मुंबई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार को अपने पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान ‘पुष्पक’ को लॉंन्च किया. एसयूवी आकार के पंखों वाले रॉकेट “स्वदेशी अंतरिक्ष शटल” को कर्नाटक के चलाकेरे रनवे से लॉन्च किया गया. यह पुष्पक की तीसरी प्रायोगिक उड़ान थी, जिसमें अधिक जटिल परिस्थितियों में इसकी रोबोटिक लैंडिंग क्षमता का परीक्षण किया गया.
इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, “पुष्पक प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष तक पहुंच को सबसे किफायती बनाने का भारत का साहसिक प्रयास है.” उन्होंने कहा, “यह भारत के भविष्य का पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान है, जिसका सबसे महंगा ऊपरी चरण, जिसमें महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स लगे हैं, को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर पुन: प्रयोज्य बनाया जाता है. बाद में यह कक्षा में उपग्रहों में ईंधन भरने या फिर नवीनीकरण के लिए कक्षा से उपग्रहों को पुनः प्राप्त करने का काम भी कर सकता है. भारत अंतरिक्ष मलबे को कम करना चाहता है, और पुष्पक भी उसी दिशा में एक कदम है”
इसरो ने पुष्पक के लॉन्च के बाद एक बयान में कहा. “इसरो ने आज सुबह 7.10 बजे कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (एटीआर) में आयोजित श्रृंखला के दूसरे आरएलवी लेक्स-02 लैंडिंग प्रयोग के माध्यम से पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (आरएलवी) प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. पिछले साल आरएलवी-एलईएक्स-01 मिशन पूरा होने के बाद, आरएलवी-एलईएक्स-02 ने हेलीकॉप्टर से रिलीज होने पर ऑफ-नोमिनल प्रारंभिक स्थितियों से आरएलवी की स्वायत्त लैंडिंग क्षमता का प्रदर्शन किया.”
बयान में कहा गया “आरएलवी को फैलाव के साथ अधिक कठिन अभ्यास करने, क्रॉस-रेंज और डाउनरेंज दोनों को सही करने और पूरी तरह से स्वायत्त मोड में रनवे पर उतरने के लिए बनाया गया था. पुष्पक को भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए उठाया गया और 4.5 किमी की ऊंचाई छोड़ा गया था. रनवे से 4 किमी की दूरी पर रिलीज होने के बाद पुष्पक स्वचालित रूप से क्रॉस-रेंज सुधारों के साथ रनवे पर पहुंचा. यह रनवे पर सटीक रूप से उतरा और अपने ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम का उपयोग करके रुक गया.“
आरएलवी-एलईएक्स-01 में इस्तेमाल किए गए पंख वाले शरीर और सभी उड़ान प्रणालियों को उचित प्रमाणीकरण/मंजूरी के बाद आरएलवी-एलईएक्स-02 मिशन में पुन: उपयोग किया गया था. इसलिए इस मिशन में उड़ान हार्डवेयर और उड़ान प्रणालियों की पुन: उपयोग क्षमता का भी प्रदर्शन किया गया है. आरएलवी-एलईएक्स-01 के अवलोकन के आधार पर, उच्च लैंडिंग भार को सहन करने के लिए एयरफ्रेम संरचना और लैंडिंग गियर को मजबूत किया गया था.”
“मिशन को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) ने लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (एलपीएससी) और इसरो इनर्शियल सिस्टम्स यूनिट (आईआईएसयू) के साथ पूरा किया. इसकी सफलता में आईएएफ, एडीई, एडीआरडीई और सीईएमआईएलएसी समेत विभिन्न एजेंसियों ने योगदान दिया. इसरो अध्यक्ष और डीओएस सचिव एस सोमनाथ ने इस जटिल मिशन के त्रुटिहीन निष्पादन के लिए टीम को बधाई दी.