शिवा कुमार
दिल्ली. चुनावी प्रचार में मोदी और भाजपा सरकार को मात दे रहे राहुल गांधी के नेतृत्व में बढ़ रही कांग्रेस बिहार में ही राजद के पीछे चलने को मजबूर है। इसके पीछे हड़बड़ी में बनाए गए प्रभारी अध्यक्ष कौकब कादरी की महत्वकांक्षा हिलोर ले रही है। वे लालू की कृपा पाकर विधान परिषद् पहुंचने के जुगाड़ में हैं। वे जानते हैं कि पटना और दिल्ली की चक्कर लगाकर उनके राजनीतिक आका अखिलेश प्रसाद सिंह ने राजद में अपनी वापसी की पूरी पृष्ठभूमि बना चुके हैं और कभी भी लालू इसकी घोषणा भी कर सकते हैं। सूत्रों की माने कि राजनीति में पुर्नस्थापित होने के लिए बिहार सदन में घूसने के लिए हाल ही में मुद्रिका यादव की असामयिक मृत्यु के बाद जहानाबाद की विधानसभा के रास्ते उपचुनाव के रास्ते विधानसभा पहुंचने की तिकड़म में लगे हैं। उनकी कोशिश है कि वे कांग्रेेस के उम्मीदवार बन लालू का समर्थन ले लें और राहुल के बढ़ते प्रभाव का लाभ लेते हुए अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ा लें। दरअसल यहां भूमिहार और यादव की कांबिनेशन के जरिए वो चुनावी जीत हासिल करने की फिराक में हैं। राजद से छोड़ने के बाद से अब तक वे कोई चुनाव नहीं जीत पाए।
नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर बिहार में कौकब कादरी ने अखिलेश सिंह को प्रदर्शन के लिए विशेष रूप से तैनात रहने का निर्देश दिया था। मगर एक दिन पहले अखिलेश ने मौखिक रूप से मना कर दिया। इसी बीच प्रभारी अध्यक्ष से मिलने पहुंचे सीवान जिले से नए कांग्रेसी डेलीगेट बने विजय शेख चट्टान को आनन-फानन में कादरी ने चिट्ठी देकर उनको मुजफ्फरपुर में नोटबंदी के खिलाफ धरने में पर्यवेक्षक बनाकर भेज दिया।
बिहार की राजधानी में कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष नोटबंदी के विरोध में प्रदर्शन करता नजर आया। मगर कांग्रेस पटना में राजद के पीछे खडे़ रही। लालू की कृपा से अध्यक्ष बनने की मंशा पाले प्रेमचंद मिश्रा और प्रभारी अध्यक्ष कौकब कादरी और अध्यक्ष के दावेदार विधानपरिषद् में नेता मदन मोहन झा और विधानसभा में नेता सदन सदानंद सिंह भी मौजूद थे। आश्चर्य इस बात की है कि इनमें से किसी नेता की हैसियत पहली पंक्ति में बैठने की नहीं थी। यही वजह रही कि ये लोग राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और वरिष्ठ राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी के पीछे वहां नजर आए।वहीं नीतीश के समर्थक कांग्रेसियों ने इस प्रदर्शन से कन्नी काट ली। अध्यक्ष की दौड़ में श्याम सुंदर सिंह धीरज ने यूथ कांग्रेस द्वारा आयोजित अधनंग प्रदर्शन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। धीरज यूथ कांग्रेस का मोह नहीं छोड़ पा रहे।
बिहार में बदले राजनीतिक समीकरण में नीतीश ने पाला बदलकर भाजपा के साथ बैठकर सरकार चलाने का फैसला आनन-फानन में नहीं था, ये सोचा-समझा राजनीतिक कदम था, जिस तरीके से सृजन घोटाले में 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, उसका आखिरी सिरा कहीं न कहीं नीकु के घर अन्ने मार्ग पहुंचता है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे में नीतीश ने हत्या के एक मामले में अपने नामजद होने का मामला छिपाया है, उस पर संज्ञान लिए जाने और सुनवाई किए जाने के गंभीर परिणाम आने बाकी हैं और नीतीश का ताज जाना तय माना जा रहा है। आपको बता दें कि नीतीश कुमार के हटने की स्थिति में लालू को कोई फायदा नहीं होने वाला, लेकिन भाजपा की सरकार बनने का रास्ता तय हो जाएगा। इस परिस्थिति का आकलन करते हुए राजद में भी राजद सुप्रीमो के खिलाफ बगावत के सुर तेज हो गए हैं। लालू के विश्वस्थ माने जाने वाले अब्दुल बारी सिद्दिकी, जो पार्टी के बिहार ईकाई के अध्यक्ष और नेता सदन रह चुके हैं, उन्होंने तेजस्वी को नेता मानने से सार्वजनिक रूप से इंकार कर दिया है.
आने वाले चुनाव में बिहार से चौकाने वाले परिणाम देखने को मिल सकते हैं। अगर कांग्रेस अकेले निकल पड़ी तो राहुल का नेतृत्व कांग्रेस को अप्रत्याशित रूप से सफलता दिला सकता है. देखना है कि गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस का कमान संभालने वाले राहुल गांधी राजद सुप्रीमो से अपनी बनाई हुई दूरी को और बढ़ाते हैं या फिर नए सिरे से कांग्रेस को जमीन पर लड़ने को तैयार करते हैं।