‘रवि शुक्ला’
बधाई बाबा जी.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बाबा को लेकर अटकलों के साथ-साथ जमकर शिगूफे बाजी भी होती है। सत्ता में फिफ्टी -फिफ्टी होगी कि नहीं या तो राहुल बाबा जाने मिली तो टी एस बाबा और नहीं मिली तो बाबा जी..
वैसे कॉग्रेसी हिस्ट्री है जो एक बार बैठ गया तो फिर कुंडली मार लेता है। फिर उसे बड़े बेआबरू होकर निकलना पड़ता है या निकालना पड़ता है। फिलहाल छत्तीसगढ़ में कोई ऐसी स्थिति है नहीं, वैसे भी बाबा की सज्जनता और सौम्यता से ऐसी कोई स्थिति आती दिख भी नहीं रही है। जब सत्ता आएगी तब आएगी फिलहाल तो बधाई जन्मदिन की।
हैप्पी दीपावली.
खबर नविसो को आजकल देवारी माहौल में सरकारी दफ्तरों में जाने से डर लगने लगा है। कहिथे देवारी मनाए बर बड़े अउ छोटे, मंझाउले पत्रकार मन माछी कस झूमत हवे.
अच्छी बात है साल में एक बार ही कोई तोड़ी – मोड़ी कर ले, साल भर उगाही करने वालों से तो अच्छा ही है। अफसरों को भी इसका बुरा नहीं मानना चाहिए। भई साल भर आप कमाते हो, हर सरकारी काम में कमीशन लेते हो तो जगजाहिर है। ऐसे में थोड़ा बहुत बांट दिए तो क्या जाता है। वैसे भी पिछले 2 साल से कोविड के दौर में बड़े छोटे सभी अखबारों की हालत पतली हो गई है। ऐसे में अखबार नविसो को जिंदा रहने के लिए सरवाइव करना पड़ रहा है। मुसीबत का दौर है लेने वालों का भी भला और देने वालों का भी भला ।
मैं हु ना.
पुलिस डिपार्टमेंट में थानेदारी सबसे कठिन काम हो गया है काम करे तो मरना नही करे तो मरना, बिल्कुल तलवार की धार पर चलने जैसा, ऐसे में दो चार भले काम कर दिया जाए तो उसकी तारीफ जरूर होनी चाहिए।
महासमुंद जिले में हाईवे पर स्थित एक बड़े थाने के थानेदार का पाला भी इन दिनों क्षेत्र के कठिन लोगों से पड़ रहा है। कहते हैं यहां के सेठ व्यापारी आजकल रायगढ़ खरसिया वालों को टक्कर दे रहे हैं। वैसे माल कमाने के लिए कई मामले है यहां तो सेठ व्यापारियों की नौकरों के साथ फुल दबंगई चल रही है,तनख्वाह बढ़ाऊंगा नहीं, कहीं और काम करने दूंगा नहीं और ज्यादा बोलोगे तो तनख्वाह चार पांच माह लेट से दूंगा, कई तो बंधक ही बना लेते हैं। अब ऐसे में गरीब आदमी चोरी नहीं करेगा तो पेट कैसे भरेगा, घूम फिर कर मामला थाने पहुंचता है। फोकट की सिरदर्दी टीआई के गले पड़ती है और फिर गरीबों पर आशीष बरसा कर महोदय कहते हैं मैं हूं ना, और दोनों पक्षों को बैठा कर मानवीयता का तकाजा देकर मामले को सलटा देते हैं। रोज ऐसे आधा दर्जन मामले थाने पहुंचते ही हैं जिसमें गरीबों का भला करना पड़ता है। जय हो.
महामंत्रियों की नो एंट्री.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर टॉप लेवल में कॉरपोरेट खानदानों से दोस्ती करने का आरोप लगते रहते हैं और जैसी संगत होती है वैसा असर भी आता है। लिहाजा बीजेपी का दफ्तर कॉरपोरेट कंपनी की तरह चमकने चमकने लगे हैं। इन दफ्तरों में अध्यक्ष ( चेयरमैन) नहीं का फूल रुतबा होना चाहिए।
लेकिन कांग्रेस स्टाइल में बीजेपी के महामंत्री अध्यक्षों पर भारी पड़ने लगे है। जिले से लेकर केंद्र तक यह शिकायतें आम हो चली है की महामंत्री अपनी दुकान अलग चलाने लगे कई जगह तो अध्यक्ष की सुनना बंद कर दिए थे। आखिरकार पार्टी के टॉप एडमिनिस्ट्रेशन एक फैसला लिया कि थोक के भाव में महामंत्रियों का डेरा डंडा पार्टी दफ्तरों से बाहर कर दिया जाए। पार्टी में संगठन महामंत्रीयों का मूल दायित्व है क्षेत्र में दौरा करना और संगठन को मोटिवेट करना इसलिए वह फील्ड संभालेंगे दफ्तरों में नो एंट्री अगर यह आदेश निकलता है तो वहां महामंत्रियों की स्थिति संगठन में कमजोर हो जाएगी।
भई मिनिट टू मिनिट प्रोग्राम था.
पिछले दिनों रेल मंडल ऑफिस में सांसदों की रेल्वे अफसरों के साथ गुफ्तगू हुई। जनरल मैनेजर ऑफिस से आए शेड्यूल के अनुरूप मिनट टू मिनट प्रोग्राम बनाया गया। कितने लोग आएंगे, गाड़ियों की तादाद के साथ सुरक्षा के इंतजामात और इंट्री वैगरह वगैरह, अरे भई लोकल मीटिंग थोड़ी थी जो ,कोई भी आया जब भी आया घुस गया।
मलतब साफ है हाई लेवल के लोग थे, डायरेक्टर सेंट्रल से जुड़े ऐसा थोडी था कि लोकल की तर्ज पर थाने में बैठ कुछ भी बोल दिया या स्टाफ को हड़का दिया। पहले ही सब रूपरेखा तय हो गई थी। चर्चा शुरू हुई काफी देर तक चली, गुफ़्तुगू बाहर न जाए इसलिए गुप्तचरों की नो एंट्री, सीधा इंडिकेट किया गया कि सांसदों के साथ लाव लश्कर लेकर आने वाले छुटभैये नेताओ को बाहर ही रोक दिया जाए। इस चक्कर मे थोड़ा मीडिया से भी पंगा हो गया कोई बता रहा था कि रेल्वे जोन के सुरक्षा की सारी व्यवस्था के जिम्मेदार युवा अफसर ने भी सिस्टम के अनुसार अपनी गाड़ी से भीतर नही गए और बाहर गेट पर ही उतर कर मीटिंग में शामिल हुए, भला हो इस अफसर का,लास्ट में चाहे रेल्वे के अफसर हो या सांसद सभी ने अपने काम का बखान कर मीडिया को संतुष्ट किया।