‘राजकुमार सोनी’
देश के चंद मीडिया संस्थानों को छोड़कर अधिकांश की स्थिति सूअरों के जीवन से भी ज्यादा खराब हो गई हैं. कल दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान जो कव्हरेज सामने आया वह यह बताने के लिए काफी हैं कि मीडिया किस बुरी तरह से अंधभक्ति में लीन होकर आवाम के साथ गद्दारी कर रहा है. निजी तौर पर मैं यह मान चुका हूं कि अब मीडिया संस्थानों के मालिकों और उसमें काम करने वाले भक्त पत्रकारों की ठुकाई जरूरी हो चली है.जब तक देश की जनता इन सूअरों को दौड़ा-दौड़ाकर नहीं मारेगी तब तक कुछ भी बदलने वाला नहीं है. ( आज लिखकर रख लो…एक दिन यह होकर रहेगा )
दिल्ली में ही रहकर किसान आंदोलन को सोशल मीडिया में बेहतर ढंग से कव्हरेज करने वाले मित्र पकंज चतुर्वेदी के साथ आज सुबह चर्चा हो रही थीं. उन्होंने बताया कि सुबह से शाम तक मीडिया केवल लालकिले और एक अन्य स्थान के कव्हरेज को लेकर ही सक्रिय रहा. जबकि दिल्ली के एक बड़े हिस्से में किसानों का प्रदर्शन स्वस्फूर्त ढंग से संचालित होता रहा. लगभग डेढ़ से दो लाख ट्रैक्टरों में किसान अपने परिजनों के साथ सवार थे और सरकार के काले कानून का विरोध कर रहे थे. दिल्ली की एक बड़ी आबादी ने जगह-जगह किसानों का फूल-मालाओं से स्वागत किया. उन पर पुष्प वर्षा की. किसानों को मिठाईयां खिलाई, लेकिन यह कव्हरेज पूरी तरह से गायब था.
कल तक जो मीडिया किसानों को खालिस्तानी- पाकिस्तानी और कैनेडियन बताने में लगा था वहीं मीडिया दिनभर अपने कव्हरेज में यह बताने में लगा रहा कि किसानों ने कैसे लाल किले में अपने धर्म का झंडा फहरा दिया है. हालांकि जब यह साफ हो गया है कि झंडा फहराने वाला कोई और नहीं ब्लकि भाजपा का नेता दीप सिद्दू हैं तो मीडिया यह बताने मे लग गया कि किसानों ने कानून और व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया है. जब किसान संगठनों ने विरोध जताया कि जिन लोगों ने लाल किले पर जाकर अनुशासन को तोड़ा है उनका किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है तब भी मीडिया यह बताने में जुटा रहा कि नहीं…नहीं…वे किसान ही हैं और अब देश के लिए खतरा बन चुके हैं.
मीडिया के इस खेल में भाजपा के लिए कार्यरत आईटीसेल और पापाजी की नाजायज संतानों को तो खुश होना ही था. अंधभक्त सक्रिय हो गए. अंधभक्त कूद-कूदकर कहने लगे- देखिए…आज तिरंगे का अपमान हो गया है. देखिए… कैसे सरदार किसानों ने आतंकवादी बनकर देश की संप्रभुता से खिलवाड़ कर दिया है. अंधभक्तों और मीडिया ने एक भी बार यह सवाल नहीं उठाया कि सरकार ने उद्योगपति डालमिया को महज पांच करोड़ रुपए के सालाना ठेके पर लालकिला क्यों दे रखा है ? मीडिया और अंधभक्तों के बीच से यह सवाल भी नहीं उठा कि नागपुर के संघ स्थित कार्यालय में आज तक तिरंगा वंदन क्यों नहीं किया गया? भला बताइए क्या कोई किसान अपने बीवी-बच्चों… दादी-नानी-चाचा-चाची और काकी के साथ ट्रैक्टर पर सवार होकर दंगा करने आएगा ????
लालकिले पर दो-तीन हजार ( इससे ज्यादा नहीं ) कथित किसान प्रदर्शन कर रहे थे. झंडा वंदन कर रहे थे तब पुलिस वाले कुर्सियों पर बैठकर तमाशा देख रहे थे. एकाध को छोड़कर किसी भी मीडिया ने यह सवाल नहीं दागा कि पुलिस उन्हें रोक क्यों नहीं रही है ? अब जब यह साफ हो गया है कि लालकिले की पूरी कार्रवाई के पीछे भाजपा नेता दीप सिद्दू की अहम भूमिका थीं तब मीडिया और अंधभक्तों के बीच से यह सवाल भी नहीं उठ रहा है कि दीप सिद्दू को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. उसे फांसी पर लटका देना चाहिए.
बहरहाल…दिल्ली के किसान आंदोलन से यह तो साफ हो गया है कि सूअर मीडिया ( गोदी मीडिया ) अंधभक्तों के साथ सत्ता का गठजोड़ बेहद खतरनाक हो चुका है. ये गद्दार लोग चंद टुकड़ों के एवज में देश को बरबाद करने के घिनौने खेल में लगे हुए हैं. इनके खेल को बेनकाब करते रहना बेहद जरूरी है. जो जहां पर है वहीं से अपना प्रतिरोध जारी रखें.
सूअर मीडिया और उससे जुड़े लोगों
अंधभक्तों सूअरों
ये देश तुम्हारे बाप का नहीं है.
हम इसे मिटने और बरबाद होने तो नहीं देंगे
चाहे जो हो जाय.
इंकलाब-ज़िंदाबाद