भाइयों… उसका नाम भूपेश बघेल है.

‘राजकुमार सोनी’

चैनल वाले तो बेचारे निर्धारित एजेंडे के तहत तालिबान-तालिबान और मुसलमान-मुसलमान करने को मजबूर हैं, लेकिन आज सुबह से ही सारे पोर्टल वाले भी शांत है.

आज कोई यह नहीं लिख रहा है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री के बीच जो रस्साकशी चली…उसका एक-एक बिंदु आपको क्यों जानना जरूरी है? आप भले ही जानने-समझने के इच्छुक नहीं रहे होंगे, लेकिन कट पेस्ट की कलाबाजी में माहिर पोर्टल का हरेक जाबांज पत्रकार आपको यह बताने में तो तुला ही हुआ था कि छत्तीसगढ़ की सियासत में आग लग चुकी है और अब-तब में नेतृत्व परिवर्तन हो जाएगा. नेतृत्व परिवर्तन मतलब…भूपेश बघेल मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे.

नेतृत्व परिवर्तन क्यों हो जाएगा ? किसलिए हो जाना चाहिए ? ऐसा क्या हो गया जिससे नेतृत्व परिवर्तन कर देना चाहिए…यह बताने की फुसरत किसी के पास नहीं थीं. सबके पास बस… एक ही लाइन थीं कि कांग्रेस आलाकमान के गुप्त कमरे में कोई ढ़ाई-ढ़ाई साल फार्मूला बना था तो अब एक आदमी को खड़े रहना है और दूसरे को कुर्सी पर बैठना है.

राजनीति में चक्कलस का अपना महत्व तो होता है, लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि छत्तीसगढ़ का पिछला एक सप्ताह एक अधपकी चक्कलस के चलते अस्थिरता के बुरे दौर से गुजरा है. हर कोई यह सोचने को मजबूर था कि अब क्या होगा ? देश हो या प्रदेश… राजनीति हर किसी के जीवन को प्रभावित करती है इसलिए चाहे अफसर हो नेता… मजदूर हो किसान…सबके दिमाग में यहीं चल रहा था कि पता नहीं क्या होने वाला है. कई तरह की बातों से सूबे का तापमान गर्म था. कोई कह रहा था कि कांग्रेस पैर पर कुल्हाड़ी नहीं बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मारने जा रही है तो किसी ने यह कहने में भी देर नहीं लगाई कि न चाहते हुए भी कांग्रेस में अजीत जोगी पैदा हो ही जाता है. घर को आग लग जाती है घर के चिराग से.

वैसे नेतृत्व परिवर्तन की कथित खबर को कव्हरेज करने के लिए दिल्ली के पत्रकार तो सक्रिय थे ही… छत्तीसगढ़ के पत्रकारों की टोली भी दिल्ली में डेरा डाली हुई थीं. कुछ पत्रकारों को तो उनके संस्थानों ने भेजा था जबकि कुछ पत्रकार विरोधी दल और असंतुष्ट नेताओं की सहायता प्राप्त योजना के तहत दिल्ली भेजे गए थे. ( हैरत की बात यह है कि इसमें कुछ वेब पोर्टल वाले भी शामिल है. खबर है कि अफवाह फैलाने में माहिर कुछ पोर्टल वालों को उस पीआर एजेंसी ने खास तौर पर आमंत्रित किया था जो दिल्ली में बैठकर एक नेताजी की छवि को चमकाने के लिए अच्छा-खासा चार्ज लेती है.)

अब बात अगर कथित तौर पर होने वाले नेतृत्व परिवर्तन की करें तो राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ आने का संकेत देकर साफ कर दिया है कि प्रदेश की एक बड़ी आबादी की तरह उन्हें भी भूपेश बघेल के कामकाज पर भरोसा है. वैसे नेतृत्व में किसी तरह का कोई परिवर्तन तो होना ही नहीं था, लेकिन कार्पोरेट या अन्य किसी दबाव में कोई गलत फैसला हो जाता तो यह भी साफ है कि छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों यानी छत्तीसगढ़ियों का सपना चूर-चूर होकर बिखर जाता. पहली बार तो प्रदेश के छत्तीसगढ़िया ग्रामीण और उपेक्षा का जीवन जीने वाले किसानों-आदिवासियों यह लग रहा है कि उनका कोई अपना है. उनकी अपनी सरकार है. छत्तीसगढ़ में अब तक कोई नकली आदिवासी बनकर हावी रहा है तो कोई सामंती सोच के साथ छत्तीसगढ़ियों को खदेड़ने में यकीन करता रहा है. प्रदेश में नेताओं की शारीरिक भाषा से ही समझ में आ जाता है कि वे कितने प्रतिशत छत्तीसगढ़िया है. भूपेश बघेल के साथ एक अच्छी बात यही है कि वे ठेठ ( शुद्ध ) छत्तीसगढ़िया है.

बघेल का ठेठ छत्तीसगढ़िया और किसान होना ही उनके विरोधी दल और उनके अपने दल के कुछ लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कोई एक आदमी आएगा और छत्तीसगढ़ के भीतरी तहों में कहीं कला-संस्कृति, तीज-त्योहार, खुरमी-ठेठरी के जरिए आपकी अस्मिता को जागृत करने का काम कर जाएगा. विरोधी दल के नेताओं के साथ एक सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि वे छत्तीसगढ़िया बनने और दिखने की भरपूर कोशिश करते हैं, लेकिन न तो बन पाते हैं और न ही दिख पाते हैं. विधानसभा का आगामी चुनाव भाजपा अब किसी एक चेहरे को फोकस करके नहीं लड़ पाएगी. भाजपा फिलहाल एक ऐसे चेहरे की तलाश में हैं जो भूपेश बघेल के ठेठ छत्तीसगढ़ियापन को टक्कर दे सकें. उधर टक्कर देने के लिए मंथन पर मंथन चल रहा है और इधर अजीत जोगी स्टाइल में बल्ला घुमाया जा रहा है. वैसे कल के घटनाक्रम के बाद लोग यह कहते हुए भी मिले हैं कि भाइयों…उसका नाम भूपेश बघेल है…जब उसने पार्टी की जड़ों में मट्ठा डालने वाले जोगी को ठिकाने लगाने में देर नहीं लगाई तो फिर……? समझ लो कि फिर आगे क्या होने वाला है. अभी थोड़ी देर पहले एक साथी पत्रकार की बड़ी मजेदार टिप्पणी मिली है. पत्रकार ने लिखा है- नेतृत्व परिवर्तन के कथित घटनाक्रम के बाद यह मत सोचिए कि कुछ नहीं मिला.छत्तीसगढ़ के पास भी अब अपना एक आडवानी है.

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