मां बम्लेश्वरी के दर्शन करने भक्तों का लगा तांता, 24 घंटे रोपवे की सुविधा, जानिए मंदिर का इतिहास

डोंगरगढ़. आदिशक्ति माता का नौ दिवसीय उत्सव नवरात्र आज से शुरू हो गया है. मां बम्लेश्वरी के पावन धाम डोंगरगढ़ में आज से भक्तों की भीड़ जुटने लगी है. देश-विदेश से भी माता के भक्त डोंगरगढ़ पहुंच रहे हैं. कहा जाता है कि डोंगरगढ़ में मांगी गई भक्तों की सारी मनोकामनाएं माता बम्लेश्वरी पल में ही पूरी कर देती है. मां बम्लेश्वरी का यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है. यहां दो प्रचलित किवदंतियां है.

मां बम्लेश्वरी मंदिर की पहली कहानी

डोंगरगढ़ शहर पहले कामावती नगर के नाम से जाना जाता था. यहां के राजा कामसेन हुआ करते थे, कहा जाता है कि उन्होंने अपने तपोबल से मां बगलामुखी को प्रसन्न कर यहां के पहाड़ों में विराजमान होने की विनती की और मां बगलामुखी यहां भक्तों के कल्याण के लिए पहाड़ों पर विराजमान हो गई. अत्यधिक जंगल और पहाड़ी दुर्गम रास्ता होने के कारण राजा कामसेन ने पुनः मां से विनती की और नीचे विराजमान होने का आग्रह किया. इसके बाद मां बगलामुखी राजा कामसेन की भक्ति से प्रसन्न होकर पहाड़ों से नीचे छोटी मां के रूप में विराजमान हुई. कालांतर में भाषाई उच्चारण के चलते मैया का नाम बम्लेश्वरी पड़ा.

दूसरी कहानी

दूसरी कहानी राजा विक्रमादित्य से जुड़ी है. कहा जाता है कि डोंगरगढ़ के राजा कामसेन कला संगीत प्रेमी थे और अपने दरबार में कलाकारों को विशेष सम्मान दिया करते थे. राजा कामसेन के दरबार में एक बार कला संगीत के बड़े कार्यक्रम का आयोजन था, जिसमें राज्य नर्तकी कामकन्दला अपनी प्रस्तुति दे रही थी. तभी बाहर द्वार पर फटे पुराने कपड़े में संगीतकार माधवनल वहां पहुचते हैं और द्वारपालों से कहते हैं कि जाकर अपने राजा को बताओ कि अंदर चल रहे संगीत में तबला बजाने वाले का एक अंगूठा नकली है और जो नर्तकी नाच रही है उसके पैरों में बंधे घुंघरुओं में एक घुंघरू कम है.

जब राजा को माधव की बात पता चली तो राजा कामसेन ने दोनों बातों की जाँच कराई. जांच में दोनों ही चीजे सही निकली फिर क्या था ! कला प्रेमी राजा कामसेन ने माधवनल को ससम्मान अपने राज्य में स्थान दिया. समय के साथ राज्य नर्तकी कामकन्दला और संगीतकार माधवनल में प्रेम हो गया और दोनों छिप छिप कर मिलने लगे, लेकिन प्रेम और हंसी छिपाए नहीं छिपती, जल्दी ही पूरे राज्य में दोनों की प्रेम कहानी सब को पता चल गई, जिसका नतीजा ये हुआ कि माधवनल को राज्यद्रोही बनाकर राज्य से बाहर कर दिया गया. इसके बाद राज्यद्रोही माधवनल ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में शरण ली. वहां उन्होंने एक शिलालेख लिखा, जिस पर वहां के राजा विक्रमादित्य की नजर पड़ी और वे माधवनल से मिले. जब उन्होंने माधव की कहानी सुनी तो क्रोधित होकर कामावती नगर (डोंगरगढ़) पर धावा बोल दिया.

घने जंगलों की वजह से राजा विक्रमादित्य की सेना कामावती नगर पर विजय नहीं कर पा रही थी, फिर राजा विक्रमादित्य ने स्वयं भयंकर युद्ध करके राजा कामसेन को परास्त किया. युद्ध में कई हत्याएं हुई, जिसे देख राजा विक्रमादित्य विचलित हो गए और उनके मन में प्रश्न आया कि जिन प्रेमियों के लिए मैंने इतना भयंकर युद्ध किया क्या उनका प्रेम सच्चा है ? राजा विक्रमादित्य ने परीक्षा लेने के लिए कामकन्दला को कह दिया कि हम युद्ध तो जीत गए, लेकिन इस युद्ध में तुम्हारा प्रेमी माधवनल नहीं रहा. कामकन्दला ने सुनते ही तालाब में कूद कर आत्महत्या कर ली, पूरी बात जब माधवनल को पता चली तो उसके भी प्राण तुरंत ही चले गए.

अब राजा विक्रमादित्य का मन और भी ज़्यादा विचलित हो गया. कहते हैं तब राजा विक्रमादित्य ने यहां की पहाड़ी पर माता की घनघोर तपस्या की और माता प्रसन्न हुई, जिसके बाद दोनों प्रेमियों को माता ने फिर जीवन दान दिया और तब से ही माता यहां मां बमलेश्वरी के रूप में विराजमान है.

माता के नवरात्रों में यहां लाखों भक्त दर्शन को पहुंचते है, जिनकी सारी व्यवस्था करना मंदिर ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी होती है. सुरक्षा में पुलिस के आठ सौ जवान तैनात किए जाते हैं. डोंगरगढ़ में इस बार गर्मी को देखते हुए रोपवे में वातानुकूलित प्रतीक्षालय बनाए गए हैं. नौ दिनों तक 24 घंटे भक्त माता के दर्शन करते हैं. वहीं मंदिर में सतचंडी यज्ञ किया जा रहा. यात्रियों की सुविधा के लिए 24 घंटे रोपवे चालू है. साथ ही सीढ़ियों पर भी जगह-जगह सारी व्यवस्थाएं चौबीसो घंटे चालू है.

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