बिलासपुर. कांग्रेस में मंच पर चढ़ने की होड़ लगी रहती है। लेकिन कांग्रेस शासनकाल में अफसरों को भी इसका स्वाद लग गया लग रहा। ऐसा ही नजारा स्वतंत्रता दिवस के प्रोग्राम में देखने को मिला। रेंज के एक बड़े साहब स्वतंत्रता दिवस में स्टेज से लेकर परेड में वीआईपी, कलेक्टर और एसपी के बीच पहुंच दो कदम आगे दिखे,वैसे उत्साही साहब ने कई बार है एसपी से दो कदम आगे बढ़कर काम कर दिखाने की जुगत में भी रहते हैं। लोग तो अब यह भी कहने लगे हैं कि जिले में दो-दो एसपी हो गए है।
हाल ही में बघेल सरकार ने राज्य में पुलिस विभाग में काम का दवाब कम करने दो डीआईजी लेवल के अफसरों को बिठाया है। उधर तो ठीक है लेकिन इधर पिक्चर जरा क्लियर नही हो पा रही है। रेंज के एक सरल स्वभाव के एसएसपी विभाग की बदनामी न हो सोच सदा बोलते तो कुछ नही है। लेकिन देखने वालो को रेंज में सारा राम राज्य का माजरा समझ में आ रहा है। ऐसा लगने लगा है कि डीआईजी के आने से पुलिस कप्तान की भूमिका कही खो न हो जाए,जो पिक्चर देखने को मिली उसमे मुख्य किरदार के रूप में डीआईजी उभर कर सामने आए वो भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर, हुआ यूं कि उत्साह से लबरेज डीआईजी स्वतंत्रता दिवस पर वीआईपी, कलेक्टर और एसपी के बीच पहुंच गए। पहले स्टेज में फिर परेड ग्राउंड की जीप में लद गए। जबकि जानकार बताते हैं कि वीआईपी के साथ जिले के कलेक्टर और एसपी को ही सारा कुछ करना होता है एक तरह से कहे की यही प्रोटोकाल है।
अब दो कदम आगे रहने के उत्साही डीआईजी आगे आगे नजर आए, इधर शांत और गंभीर स्वभाव के एसएसपी सब कुछ खामोशी से देखते रहे मगर पुलिस विभाग के साथ राज्य की ब्यूरोक्रेसी में यह मसला बड़े जोरों पर है या कहे कि तस्वीरे सामने आने के बाद एक तरह की बहस छिड़ गई है की क्या अब डीआईजी सुपरविजन छोड़ एसपी गिरी करेंगे।
तो कुछ लोग कह रहे हैं कि भूपेश बघेल सरकार का रेंज में डीआईजी को लाना कही एसपी के कामकाज और कुर्सी का बट्टा न लगा दे। एसएसपी खामोश है तो चल जाएगा लेकिन राज्य में ऐसे भी धुरंधर आईपीएस है जो अपने कार्य स्थल में खलल बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं करते और आमने सामने की नौबत आ जाती है।
इंचार्ज आईजी की कहानी.
अभी कुछ दिनों पहले ही 2007 बैच के सीनियर आईपीएस को एक बड़े रेंज के इंचार्ज आईजी के कामकाज से हटा सरकार ने रेंज के डीआईजी की कुर्सी का चार्ज दिया है। विजिबल पुलिसिंग पर फोकस वाले डीआईजी की वैसे तो राज्य में अच्छे आईपीएस अफसरों ने गिनती होती है काफी बेहतर जानकारियां भी रखते है,लेकिन उनके अति उत्साह से महकमा जरा परेशान रहता है। मातहतो पर तनिक भी भरोसा नही करने वाले डीआईजी की इंचार्ज आईजी की कहानी भी बड़ी मजेदार है जो विभाग में चलती रहती है, बताते हैं कि जहा भी रहते हैं दो कदम आगे रहने की ललक,कुछ नया करने की चाह ऐसी कि भले नीचे वाले को कुछ भी करना पड़े और मन ही मन उन्हें कोसते रहे, मीटिंग में राजपत्रित अधिकारियों को हाथ से लिखी रिपोर्ट बनाने जरा टाइट लेते है। सुरिहा स्वभाव और भी जाने क्या क्या.