फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के आव्हान पर आईबीए के खिलाफ बैंकर्स लामबद्ध हुए और मानव श्रखंला बनाकर जनता का सहयोग लिया। आंदोलनकारी लगातार 48 घण्टों तक यूनियन बैंक की मुख्य शाखा के समीप सभी डटे रहेंगे।
हड़ताल का दूसरा दिन..
यंहा ललित अग्रवाल ने कहा कि पांच साल में एक बार Pay Revision में वेतन वृद्धि कितनी सिर्फ 2%, होती है जबकि 7th Pay Commission के अनुसार केंद्रीय कर्मियों को 23.5% की वेतन वृद्धि हुई है? जबकि इनकी बेसिक पे 18000, और बैंक कर्मचारी की ११००० है । काम के दबाव के बाद भी हमसे पक्षपात हो रहा है।
ये है काम की दशायें
१. बैंकिग कर्मचारियों को सुबह 9 बजे से लेकर रात के 10-11 बजे; छुट्टी के दिन भी काम करना पड़ता है।
२.बैंकिग के नाम पर Life Insurance Policies Mutual Funds, Medical Insurance इत्यादि बिकवाए जाएं और फिर भी प्रश्नचिन्ह।
३. बडे उद्योगपतियों को Loan दे सरकार फिर का ठीकरा हम पर फूटे ।
४. सरकारी नीतियों का फायदा Private बैंकों को, सरकारी बैंकों को योजनाएं को लागू करने का नुकसान।
५. बडे उद्योगपतियों को धड़ाधड़ बैंकिंग के लाईसेंस बांटे जाएं और सरकारी बैंकों का विलय करके उनका कार्य क्षेत्र सीमित।
ये होगा पब्लिक को नुकसान..
Public Sector बैंक ही नहीं रहेंगे तो आम Public के लिए काम कौन करेगा या फिर कुछ निजि कंपनियों एवं बडे उद्योगपतियों को जनता का खून चूसने के लिए छोड़ दिया जाएगा।
हड़ताल बैंक कर्मचारियों की इच्छा नही है बल्कि मजबूरी है। छुट्टी के लिये वेतन कटवाना पड़ रहा है। सरकार के कानों तक बात पहुंछाने में
दीपा टन्डन, लोकनाथ कुर्रे, डी के हाटी, एस बी सिंह, प्रदीप कुमार यादव, सुनील श्रीवास्तव, डी के श्रीवास्तव, दीपक श्रीवास्तव,एन वी राव, अशोक ठाकुर, राजेश रावत, जितेंद्र शुक्ला, शरद बघेल व सौरभ त्रिपाठी, पी के अग्रवाल, रूपम रॉय, एम के पटसानी, अशोक रॉय, कैलाश अग्रवाल, पार्थो घोष, अश्विनी सूद, उर्मिलेश पाठक, दीपक साहू, नरेंद्र सिंह, शिवांगी, सैयदा, दीप्ति, रौशनी, मोनालिशा, मनीषा, पार्थो घोष, अविनाश तिग्गा, शरद यादव, कनक डोंगरे आदि शामिल हुये। प्रदर्शन के बाद मामा-भांचा तालाब से पुराने हाईकोर्ट तक मानव श्रंखला बना कर आम जनता का सहयोग लिया गया।