बिलासपुर. हिंदू धर्म का संत समाज शंकराचार्य द्वारा नियुक्त चार मठों के अधीन है। हिंदू धर्म की एकजुटता और व्यवस्था के लिए चार मठों की परंपरा को जानना आवश्यक है। चार मठों से ही गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता है। चार मठों के संतों को छोड़कर अन्य किसी को गुरु बनाना हिंदू संत धारा के अंतर्गत नहीं आता।
ऐसे बने मठ- शंकराचार्य..
शंकराचार्य जी ने इन मठों की स्थापना के साथ-साथ उनके मठाधीशों की भी नियुक्ति की, जो बाद में स्वयं शंकराचार्य कहलाए जाते हैं। जो व्यक्ति किसी भी मठ के अंतर्गत संन्यास लेता हैं वह दसनामी संप्रदाय में से किसी एक सम्प्रदाय पद्धति की साधना करता है। ये चार मठ निम्न है।
1.वेदान्त ज्ञानमठ..
श्रृंगेरी ज्ञानमठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती तथा पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है तथा मठ के अन्तर्गत ‘यजुर्वेद’ को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य सुरेश्वरजी थे, जिनका पूर्व में नाम मण्डन मिश्र था।
2.गोवर्धन मठ..
गोवर्धन मठ भारत के पूर्वी भाग में उड़ीसा राज्य के पुरी नगर में स्थित है। गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ तथा इस मठ के अंतर्गत ‘ऋग्वेद’ को रखा गया है। इस मठ के प्रथम मठाधीश आद्य शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद हुए।
3.शारदा मठ..
शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में स्थित है। शारदा मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
इस मठ का महावाक्य है ‘तत्त्वमसि’ तथा इसके अंतर्गत ‘सामवेद’ को रखा गया है। शारदा मठ के प्रथम मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक शंकराचार्य जी के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।
4.ज्योतिर्मठ..
उत्तरांचल के बद्रिकाश्रम में स्थित है ज्योतिर्मठ। ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ एवं ‘सागर’ सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के प्रथम मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे।
कांची मठ पर विवाद..
उक्त चार मठों के अलावा तमिलनाडु में स्थित काँची मठ को भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता है किंतु यह विवादित माना गया है।
ये है गुरू परम्परा..
इन मठों तथा इनके अधीन उपमठों के अंतर्गत संन्यस्त संतों को गुरु बनाना या उनसे दीक्षा लेना ही हिंदू धर्म के अंतर्गत माना जाता है। यही हिंदुओं की संतधारा मानी गई है।