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक और पूर्व मुख्यमंत्री को सबके साथ मिल-बैठकर यह जान लेना चाहिए था कि छत्तीसगढ़ में पराजय की वजह क्या है, लेकिन यह काम अब तक प्रारंभ नहीं हो पाया है. जिस चाउंर वाले बाबा ने पन्द्रह सालों तक राज किया उसकी पार्टी का महज पन्द्रह सीटों पर सिमट जाना शर्मनाक मामला है. नाराज कार्यकर्ताओं का कहना है कि भाजपा में अनुशासन की बात तो खूब की जाती है, लेकिन इस बार के चुनाव में पर्दे के पीछे से अनुशासन तोड़ने वालों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गई थी. कार्यकर्ताओं की माने तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंद्ध होने के बावजूद संगठन मंत्री भी शिकायतों पर ध्यान नहीं देते थे. पवन साय के पहले संगठन मंत्री राम प्रताप सिंह थे, लेकिन जल्द ही वे राज्य वनौषधि बोर्ड के अध्यक्ष हो गए और लालबत्ती में घूमने लगे. राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री सौदान सिंह का डेरा भी छत्तीसगढ़ में जमता रहा मगर असंतुष्ट कार्यकर्ता उन तक भी अपनी पहुंच नहीं बना पाए.प्रदेश भाजपा के एक कद्दावर नेता ननकीराम कंवर ने चुनाव से ठीक तीन महीने पहले प्रदेश के निरकुंश और भ्रष्ट अफसरों की जानकारी राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक भी पहुंचाई थीं, लेकिन दस्तावेजों के साथ शिकायत करने के बाद भी उनकी भी सुनवाई नहीं हो पाई. खबर है कि एक मंत्री ने भी भाजपा के शीर्ष नेताओं को अफसरों की करतूतों के बारे में बताया था तब उनसे कहा गया था- क्या बात करते हो… कौन भ्रष्ट नहीं है. अगर कोई भ्रष्ट है तो उनसे अपने पक्ष में काम लेना सीखिए. मंत्री जी इस उत्तर के बाद खामोश हो गए थे.
कौन बनेगा नेता प्रतिपक्ष..
राजनीतिक गलियारों में जहां कांग्रेस के मंत्रिमंडल के गठन को लेकर बातें हो रही है तो दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष के संभावित नामों को लेकर भी खबरें छप रही है. फिलहाल विधायकों का नेता कौन होगा इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. बहुत से भाजपाई बृजमोहन अग्रवाल को नेता प्रतिपक्ष देखना चाहते हैं। भाजपाइयों का कहना है कि बृजमोहन में सबको साथ लेकर चलने की क्षमता है सो उन्हें हर हाल में नेता प्रतिपक्ष बना देना चाहिए. दूसरी ओर भाजपाई रमन मंडली के हथकंडों को लेकर भी सशंकित है. बहुत से भाजपाई मानते हैं कि जिस रमन के पन्द्रह साल के कार्यकाल में तमाम आदिवासी लीडर साइड लाइन कर दिए गए. योग्य और क्षमतावान लोगों को पनपने नहीं दिया गया तो जाहिर सी बात है कि बृजमोहन अग्रवाल के नेता प्रतिपक्ष बनने के मार्ग में रोड़े अटकाए जाए. उनका नाम कभी आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. सुपर सीएम के नाम से विख्यात अफसर का गिरोह तो यह भी प्रचारित कर रहा है कि भाजपा को रमन सिंह ने नहीं बल्कि बृजमोहन अग्रवाल ने हरा दिया. इस तर्क के साथ एक वर्ग यह भी कहने को मजबूर हुआ है कि कल तक जो नेता भाजपा के लिए संजीवनी और संकटमोचक था वह अचानक खलनायक बनाया जा रहा है. कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि अगर बृजमोहन की वजह से भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई है तो निश्चित रुप से वे रमन सिंह से ज्यादा ताकतवर नेता हैं.किसी भी सूरत में ऐसे नेता को नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंप देनी चाहिए. प्रदेश में पिछड़े और आदिवासी वर्ग से ही नेता प्रतिपक्ष चुनने की परम्परा रही है सो अध्यक्ष पद के लिए सबसे उपयुक्त ननकीराम कंवर को ही माना जा रहा है. भाजपा के बहुत से लोग रमन सिंह में आडवाणी देखने के पक्षधर हैं. ऐसे सभी लोगों का कहना है कि अब रमनसिंह को मार्गदर्शन मंडल में शामिल कर देना चाहिए ताकि सही समय पर सही मार्गदर्शन मिलता रहे. अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोकसभा की 11 सीटों पर भी पराजय हो जाएगी. भाजपाई मान रहे हैं कि चाउंर वाले बाबा के नाम से विख्यात रमन सिंह अपनी लोकप्रियता खो चुके हैं. अफसरों की करतूतों ने उनके चेहरे को मलिन कर दिया है.