छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर सीट पर हुए उपचुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया है. सवाल यह है कि भाजपा प्रत्याशी की करारी शिकस्त के बाद हार की जवाबदारी किस नेता के माथे पर चस्पा की जाएगी ? हाल-फिलहाल छत्तीसगढ़ भाजपा में यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिरकार पार्टी का प्रमुख कौन है और सबसे ज्यादा किसकी चलती है ? पार्टी का एक धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को अपना नेता मानता है तो एक दूसरा धड़ा अरुण साव की तरफ चला गया है. प्रदेश में बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल जैसे कुछ कद्दावर नेता भी है. लाख टके का सवाल यहीं है कि इन नेताओं में कौन है जो आगे बढ़कर कहेगा कि हमने एक ऐसे प्रत्याशी को टिकट दे दिया था जो एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के आरोप से घिरा हुआ था.हम हार की नैतिक जवाबदारी लेते हैं.
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के बाद से अब तक दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर सीट पर उपचुनाव हो चुके है. हर चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. पूरे 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहे भाजपा के सभी बड़े नेता हर बार जीत का दावा प्रस्तुत करते रहे है,लेकिन हर बार उनका दावा चूं-चूं का मुरब्बा साबित होता रहा है.
फिलहाल गांव-गांव और शहरी हिस्सों में भूपेश बघेल और उनकी सरकार की स्थिति बेहद मजबूत दिखाई देती है. कई बार इधर-उधर का प्रेशर कुकर ग्रुप जिसमें चंद पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और चुके हुए कारतूस अफसर शामिल है..वे सीडी-फीडी, आईटी और ईडी के छापों की खबरों को आधार बनाकर यह माइंड सेट करने का प्रयास अवश्य करते हैं कि भूपेश सरकार कमजोर हो गई है. यह टर्म सरकार का अंतिम टर्म होगा… आदि-आदि…
लेकिन सरकार को हताश और परास्त देखने की पुरजोर कोशिश में लगे ऐसे सभी तत्व ( जैसे किसी शख्स की फेसबुक पोस्ट को देखकर बड़ी आसानी से जाना जा सकता है कि वह अंधभक्त है या नहीं…वैसे ही भूपेश बघेल के खिलाफ पेड एम्पलाइज बनकर माहौल बनाने खेल में लगे लोगों के सरनेम से यह जाना जा सकता है कि उनका विरोध क्यों और किसलिए होता है.) यह भूल जाते हैं कि सांस्कृतिक जड़ें इतनी जल्दी उखड़ती नहीं है. छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले मूल छत्तीसगढ़ियों को पहली बार यह लग रहा है कि उनकी अपनी बोली-बानी,अस्मिता को महत्व देने और समझने वाली कोई सरकार बनी है. गांव और शहर में रहने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं और भाजपाई मानसिकता को सहयोग करने वाले लोगों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर छत्तीसगढ़िया इस बात से खुश है कि उनके बीच का एक ठेठ देसी आदमी उनका अपना मुख्यमंत्री है. वे सभी लोग जिन्होंने गांव की धूल और माटी से नाता तोड़ लिया है उन्हें थोड़ी गांवों की यात्रा भी करनी चाहिए. गांव के युवा और बुर्जुग ‘ कका ज़िंदा है ‘ जैसे गाने में अगर थिरक रहे है तो कोई बात अवश्य होगी. कोई जादू अवश्य होगा.
असल बात यह है कि जिन छत्तीसगढ़ियों के स्वाभिमान को बरसों तक कुचला गया…ऐसे सभी छत्तीसगढ़िया अब किसी भी कीमत पर असल छत्तीसगढ़िया को हारते हुए देखना नहीं चाहते हैं.फिलहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास ऐसा कोई मुद्दा भी नहीं है जिसे वह चुनाव में एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकें. यह सही है कि जनता में कांग्रेस के कुछ विधायकों के प्रति नाराजगी है, लेकिन उनकी नाराजगी कका को लेकर नहीं है. जिन ग्रामीणों की जेब में सरकार की विभिन्न योजनाओं का पैसा जा रहा है उनके बीच यह बात भी पैठ कर गई है कि उनके अपने कका को केंद्र की भाजपा सरकार जबरिया परेशान कर रही है. भाजपा के लोग उन्हें फंसाने का षड़यंत्र रच रहे हैं.
अगर कांग्रेस ने 20 से 25 सीटों पर पूरी निर्ममता के साथ प्रत्याशियों का बदलाव किया तो 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार के रिपीट हो जाने के पूरे-पूरे आसार है.