‘शिवा कुमार’
नई दिल्ली। नए साल से तीन दिन पहले कांग्रेस का स्थापना दिवस कई मायनों में बेहद खास रहेगा। छग में अब जोगी खेमे के वापसी की सारी संभावनाएं खत्म होती दिख रही हैं. नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी मुख्यालय में झंडा सलामी करेंगे और कांग्रेसियों को एकजुट रहने के साथ आगामी चुनावों में अपने गुजरात चुनाव के अनुभवों को भी साझा करेंगे। इसके साथ ही एआईसीसी में बैठी पुरानी टीम के सफाये की शुरुआत होगी।
माना जा रहा है कि राहुल गांधी की राजनीति का सबसे ज्यादा असर अहमद पटेल पर पड़ने वाला है। पटेल वर्किंग कमिटी में फूट-फूट कर रोए और अपनी गलतियों का अहसास करते हुए उन्होंने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा से सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। गुजरात चुनाव में कांग्रेस की हार तय करने में उनकी भूमिका के सारे राज सार्वजनिक हो चुके थे। अब तक सोनिया गांधी का विदेशी होना इनके लिए मुफीद रहा। अहमद ने राजनीतिक सलाहकार बनकर सोनिया को 10 जनपथ में अपने सिपाहसलारों से राजनीतिक रूप से कैद कर दिया और परिवार के वफादारों धवन, फोतेदार, जार्ज को विलेन बना दिया।
इसके अलावा अलग-अलग प्रदेशों से इंदिरा-राजीव-सोनिया-राहुल के वफादार नेताओं को चुन-चुनकर उनके टिकट काटे। उनको राज्यसभा में आने से रोका। उसके बदले पंचायत में भी न जीत सकने वाले अहमद-आस्कर ने अपने वफादारों को कांग्रेस में पद बांटे और एआईसीसी के मुख्यालय पर कब्जा बनाए रखा। कांग्रेस में टिकट बेचने का खेल को पूरा संरक्षण अहमद एंड कंपनी ने किया। उन्होंने आस्कर और मुकुल वासनिक जैसे लोगों के माध्यम से यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस और सेवा दल जैसे संगठनों को मुख्यालय तक ही समेट दिया। सेवा दल जिसके हाथों में लाठी के साथ बूथ पर खड़े रहने की जिम्मेदारी थी, उसकी उपस्थिति अब केवल कांग्रेस के कार्यक्रमों में चौकीदारी की रह गई है।
जब राहुल गुजरात के चुनाव में व्यस्त थे तो झारखंड में आनन-फानन में पुलिसिया नौकरी छोड़ नेता बने डा अजय कुमार को सूबे का अध्यक्ष बना दिया गया। बड़ी मुश्किल से झारखंडी नेताओं से एक बीडीओ सुखदेव भगत से पीछा छुटाया था, मगर झारखंड का प्रदेश कार्यालय सीटी एसपी का दफ्तर बनकर तैयार हो चुका है. राजपूतों में राजपूत, भूमिहारों में भूमिहार और खुद को कुर्मी बताकर झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह को झांसा देने में भी कामयाब रहे। यह सब अहमद का ही खेल था।
आरजी आफिस के सूत्र बताते हैं कि अहमद द्वारा किए गए सभी फैसलों की समीक्षा होगी। अहमद के पहले आस्कर भी फूट-फूट कर रोए थे और राज्यसभा में वापसी कर ली थी । अब अहमद और उनके चंपू आक्रामक रूप से राहुल की टीम में कोषाध्यक्ष बनाने की वकालत कर रहे हैं। अहमद के रोने वाले ड्रामा के बाद उनके समर्थकों के चेहरे भी उतर गए हैं। जनार्दन द्विवेदी, मोहन प्रकाश, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, आस्कर फर्नांडीस, सीपी जोशी के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई है, वहीं दिग्विजय सिंह का पूजा-पाठ जारी है। उनकी परिक्रमा उनको कहां खड़ा करेगी, ये राहुल तय करेंगे। एक जमाने में उनके विश्वस्त और राहुल सखा कनिष्क सिंह भी उनसे बेहद नाराज चल रहे हैं।
70-80 के दौरान कांग्रेस की वापसी कराने वाले उस समय के युवा छात्र नेताओं पर राहुल की टीम काम कर रही है। वहीं 91-96 तक सोनिया के साथ रहकर अपनी राजनीति को दांव पर लगाने वाले नेताओं की पहचान भी राहुल गांधी कर रहे हैं। मुस्लिमपरस्त वाली छवि से वर्किंग कमिटी को मुक्त कराना राहुल की प्राथमिकता होगी। राहुल की नजर में प्रदेशों के वे नेता भी हैं जिनको अहमद ने कांग्रेस डेलीगेट्स तक बनने से रोक दिया। मधुसूदन मिस्त्री के माध्यम से अहमद ने अच्छा-खासा राहुल को नेता मानने वाले नेताओं के पर काटे थे, कांग्रेस अध्यक्ष इसका भी हिसाब लेंगे। गांधी परिवारों के वफादारों की लंबी फेहरिस्त है। बिहार में भी कांग्रेस का चेहरा बदलेगा और 77-80 के दौरान कांग्रेस की वापसी कराने वाले नेताओं पर राहुल मंथन कर रहे हैं। राहुल, नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी से आमने-सामने लड़कर राजनीति में हाशिए पर खड़े नेताओं को बड़ा सम्मान दे सकते हैं। ऐसा संकेत उन्होंने बतौर अध्यक्ष वर्किंग कमिटी की पहली बैठक में दिए हैं। महाराष्ट्र के सांसद राजीव सातव राहुल की पसंद हैं। इसका संकेत उन्होंने दो महीने पहले ही विदर्भ से मिलने आए पूर्व मंत्रियों और पूर्व सांसद के प्रतिनिधिमंडल को चर्चा के दौरान दिया था। ये नेता अशोक चव्हान द्वारा टिकट बेचने, डेलीगेट बनाने में पैसों की मांग से बेहद परेशान थे, जिसका जिक्र इन नेताओं ने राहुल के समक्ष साक्ष्य के साथ किया था।
छत्तीसगढ़ में भी राहुल ने कड़ा फैसला लिया था जिसमें उन्होंने अजित जोगी को बाहर का रास्ता दिखाया था। राहुल की माने तो जोगी अपने नक्सली संबंधों और डा रमन सिंह के साथ कांग्रेस के हितों की अनदेखी कर रहे थे। मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ उनकी पसंद हो सकते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जा सकता है ताकि युवा और अनुभवी नेताओं का लाभ मिल सके। ऐसे संकेत मिल रहे हैं, अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह और नेता सदन को भी राष्ट्रीय राजनीति में जगह दी जा सकती है। उत्तराखंड के हरीश रावत की राहुल के दरबार में हीरा सिंह बिष्ट से कड़ी टक्कर है। राजस्थान के अशोक गहलोत निर्विवाद रूप से बड़ी भूमिका में रहेंगे।
हरियाणा की राजनीति दीपेंद्र हुड्डा, अशोक तंवर, रणदीप सुरजेवाला और किरण चैधरी के बीच रहेगी। उड़ीसा से पूर्व सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शरत पटनायक की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। मुकुल राय के भाजपा में जाने के बाद और राहुल के बढ़ते प्रभाव से बंगाल अछूता नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अपनी पार्टी टीएमसी को कांग्रेस से जोड़ सकती हैं, क्योंकि इन दोनों का वोटर एक ही है। राहुल गांधी जनवरी के दूसरे पखवाड़े में अपनी सीडब्लूसी बना सकते हैं।