मुंह फट

‘रवि शुक्ला’

मालदार फिर भी चिंतन.

प्रदेश के 3 बड़े नेता नगर के लाल समेत आजकल चिंता में है, चिंता इस बात की है कि उनको चिंतन शिविर में नहीं बुलाया गया। खतरे की घंटी है भी की भाजपा जैसी बड़ी पार्टी जब चिंता कर रही हो और ऐसे में तीन मालदार बनिया नेताओं को नहीं बुलाया गया तो चिंता होना वाजिब है।

भाजपा में पहले की बात और थी तब पार्टी चलाने के लिए पाई-पाई की जरूरत पड़ती थी। तब ऐसे में मालदार नेताओं का संगठन को मुंह ताकना पड़ता था, अब तो गुजरातियों के राज में पार्टी के पास माल ही माल है, एक कहावत है कि खुदा हुस्न देता है तो नजाकत आ ही जाती है। अब इसे नजाकत ही कहेंगे की गौरीशंकर अग्रवाल, राजेश मूडत और अमर अग्रवाल को चिंतन शिविर से परहेज कराया गया। संगठन के नेता बताते हैं कि ऐसा कर के जनसेवा से दूर होने वाले नेताओं को संकेत दिया गया है कि वक्त है अभी भी काम पर जुट जाओ।

विधायक के भाव बढ़े.

सियासत आजकल म्यूच्यूअल फंड की तरह हो गई है जिसमें मुनाफा तो बहुत है लेकिन निवेश के साथ साथ जोखिम भी उठाना पड़ता है छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ताबड़तोड़ सत्ता में आई और जैसे कांग्रेसियों की फितरत है कि वह बिना लड़े रह नहीं सकते सामने कोई नहीं मिला तो आपस में ही सही, लेकिन ढाई साल वाले फार्मूले पर लड़ तो रहे पर बहुत सलीके से और इस लड़ाई में शहर के हंसमुख पांडे ने म्यूच्यूअल फंड की तरह निवेश कर दिया है।

बाबा के साथ हो लिए है वैसे भी सत्ता में रहते वो बेआबरू हो रहे थे। कांग्रेस के लोगों के साथ ब्यूरो ब्यूरोक्रेसी में उनकी पूछ परख अब बढ़ने लगी है, लोग सोचने लगे हैं क्या पता ढाई साल के लिए बाबा सीएम बन गए तो, तब तो हंसमुख लाल पांडे की पौ बारह हो जाएगी जो लोग पहले बैठे ठाले पंगा लिया करते थे। आजकल सकते में है और तो और पांडे जी के चंगू मंगू भी काफी मान सम्मान पाने लगे हैं।

तहसीलदार बाहर,मुनीम की आफत.

जिले के महत्वपूर्ण जगह में एक रसूखदार 8 माह पहले पदस्थ हुए थे,रसूखदार इसलिए क्योकि बड़े प्रशासनिक अफसरों से यारी थी,इसलिए दमदारी से काम भी करते थे और काम के एवज में तगड़ा दाम भी लेते थे,चाहे सत्तासीन पार्टी के नेताओ का फोन आ जाये या फिर विधायक या मंत्रालय से ही क्यो नही,बिना एडवांस में दाम लिए काम टस से मस नही होता थ।

दाम के हिसाब किताब के लिए महाशय ने एक मुनीम भी रखा हुआ था। साहब ने अपनी पदस्थापना के दौरान बड़े बड़े काम निपटाए इसके अलावा अपने मुनीम को सामने रख कर जमीन के कारोबार में भी कूद पड़े। साहब की तगड़ी सेटिंग को देखते हुए लोग उन्हें बड़े कामो को निपटाने के लिए बड़ी रकम एडवांस में ही दे दिया करते थे। भरोसा इतना ज्यादा कि सबको लगता था कि मंत्रालय तक इनकी पहुँच होने के कारण इनका तबादला हो ही नही सकता। जबकि वकीलों के आंदोलन व खुद कलेक्टर के तहसील आफिस पहुँच कर फटकार लगाने पर भी जमीन कारोबारियों का विश्वास नही डगमगाया और साहब की लंबी टाइम की पोस्टिंग जान कर उनके मुनीम को अपने कामो के लिए एडवांस रकम थमा दिया,पर कलेक्टर ने भी नहले पे दहला मारते हुए बिना तबादलो के मौसम के ही नायब तहसीलदार को जंगल एरिया में भेज दिया और राजनीतिक दबाव को दरकिनार करते हुए तुरन्त रिलीव भी करवा दिया। अब तहसीलदार ने जिन कामो के लिये एडवांस लिया था वो पूरा किये बगैर ही वो रिलीव हो गए पर मुसीबत तो आन पड़ी गोड़पारा निवासी तहसीलदार के दलाल पर क्योकि सारा लेनदेन उसी के मार्फ़त किया जाता था,इसलिए एडवांस देने वाले सभी अब साहब को छोड़ कर रकम वापसी के लिए उक्त दलाल के पीछे लग गए हैं।

किसान मोर्चा की पलटी.

कांग्रेस पार्टी में किसान मोर्चा का एक दलबदलू नेता है आप जान जाओगे हट्टा कट्टा मुंडा बादशाह पहचाने न जो आजकल कल हंसमुख लाल पांडे का दामन छोड़ दिया है पहले सुबह से लेकर रात तक विधायक खेमे का बनकर तेल लगाता था।

जब से ढाई साल के चक्कर में नेताओं की दिल्ली दौड़ हुई है तब से भूपेश कका के आगे पीछे मुंडा बादशाह घूम रहा है भले कोई भाव मिले न मिले, मगर रोल पूरा देता है दाएं बाएं के लोग भी समझ रहे हैं चलो जो भी है विधायक खेमे के लिए अब विलन बन चुके इस किसान मोर्चा के नेता से खेमे के लोग खार खाए हुए है, बहुत छानबीन के बाद पता चला कि दिल्ली में बाबा के खिलाफ तिवारी जी के साथ बयान बाजी कर भी कर रहे थे।

नगर के लालो पर पुलिस की कृपा.

पुलिस महकमें में आज भी नगर के लल्लो कि चल रही है पता है क्यों क्योंकि ,नगर के लल्ला और कांग्रेस के कका दोनों में खूब छनती है। भले पार्टी अलग-अलग है तो क्या हुआ,इसका लाभ नगर के लल्लो को मिल ही जाता है, नहीं तो पिछले दिनों कोटा थाना क्षेत्र के पिपरतराई के एक फार्म हाउस से बड़े बड़ो को पुलिस टीम ने पकड़ा।

लेकिन लल्ला छूट गए एक तो उसमें एक समय का मशहूर एल्डरमैन था। वैसे भी अब पुलिस में देश भक्ति जनसेवा करने वाले कम ही रह गए हैं और धनकुबेर पकड़ाते है तो पुलिस के कुछ लोग अपना स्लोगन बदलकर धन भक्ति का मेवा चख लेते है।

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