केसरिया के 15 साल का जवाब सियासी हरे रंग से..

‘मनोज शर्मा’

भाजपा के पंद्रह साल के केसरिया का जवाब मुख्यमंत्री भूपेश बघ्ोल ने हरेली मनाते हुए अपने सियासी हरे रंग से दिया है। मंच हरा भरा, कॉरपेट, फुग्गे ही नहीं यहां हर चीज हरियाली से जोड़कर हरी रखी गई। गौ सेवा करके यह भी बताया कि भाजपा की गौरक्षा के लिए हिंसा बेमानी है। सीएम ने हरेली की छुSी दी और इस दिन उत्सव मनवाकर और हरे रंग को प्रकृति से जोड़ा। हरे रंग को जो सम्मान सीएम ने दिलाया उसका एक तरह से सियासी संदेश गया है। यह उस माहौल को एक तरह से करारा जवाब है, जिसमें केसरिया बाने को हिंदुत्व और हरे रंग को तुष्टिकरण का प्रतीक माना जाने लगा था।

गनियारी-नेवरा के कार्यक्रम में सीएम आए और उनके आगमन में हरे रंग को खूब प्रमुखता मिली। लोग भले न समझें लेकिन आईएएस खूब समझता है कि सत्ता की नीति-रीति क्या है, वह क्या चाहती है। फिर आरपी मंडल जैसा अफसर तो समझता ही नहीं, बल्कि उसे जमीन पर हकीकत में बदल भी डालता है। असल में केंद्र में मोदी सरकार की दोबारा वापसी के लिए भाजपा ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का कार्ड खेला था और इसके लिए केसरिया रंग का जमकर इस्तेमाल किया गया। हरे रंग को अल्पसंख्यकों से जोड़ते हुए

इसके खिलाफ नफरत भरी गई। कांग्रेस को इस हरे रंग का हितैषी बताते हुए माहौल भी खड़ा किया गया, लेकिन हरेली के दिन इसी हरे रंग को प्रकृति और ग्रामीण परंपरा से जोड़कर भूपेश सरकार ने इस नफरत को कम करने का काम किया है। प्रदेश में पन्द्रह साल से भाजपा केसरिया लहरा रही थी, लेकिन कांग्रेस की प्रदेश सरकार ने छह-आठ माह के कार्यकाल में इसका जवाब प्रकृति के गहरे हरे रंग से दिया है।
सीएम ने एक और सियासी चतुराई करते हुए भाजपा के गौरक्षा के मुद्दे को भी हरेली के बहाने कमजोर किया है। गौ रक्षा के नाम पर जिस तरह से मॉब लिचिंग की जा रही है और प्रबुद्ध वर्ग इसके खिलाफ हैं। उसका जवाब सच में गौ सेवा के लिए गौठान बनवाकर सीएम ने दिया है। इस बहाने सियासी मैसेज दिया कि गौसेवा के लिए हिंसा नहीं, बल्कि उसके लिए दाना-पानी और छांव जुटाना ज्यादा जरूरी है।
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