अंजन कुमार
छत्तीसगढ़ के पत्रकार राजकुमार सोनी द्वारा शंकर गुहा नियोगी जैसे महान श्रमिक नेता और उनके संघर्ष पर डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘लाल जोहार’ का बनाया जाना खौफनाक समय में बेहद महत्वपूर्ण व सराहनीय कदम है.
जब उद्योगपतियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए खेतों और जंगलों को बर्बाद कर हजारों किसानों और आदिवासियों को मजदूर बनने के लिए मजबूर किया जा रहा हो. इस अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाने वाले लोगों और आंदोलनों को बदनाम कर उनका दमन किया जा रहा हो. ऐसे क्रूर, अमानवीय और निरंकुश समय में जब पूरी राजनीति किसी भी प्रतिरोध के सकारात्मक सांस्कृतिक कर्म के खिलाफ हो और अपने आपको पढ़ा-लिखा शिक्षित कहने वाला पूरा का पूरा समाज जब दलाल मीडिया के जाल में फंसकर विवेक शून्य व संवेदनहीन उपभोक्तावादी पशु में तब्दील होकर झूठ की जुगाली करने में लगा हुआ हो…जब सबसे अधिक आंदोलनों की जरूरत महसूस की जा रही हो और तब सामाजिक सरोकारों व अधिकारों से जुड़े आंदोलनों को खत्म करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हो… ऐसे कठिन और भयावह समय मे इस तरह की डॉक्यूमेट्री फ़िल्म का आना यह उम्मीद जागता है कि सुंदर दुनिया का सपना अभी मरा नहीं है.
इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन की शुरूआत, उसके संघर्ष और विकास को बेहद कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है. श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी ने अपनी प्रतिबद्ध कार्यशैली और संघर्ष से व्यापक असंगठित व संगठित मजदूरों को किस तरह जोड़ा तथा एक व्यापक जन प्रतिरोध की ताकत से जनता को कैसे वाकिफ करवाया… यह भी फिल्म का हिस्सा है. उन्होंने अपने आंदोलनों से उद्योगपतियों के भीतर बैचनी और बौखलाहट पैदा कर उन्हें झुका देने की ताकत कैसे हासिल की ? किसी भी आंदोलन में संघर्ष और निर्माण का क्या महत्व होता हैं…इसे विभिन्न घटनाओं के माध्यम से बेहद तथ्यात्मक ढंग से दिखाया गया है. यह फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाती है…शंकर गुहा नियोगी के सजग, संघर्षशील, चेतना सम्पन्न, जुझारू और ईमानदार व्यक्तित्व की विराटता को प्रभावशाली ढंग से सामने लाती है . पूरी फिल्म में शंकर गुहा नियोगी वर्ग संघर्ष की जमीनी लड़ाई को एक व्यापकता प्रदान प्रदान करते हैं और देश के एक बड़े श्रमिक नेता के रूप में उभरकर सामने आते हैं.
इस डाक्यूमेंट्री फिल्म की खासियत यह है कि इसमें नरेशन नहीं बल्कि दृश्य, श्रव्य व क्लिपिंग्स के माध्यम से ही फिल्म सब कुछ कह जाती हैं. इसमें नरेशन अपने विचार या दृष्टि को दर्शको पर थोपता नहीं बल्कि घटनाएं, साक्षात्कार, भाषण, वक्तव्य में विभिन्न व्यक्तियों ने खुलकर जो अपने मत रखे हैं…वह वास्तविकताओं को परत-दर-परत खोलने और बेहतर ढंग से समझने का नजरिया प्रदान करते हैं. फिल्म को देखते हुए पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ कई जरूरी सवाल भी खड़े होते हैं. उद्योगपतियों द्वारा श्रमिकों के प्रति किए जाने वाले भेदभाव, हिंसा, अन्याय और अपने आर्थिक लाभ के लिए किस तरह श्रमिक नेताओं और आंदोलनों का क्रूरता के साथ दमन किया जाता है…यह फिल्म इस सच्चाई को पूरी तथ्यात्मकता और शिद्दत के साथ दिखाती है. फिल्म न केवल अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति से दर्शक को अंत तक बांधकर रखती हैं ब्लकि दर्शक को तार्किक ढंग से विचार और विश्लेषण करने का स्पेस भी देती है.
यह फिल्म अपनी पूरी प्रस्तुति में विभिन्न घटनाओं, दृश्यों, क्लिपिंग्स आदि से संवेदना को कुरदने के साथ ही उस विचार को दृढता के साथ स्थापित करती है जो मनुष्य को व्यापक मनुष्यता की भावना से जोड़ती है. फिल्म लाल जोहार संघर्ष और आंदोनल के प्रति आस्था और विश्वास पैदा करने वाली एक सकारात्मक फिल्म है. यह फिल्म बताती है कि जब तक मनुष्य के भीतर एक बेहतर दुनिया का सपना बचा रहेगा…तब तक शंकर गुहा नियोगी का संघर्ष चलता रहेगा और विचार जिंदा रहेगा.
फ़िल्म में जयप्रकाश नायर, सुलेमान खान, अप्पला स्वामी, शंकर राव, संतोष बंजारा, राजेन्द्र पेठे, गांधीराम, ईश्वर सहित कई कलाकारों ने बेहतर काम किया है. फ़िल्म का संपादन बेहद कसा हुआ है जिसके चलते फ़िल्म का कंटेंट जोरदार ढंग से उभरता है. डीओपी और सह निर्देशक तत्पुरुष सोनी का काम भी उल्लेखनीय है. हर विवेकशील दर्शक को फिल्म लाल जोहार अवश्य देखनी चाहिए.