नारायणपुर. छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित जिले नारायणपुर के कई गांव आज भी नक्सली दहशत के चलते मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, परंतु तस्वीर अब बदलने लगी है. अंदरूनी इलाके के ग्रामीण भी अब जागरूक होकर अपनी मांगों को पूरा करने आवाज बुलंद करते नजर आ रहे हैं.
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जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर बस्तर में नक्सलियों का राजधानी कहा जाने वाला गांव कुतुल में आज भी माओवादियों का समानांतर सरकार चलता है. शहर की चकाचौंध से कोसों दूर ग्राम कुतुल पहुंचने कई किलोमीटर पहले से पगडंडी और खराब सड़कों की चुनौतियों के साथ ही जंगली जानवर का भय भी बना रहता है. घने जंगलों के बीच सुनसान सड़कों पर जगह-जगह नक्सल नारे व बैनर पोस्टर भी भयभीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.
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अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवेश करने के पहले आपने अलग-अलग तरह के प्रवेश द्वार देखे होंगे परंतु अबूझमाड़ के कुतुल का प्रवेश द्वार रोंगटे खड़े कर देने वाला है. यहां सड़क के दोनों ओर नक्सल स्मारक बीच में नक्सल बैनर व आस-पास काफी संख्या में पोस्टर, बैनर बंधे हुए हैं. इतना ही नहीं कुतुल जाने की सड़कों पर स्कूल आंगनबाड़ियों व उप स्वास्थ्य केन्द्रों में भी नक्सली नारे लिखे हुए हैं, यहां नक्सल दहशत के चलते प्रशासनिक अमला नहीं पहुंच पाता है.
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नक्सल नारों के बीच भविष्य गढ़ रहे हैं बच्चे
दरअसल कुतुल में शासकीय भवनों के साथ ही रामकृष्ण मिशन आश्रम के दीवारों पर भी नक्सल नारे लिखे हुए हैं. रामकृष्ण मिशन आश्रम बिहड़ इलाके के बच्चों को आवासीय सुविधा उपलब्ध कर बेहतर शिक्षा प्रदान कर रहा है. ऐसे में रामकृष्ण मिशन आश्रम द्वारा नक्सल प्रभावित इलाकों में संविधान को न मानने वाले व उनके नारों के बीच बच्चों को संविधान की जानकारी के साथ ही बच्चों को बेहतर शिक्षा देकर उनका भविष्य गढ़ना भी किसी चुनौती से कम नहीं है
ग्रामीण हो रहे जागरूक, उपजों को एमएसपी पर खरीदने की मांग
शुक्रवार साप्ताहिक बाजार के दिन ग्रामीणों ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर नशामुक्त अबूझमाड़ अभियान को लेकर मुहिम छेड़ दिया. ग्रामीणों ने रैली निकालकर बाजार में तंबाकू, गुड़ाखू, शराब समेत सभी नशीले पदार्थों के विक्रय पर प्रतिबंध लगाने का नारा लगाया. ।साथ ही बाजार में आये व्यापारियों के साथ बैठक कर ग्रामीणों द्वारा विक्रय करने के लिए लाये गये वन उपजों को एमएसपी पर खरीदने की मांग की. साथ ही ग्रमीणों ने व्यापारियों को तौल के समय वजन कम होने का हवाला देकर कम कीमत देकर अनपढ़ ग्रामीणों के साथ छलावा न करने की बात कही.
दैनिक उपयोग के सामानों के लिए ग्रामीण महाराष्ट्र बॉर्डर से भी पैदल चलकर कुतुल बाजार पहुंचते हैं. पहुंचविहीन व मूलभूत सुविधाओं से वंचित ग्राम कुतुल की तस्वीर बदलने का इंतजार सभी को है. आखिर वह समय कब आएगा जब यहां के वाशिन्दे देश दुनिया के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने लगेंगे.
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