‘मुंहफट’

‘रवि शुक्ला’

संयोनि भई रेतवाल..

सरकार, पहले समझाए थे कि रेत से तेल मत निकालो नही माने नीलाम कर दिए रेत घाट,अब तो जगह जगह हंगामा मचने लगा है। बिलासपुर जिले में तो वैसे भी रेत की मलाई छानने वाले एक से एक चटोरे बैठे है फिर रेत घाट को लेकर विधानसभा में विपक्ष का हल्ला मचाना भी लाजमी है। ज्यादा दूर क्यों जाए शहर की ठकुराई भी अब तक रेत और मुरुम के भरोसे चलती आ रही है।

ऊपर से सैया भय कोतवाल ,,अरे नही नही संयोनि भई कोतवालीन तो ठाकुर को डर काहे का,बेचे जाओ रेत इतने में मन नही भरा तो अगल बगल के घाट से भी रेत निकाल लो। बस चले तो पूरी नदी बेच खाओ,क्या करेंगे खनिज विभाग वाले पहले भी कुछ नही कर पाते थे। अब तो मंत्री लेवल के दरवाजे झांकने की हिम्मत तक नही बची खनिज और पुलिस वालों में,मगर लोग बोलते हैं कि ऐसा न हो कि चुनाव में रेत कांग्रेस के सिर चढ़ के बोले इसके लिए यही अच्छा होगा कि अभी से सावधान हो जाना चाहिए।

कांग्रेस नायकों की पिटअव्वल..

खलनायक फिल्म में अभिनेता संजय दत्त ने गाना गाया था नायक नही…..अरे वो वाला नही अपन तो शहर के कांग्रेसी नायक की बात कर रहे हैं। सत्ताधारी दल का नेतृत्व उनके पास है शहर का नेतृत्व संभाल रहे हैं इसलिए नायक ही न कहेंगे। बेचारे बे फिजूल की बात पर कुत्ता घसीटी में पीट गए। अरे पीट गए तो पीट गए इसमें मजा लेने की कौन सी बात है। पीटे तो शहर कांग्रेस के एक महानायक भी थे। कौन नही जानता इन महानायक के लाठीचार्ज कांड को,पीटने वाले पीट के निकल लिए अब नायक पीट गए तो मजाक कर रहे हैं।

अब इसमें क्या करे बेचारा सिविल लाइन थाने का एक सब इंस्पेक्टर, नायक जब से पीटे है तब से मामले की जांच और कागजी कार्रवाई का सारा जिम्मा इन पर है यहां तक कि बड़े अफसर के ऑफिस से किसी मामले की जांच के लिए फोन भी आ रहा है तो बेचारा सब इंस्पेक्टर नायक के मामले को पहले निपटा लू फिर आगे का काम करूंगा कह रहे। खैर एक हफ्ता बीत गया मगर नायक को इंसाफ नही मिल पा रहा है। बेकार में शहर के लोग पूछते है कि कांग्रेस के नायक और महानायक पीट तो सरेआम जाते है फिर भी उन्हें न्याय क्यों नही मिल रहा इधर कुछ कांग्रेसी तो मजे के साथ पिटाई की अगली पारी किसकी होगी इस इंतजार में लगें है।

(अपनो पे रहम गैरों पर सितम- बिन ब्रेक लाइट और इंडिकेटर के दौड़ती पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी..)

कोरोना ने निगला वीकली ऑफ..

पुलिस के लिए अमृत के समान होती है साप्ताहिक छुट्टी साल भर पहले डीजीपी ने वीकली ऑफ के रूप में दो बूंद मातहतों को दिया था। शुरू के कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला मगर कोरोना ने पुलिस की इस छुट्टी को निगल लिया। मिन्नतों के बाद वीकली ऑफ मिला वह भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। पुलिस वालों को ले देकर एक दिन पत्नी बच्चों के साथ घर पर रहने को मिल जाता था।

लेकिन इस माह से कोरोना फिर से अपना तेवर दिखा रहा है तो जाहिर है एक बार फिर वीकली ऑफ की उम्मीद पर पानी फिरना ऊपर से अफसर भी साप्ताहिक छुट्टी देने के मूड में नही,ऐसे में करे तो क्या करे। अब कोरोना इस्ट्रेंस सिर पर तबला कूट रहा है। ऐसे उम्मीद नही की वीकली ऑफ जल्द शुरू हो भई करे भी तो क्या करे नौकरी तो करनी ही पड़ेगी।

चर्चा में छोटे दाऊ..

जिले में नगर निगम की मलाई छान के निकल लिए छोटे दाऊ की चर्चा बंद नही हो रही। उनके राज में जब भी उलझे हुए मामले निगम की जद में आता तो अपने एक शहरी साले के माध्यम से सरकारी बंगले में सारी सेटिंग हो जाती रही। वो भी रविवार का दिन तय कर। शुरू से ही अपनी ऐंठन की एक्टिंग को लेकर निगम के कामकाज पर नजरें जमाए रहने वाले छोटे दाऊ की पटरी सत्ताधारी दल के एक खेमे से कभी नही खाई।

अपने दाऊ नाम के अनुरूप उसी के सुने जो उनके करीबी रहे फिर तो संगठन की आँख की किरकिरी बने एक जनप्रतिनिधी की बात तो दूर है। वैसे छोटे दाऊ के कार्यकाल मे उन्होंने ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया। सरकारी बंगले से ही साले साहब के मार्फत सारी मलाई छन जाती नही तो सामने वालो को कार्रवाई का डंडा दिखा दिया जाता। इधर मामला सेट हुआ उधर फाइल आगे बढ़ी। छोटे दाऊ तो सारा माल समेट कर निकल लिए मगर छोड़ गए अपनी वो यादें जिसे लोग भुला नही पा रहे हैं।

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