छत्तीसगढ़ में पारंपरिक वैद्यों का हो रहा सर्टिफिकेशन

रायपुर, छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा राज्य में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के संरक्षण के लिए पारंपरिक वैद्यों के सर्टिफिकेशन की पहल और औषधीय पौधों के उपयोग और इसके महत्व का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। यह जानकारी देहरादून में आयोजित औषधीय पौधों पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में दी गई।

संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से शामिल हुईं छत्तीसगढ़़ जलवायु परिवर्तन केन्द्र में प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर डॉ. देवयानी शर्मा ने बताया गया कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा क्वालिटी काउंसिल ऑफ़ इंडिया एवं बेंगलुरु स्थित ट्रांस-डिसिप्लिनरी हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के सहयोग से छत्तीसगढ़ में पारंपरिक वैद्यों के सर्टिफिकेशन की पहल की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस सर्वेक्षण में बस्तर, दुर्ग और धमतरी क्षेत्रों के 100 से अधिक पारंपरिक वैद्यों की चिकित्सा पद्धतियों का दस्तावेजीकरण किया गया है।

डॉ. देवयानी शर्मा ने बताया कि वनमंत्री श्री केदार कश्यप की पहल पर छत्तीसगढ़ में वन विभाग के द्वारा संचालित संजीवनी केंद्रों में वैद्यों को मरीजों का उपचार करने के लिए स्थान उपलब्ध कराया गया है और कुछ वैद्यों को उनके सेवाओं के लिए पारिश्रमिक भी दिया जा रहा है। उन्होंने पद्मश्री वैद्यराज हेमचंद मांझी का भी उल्लेख किया करते हुए बताया कि श्री मांझी ने नारायणपुर जिले में पिछले पांच दशकों से पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि पारंपरिक पद्धतियों ने न केवल गंभीर बीमारियों का इलाज करने में अपनी उपयोगिता साबित की है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक एकता को भी मजबूत करती हैं।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को प्रोत्साहित करने के विज़न के अनुरूप पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान, मानकीकरण और नियमन के उद्देश्य से इस संगोष्ठी का आयोजन आयुष मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय औषधीय पौधा बोर्ड द्वारा दसवीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के हिस्से के रूप में आयोजित की गई थी।

You May Also Like

error: Content is protected !!