क्या बस्तर को बनाया जा सकता है केन्द्र शासित प्रदेश?
हाल ही के नक्सली हमले से हरकत में केन्द्र सरकार.
क्या पूर्व आईपीएस के. विजय कुमार और आईएएस बीवीआर सुब्रमण्यम को सौंपेगी नक्सल समस्या हल करने की जिम्मेदारी?
नक्सली समस्या को हल करने में भूपेश सरकार नाकाम.
‘विजया पाठक’
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या एक बार फिर पैर पसारने लगी है। छत्तीसगढ़ को अस्तित्व में आए लगभग 20 वर्ष हो गये हैं लेकिन इसके बावजूद भी राज्य में नक्सल समस्या जस की तस है। ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है कि आखिर इस समस्या का हल क्यों नहीं ढूंढा जा रहा है। राजनीतिक स्तर पर तो कोई पार्टी गंभीर नहीं है कि राज्य से इस समस्या को खत्म किया जाए। 2017 में झीरम घाटी के बाद प्रदेश में भले ही कोई बड़ी नक्सली वारदात नहीं हुई हो लेकिन कुछ महीनों से हो रही नक्सली घटनाओं और नक्सली गतिविधियों ने फिर से केन्द्र सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
पिछले महीने ही सुकमा जिले की बार्डर पर हुए नक्सली हमले और इससे 10 दिन पहले हुए हमले ने केन्द्र सरकार को भी छत्तीसगढ़ की नक्सली समस्या पर ध्यान देने पर मजबूर किया है। राज्य की मौजूदा भूपेश बघेल सरकार को भी केन्द्र सरकार ने कटघरे में खड़ा किया है। क्योंकि वर्तमान सरकार में पिछले ढाई साल में नक्सलवाद पर कोई भी काम नहीं किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस समस्या को कभी भी चुनौती के रूप में नहीं लिया। भूपेश बघेल के कार्यकाल में नक्सल समस्या हल होने की बजाए बढ़ी ही है। क्योंकि वह नहीं चाहते कि यह समस्या हल हो। जिसका ही परिणाम है कि वर्तमान समय में केन्द्र सरकार ने अब राज्य की नक्सल समस्या में मुस्तैदी से हस्तक्षेप करने का मन बनाया है। मोदी सरकार इस समस्या पर कई मोर्चो पर काम करने पर विचार कर रही है, जिसमें सबसे प्रमुख है बस्तर जिले को केन्द्र शासित प्रदेश बनाना। विस्वस्त सूत्रों की मानें तो इस विकल्प पर केन्द्र सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। क्योंकि ऐसा होता है तो नक्सली क्षेत्र में पूरा का पूरा हस्तक्षेप केन्द्र सरकार हो जाएगा। उसकी नीतियों और नियमों का पालन होगा। इस विकल्प में राज्य सरकार का अडंगा नहीं रहेगा। जबकि दूसरी तरफ केन्द्र सरकार देश के दो काबिल अफसरों को नक्सली समस्या को हल करने की जिम्मेदारी देने पर भी विचार कर रही है।
ये दो अफसर हैं- आईएएस बीवीआर सुब्रमण्यम और पूर्व आईपीएस के. विजय कुमार।
ये दोनों अधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्रों के अलावा नक्सल समस्या पर भी काफी काम किया है। इनमें से एक अधिकारी ने केन्द्र के निर्देश पर छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों का सर्वे भी किया था। इस सर्वे में कई बातें भी निकलकर सामने आयी हैं। जिसमें एक बात यह भी है कि नस्सल प्रभावित क्षेत्र को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया जाए। इसके अलावा भी कई बातें सामने आयी थी। भूपेश सरकार नक्सल समस्या को हल करने में बिल्कुल नाकाम नजर आ रही है। बड़ी-बड़ी घटनाएं घटने के बावजूद मौजूदा सरकार गंभीरता नहीं दिखाती है।
केन्द्र द्वारा किए गए सर्वे का एक मोटिव ये भी था कि आखिर प्रदेश की जनता क्या चाहती है। यह सर्वे जनहित में किया गया था। इस सर्वे में राजनीतिक और प्रशासनिक पहलुओं को छुआ गया था। लोगों के मन को जाना गया था कि प्रदेश की सरकार नक्सलवाद पर जो कदम उठा रही है वह कितने कारगर साबित हो रहे हैं और वाकई में सरकार कुछ कर भी रही है कि नहीं। क्योंकि देखा जा रहा है कि धीरे-धीरे नक्सली प्रदेश के आदिवासियों को साथ लेकर उनको ही निशाना बना रहे हैं। मतलब मारने और मरने वाले दोनों ही आदिवासी हैं।
छत्तीसगढ़ की एक नाकामी यह भी है कि झीरम घाटी की नक्सली वारदात की हकीकत जानने के लिए एनआईए काम कर रही है। यह घटना 2017 में घटी थी, आज तक इसकी जांच नहीं हो पायी है। क्योंकि बताया जा रहा है कि राज्य सरकार इसमें रूचि ही नहीं ले रही है। आपको बता दें कि इस वारदात में प्रदेश के सभी बड़े कांग्रेस नेता मारे गए थे। जिन्होंने वाकई में राज्य से नक्सलवाद से निजात दिलाने की पहल की थी। मारे गए कांग्रेसियों की ही वह सोच थी जिसमें नक्सलवाद को खत्म करने की योजना थी। आज उन नेताओं की शहादत की सच्चाई को भी बाहर लाने में देरी की जा रही है। लगता है कि भूपेश बघेल नहीं चाहते कि झीरम घाटी की सच्चाई लोगों के सामने आए। इन्हीं कांग्रेस नेताओं ने राज्य में सलबा जुडूम प्रारंभ किया था। जिसके सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे थे। तब राज्य में डॉ. रमन सिंह की बीजेपी सरकार थी। रमन सरकार ने भी सलबा जुडूम अभियान को प्राथमिकता दी थी। उस समय कई नक्सलवादी आदिवासी भी इस अभियान में जुड़ गए थे।
बस्तर गया तो कंगाल हो सकता है छत्तीसगढ़?
बात बस्तर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की हो रही है। अगर ऐसा होता है तो छत्तीसगढ़ आर्थिक रूप से कंगाल हो जाएगा। क्योंकि हम जानते हैं कि बस्तर क्षेत्र में कोयले समेत कई खनिज पदार्थों की खदानें हैं, जो राज्य को आर्थिक संबल प्रदान करती हैं। इन खदानों को प्रदेश को अरबों का राजस्व प्राप्त होता है। बस्तर अलग होता है तो निश्चित रूप से इस जिले की सारी संपदाएं केन्द्र सरकार की होगी। और छत्तीसगढ़ को जो आमदनी बस्तर से होती है वह खत्म हो जाएगी। ऐसी स्थिति में राज्य को बहुत आर्थिक क्षति होगी। यह भी सही है कि नक्सली समस्या पर भूपेश बघेल की कमियों से यदि बस्तर केन्द्र शासित प्रदेश बनता है तो यह भूपेश सरकार की सबसे बड़ी नाकामी होगी। राज्य की जनता इसे माफ नहीं कर पाएगी। बस्तर क्षेत्र राज्य की बहुत बड़ी आमदनी का जरिया है। जिसका असर राज्य की स्थिति पर पड़ेगा। इसी क्षेत्र में गरियाबंद जिला है, जहां हीरे की खदानें हैं। वह भी आर्थिक रूप से राज्य को मजबूती प्रदान करती हैं। ऐसे हालात में बस्तर का राज्य से कटना छत्तीसगढ़ के लिए बहुत बड़ी हानि होगी।
कौन है आईएएस सुब्रमण्यम..
24 जून 2018 को छत्तीसगढ़ कैडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बनाया गया था। इससे पहले सुब्रमण्यम छत्तीसगढ़ सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे और गृह, जेल तथा परिवहन विभाग संभाल रहे थे। सुब्रमण्यम को नक्सल मोर्चे पर सफल अफसर के तौर पर देखा जाता है। सुब्रमण्यम मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त केंद्र सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। मोदी के कार्यकाल में भी वह एक साल तक ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। पिछले तीन साल से वे अपने मूल कैडर छत्तीसगढ़ में काम कर रहे थे। नक्सल इलाकों में विकास कार्यों में दूसरे विभागों से समन्वय के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ में याद किया जाता है। नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में गृह विभाग का काम देखते हुए उन्होंने स्थानीय पुलिस, अर्धसैन्य बलों और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय बनाकर नाम कमाया। उनके कार्यकाल में अति नक्सल प्रभावित इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का विकास हुआ। दशकों से बंद पड़ी सड़कों को दोबारा बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। चुपचाप काम करने में विश्वास रखने वाले सुब्रमण्यम मीडिया से दूर रहते हैं।
उनकी इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने उन्हें ऐसे राज्य की जिम्मेदारी सौंपी थी जो आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर और पाकिस्तान समर्थित उग्रवाद से बुरी तरह पीड़ित थे। गृह विभाग के प्रमुख सचिव और बाद में अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में वे लगातार बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर खुद विकास कार्यों की निगरानी करते रहे। छत्तीसगढ़ में गृह विभाग के अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने फोर्स और सिविल प्रशासन में तालमेल बिठाया जिसका नतीजा यह रहा कि बस्तर में बड़ी नक्सली घटनाओं में कमी दर्ज की गई। उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मनमोहन के प्रधानमंत्री रहने के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने उन्हें पत्र लिखकर कहा कि सुब्रमण्यम को छत्तीसगढ़ वापस भेज दें ताकि वे राज्य में सेवाएं दे सकें। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसे अफसर की जरूरत है जो संवेदनशील विषयों पर काम कर सकता है और जो विश्वास बनाए रखता हो। वे मनमोहन सिंह के विश्वस्त रहे। उन्होंने प्रधानमंत्री के सचिव के तौर पर यूपीए-1 सरकार में चार साल बिताए।
कौन है पूर्व आईपीएस के. विजय कुमार..
कुख्यात तस्कर वीरप्पन को मारकर चर्चा में आए आईपीएस के. विजय कुमार अब छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या को खत्म करने पर काम करेंगे। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में नए पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) के तौर पर के. विजय कुमार को नियुक्त किया गया था। कुमार 1997 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। आईजी विजय कुमार को छत्तीसगढ़ से जम्मू-कश्मीर लाया गया था, जहां वे छत्तीसगढ़ सेक्टर में सीआरपीएफ में आईजी थे। इन्होंने छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या को लेकर काफी काम किया है। कुमार ने 2018 में कई राज्य चुनावों के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति की ओर से चुनाव आयोग पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें आतंकवाद-रोधी अभियानों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए केंद्र सरकार से तीन वीरता पदक भी मिल चुके हैं और वे जम्मू-कश्मीर सरकार से भी वीरता पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
विजय कुमार ने 2016 में जाट आंदोलन में भी अपनी जिम्मेदारी निभाई थी। करीब दो साल पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार के रूप में के. विजय कुमार छत्तीसगढ़ पहुंचे थे। उन्होंने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के नक्सल ऑपरेशन से जुड़े अफसरों से मुलाकात की थी। तब उन्होंने बताया था कि तीनों राज्यों में अब नक्सल ऑपरेशन आंध्र के ग्रे- हाउंड फोर्स की तर्ज पर चलेगा। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से नक्सलियों को खदेड़ने के लिए ग्रे हाउंड फोर्स के कमांडो भी उतारे जा सकते हैं। आपको बता दें कि आंध्रप्रदेश में नक्सलवाद पर नकेल कसने में ग्रे-हाउंड फोर्स का इस्तेमाल किया गया था। जब ये फोर्स मैदान में उतरी तब आंध्र के 20 जिले नक्सलियों के कब्जे में थे। लेकिन कुछ ही समय में इस फोर्स ने इन जिलों को नक्सल मुक्त कर दिया है। इसी फोर्स की योजनाओं के चलते नक्सलियों का एनकाउंटर और सरेंडर शुरू हुआ। ग्रे- हाउंड फोर्स को नक्सलियों को खदेड़ने में सबसे एक्सपर्ट फोर्स माना जाता है। जिनकी तकनीकों का इस्तेमाल अब छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में हो सकता है।