‘राजकुमार सोनी’
रायपुर.पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के फेसबुक पेज पर मंगलवार को दंभ से भरी हुई एक अजीब सी तुकबंदी कविता सुनने को मिली. पहले कविता का उल्लेख कर देता हूं फिर आगे कोई बात लिखूंगा. तो महान रचना इस तरह की है..
बदले की जांच से भला, सत्य को कहां आंच आई है
संख्या में अधिक हो जाने से भला
क्या सियारों ने सिंह पर विजय पाई है
गरीबों को चावल देना, तुम्हारी नजर में अपराध है.
मेरे आदिवासी भाइयों का, क्या सरई का बीजा खाना याद है
भूखों को खाना देना अगर मेरे अपराध में गिना जाएगा
तो लाख डिगा ले कदम मेरे, ये अपराध फिर से किया जाएगा
अपने द्वेष के तराजू में मेरे कर्मों को क्या तौलोगे
वर्षों सेवा किया है हमने क्या उस पर भी कुछ बोलोगे
झूठे वादों से तुम पहुंचे हो, अब उन्हें पूरा करने की बारी है
मेरे हौसलों को तोड़ने की चेष्टा न कर
मेरे साथ मेरी छत्तीसगढ़ महतारी है..
वाह- वाह… वाह… वाह… धांसू… धांसू… गजब… गजब…कहना तो मुश्किल होगा लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि यह कविता सुरेंद्र दुबे शैली की है. इस तुकबंदी कविता में साफ तौर पर जांच का डर नजर आता है. लगता है कि रमन सिंह जांच से विचलित हो गए हैं और खुद को संभालने के लिए कविता-कहानी का सहारा ले रहे हैं. यह सही है कि गरीबों और भूखों का पेट भरना अपराध नहीं है, लेकिन जरूरत से ज्यादा राशनकार्ड बनाकर गरीबों और भूखों का चावल और उसका पैसा हड़प लेना क्या अपराध की श्रेणी में नहींं आता है. कहते हैं कि राजनीतिज्ञ कभी सेवानिवृत नहीं होता. यह बात सौ फीसदी सत्य भी है, मगर जनता द्वारा खारिज किए गए सत्य को भी समय रहते स्वीकार कर लेना समझदारी मानी जाती है.अभी तक रमन सिंह यह मानने को तैयार नहीं है ( शायद ) कि उनके दल को जनता ने खारिज कर दिया है. जनता ने उनके वर्षों की कथित साधना और तपस्या पर जिस तरह का पुरस्कार देने लायक समझा उन्हें उस तरह का पुरस्कार दे दिया है. उनके और उनके कद्दावर अफसरों की अनवरत साधना का ही नतीजा है कि उनकी पार्टी महज पन्द्रह सीटों पर सिमटकर रह गई है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सत्ता संभालने के बाद जिस रोज झीरम घाटी की जांच की घोषणा की उसी दिन से रमन सिंह यह कहते आ रहे हैं कि नई सरकार बदलापुर की राजनीति कर रही है. वैसे रमन सिंह ने बदलापुर-बदलापुर कहते-कहते कभी यह नहीं कहा कि आखिर उन्होंने भूपेश बघेल के साथ ऐसा क्या कर दिया था जिसकी वजह से उन्हें बदला लेने की जरूरत पड़ रही है. जहां तक कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से भूपेश बघेल की भूमिका की बात है तो वे काफी पहले से यह कहते रहे हैं कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो झीरम घाटी की घटना की जांच होगी. नान घोटाले की जांच होगी. पनामा पेपर में छत्तीसगढ़ के नवाज शरीफ को जेल भेजा जाएगा. अंतागढ़ टेप कांड की जांच की मांग वे कई स्तरों पर कर चुके हैं. फिर भी पूर्व मुख्यमंत्री को अगर लगता है कि भूपेश बघेल उनसे किसी खास बात का बदला ले रहे हैं तो उन्हें जनता को बताना ही चाहिए कि उन्होंने भूपेश बघेल के साथ ऐसा क्या किया था?
बदलापुर-बदलापुर की चीख-चिल्लाहट के पीछे का एक मजेदार तथ्य यह भी है कि यह आवाज सिर्फ और सिर्फ रमन सिंह की तरफ से उठ रही है. एक- दो हारे हुए नेता भी बदलापुर-बदलापुर कर रहे हैं, लेकिन शेष भाजपा के किसी भी बड़े नेता ने यह नहीं कहा कि भूपेश बघेल बदलापुर की राजनीति कर रहे हैं. वैसे पूर्व मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चिट्टी-पत्री सौंपकर यह क्यों कहा कि साहब… मुकेश गुप्ता के खिलाफ जांच करवा दीजिए.सुना तो यह भी जा रहा था कि सुपर सीएम की पदवी से विभूषित अमन सिंह केंद्र में अपनी नौकरी-चाकरी का जुगाड़ बिठाने में लगे थे, लेकिन इधर हाल के दिनों में उनके ही खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय ने जांच के लिए राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख दिया है. अब अगर पीएमओ के पत्र पर जांच प्रारंभ हो जाएगी तब भी क्या रमन सिंह यहीं कहेंगे कि बदलापुर की राजनीति हो रही है? यह एक यक्ष प्रश्न तो है कि जांच की मांग उनके ही विधायक कर रहे हैं. पीएमओ राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कह रहा है कि जांच करिए.
सिंह और सियार..
कविता में किसी चंद्रवरदाई ने रमन सिंह को सिंह यानि शेर बताया है और कहा है कि संख्या बल में अधिक हो जाने बावजूद सियार कभी भी सिंह पर विजय नहीं पा सकते. हालांकि कविता पढ़ने वाले की आवाज काफी महीन और पतली है जिसे सुनकर सिंघम के आ जाने का अहसास रोमांच के बजाय हास्य में बदल जाता है. पाठकों को याद होगा कि अभी हाल के दिनों में विधानसभा में पूर्व संसदीय मंत्री अजय चंद्राकर ने भूपेश को राजा बताते हुए कहा था कि वे अपने स्वभाव के कारण राजा बने हैं जानवरो के कारण नहीं. उनकी इस टिप्पणी के बाद खूब बवाल मचा था. सत्तापक्ष के विधायकों ने जानवर बताए जाने पर जोरदार आपत्ति जताकर अपना विरोध दर्ज किया था.
अब एक बार फिर संख्या बल में अधिक लोगों को सियार की उपाधि दी गई है. भले ही वह उपाधि कविता में दी गई है. लेकिन जंगल/ सिंह/ शेर/ सियार… इन शब्दों को देखकर लगता है कि रमन सिंह अब भी जंगल से बाहर नहीं निकल पाए हैं. राजनीति के एक बड़े जानकार की टिप्पणी है- जब कोई जनता के दिलों में राज करने के बजाय जंगल में राज करने की फितरत पाल लेता है तो ऐसा शख्स खुद को सिंह बताकर अन्य लोगों को सियार-गीदड़, बंदर-भालू कहने से बाज नहीं आता. पता नहीं रमन सिंह जंगल से कब बाहर निकलेंगे. अब तो रमन सिंह को जंगल से बाहर निकल जाना चाहिए. पन्द्रह सीटों पर सिमटी हुई पार्टी का कोई नेता अगर बहुमत हासिल करने वाली पार्टी के विधायकों को सियार या गीदड़ कहता है तो यह बहुमत के साथ-साथ लोकतंत्र का अपमान भी है. जो कविता रमन सिंह ने पोस्ट की है वैसी कविता तो आजकल कोई हारा हुआ पार्षद भी पोस्ट नहीं करता है.