अपना पेट काटकर गरीब, जरुरतमंदों और अनाथों का पेट पाल रहे लाल बहादुर, टपरी पर समाजसेवियों और सेवादारों से भी नहीं लेते पैसे

नारायणपुर. कहा जाता है इस दुनिया में कोई अकेला नहीं है. जिनका कोई नहीं होता, उनके साथ ईश्वर होते हैं और मुसीबतों में ईश्वर किसी भी रूप में आकर मदद करते हैं. ऐसे ही चाय बेचने वाले एक व्यक्ति लाल बहादुर पटेल हैं. जिला अस्पताल नारायणपुर के सामने ठेला लगाकर चाय, ब्रेड और फल बेचते हैं. जो विछुप्त, विकलांग, गरीब, अनाथ मरीजों को निःशुल्क चाय, ब्रेड और फल खिलाकर उनकी सेवा करते हैं. इसके साथ ही मृतक के सभी परिजनों, सफाई कर्मियों और समाजसेवियों से चाय के पैसे नहीं लेते.

लाल बहादुर पटेल 2009 से जिला अस्पताल के सामने ठेला में दुकान चला रहे हैं. उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो पुत्र हैं. जो अटल आवास में दो कमरे के मकान में रहते हैं. एक पुत्र भोपाल में फार्मेसिस्ट का कोर्स कर रहा है. दूसरा पुत्र कम्प्यूटर कोर्स कर रहा है. वह आगे और पढ़ना चाहते हैं. लेकिन पटेल के पास पैसे नहीं हैं. पटेल प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर 6 बजे से पहले अपना ठेला लेकर अस्पताल के सामने पहुंच जाते हैं. जो रात 9 बजे वापस लौटते हैं. इस दिनभर की महेनत और सेवा के बाद पटेल की 200 से 250 रुपये की आमदनी होती है. उनकी आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं है. फिर भी उनसे गरीब, असहाय मरीजों की पीड़ा देखी नहीं जाती. उनके लिए वे अपना पेट काट कर उनका पेट भरने में जुट जाते हैं. वर्तमान में पटेल की शासन-प्रशासन अथवा किसी से भी कोई मांग नहीं है. पटेल कहते हैं कि जितना है उतने में संतुष्ट हूं और लोगों के लिये जितना कर सकता हूं उतना करुंगा. जरूरतमंदो की मदद करने से मुझे खुशी होती है.

जरुरतमंदो के मददगार

समाजसेवक डॉ. वली आजाद ने लाल बहादुर पटेल के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि उनके इस सेवाभाव से मैं बहुत प्रभावित हूं. मैंने उन्हें कई दफा आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को रक्तदान करने आये रक्तदाताओ को निःशुल्क फल खिलाते और जूस पिलाते देखा है. मैं भी उनकी तरह समय-समय पर उनके साथ इस नेक काम में शामिल होता हूं. और आप सभी से भी अपील करता हूं कि पटेल की तरह आप जरूरतमंदो के मददगार बनें.

छत्तीसगढ़ प्रदेश स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष और फार्मेसिस्ट कमलेश उसेण्डी कहते हैं कि लाल बहादुर पटेल जरूरतमंदों के मददगार होने के साथ ही लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी करते हैं. अंदुरुनी इलाकों से आये अथवा संकोच करने वाले मरीजों को बीमारी से संबंधित डॉक्टर से मिलने, दवा मिलने का स्थान, खून जांच के स्थान तक ले जाने में भी मदद करते हैं. उनके इन नेक कार्यों की समाज में सराहना होने के साथ ही बहुत अच्छा संदेश लोगों तक पहुंच रहा है.

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