‘रवि शुक्ला’
सत्ता और फालूदा.
कुत्ते (स्वान) में और आला अफसरों में एक खास विशेषता होती और वह है सूंघने की क्षमता,जहां जितना तेज होगा उतना जल्दी सूंघ कर लपक लेंगे। छत्तीसगढ़ के आईएएस आईपीएस ने भी शायद ढाई-ढाई साल के सियासी माहौल को सूंघ लिया है,तभी तो सत्ताधारी खेमे के कांग्रेसी विधायकों के काम होना बंद हो गया है।
महासमुंद के चार विधायकों को खासतौर पर टारगेट पर रखा गया है,नहीं सुनने की वजह एक तरह से बीजेपी का ट्रेंड है। इस ट्रेंड को कांग्रेस ने भी अपना लिया है, ट्रेंड यह चल निकला है कि सियासत का मुखिया डायरेक्ट आईएएस-आईपीएस को टेकल करेगा और ये अफसर डायरेक्ट मुखिया को रिपोर्टिंग करेंगे। ऐसे में विधायक की तो छोड़ो मंत्रियों को भी अपनी इज्जत ढकनी पड़ रही है की कहीं मंत्रियों की इज्जत का फालूदा न निकल जाए।
विदाई बीस दिन में.
गौरेला पेंड्रा मरवाही के एएसपी को 20 दिनों में चलता कर दिया गया लोग पूछ रहे हैं आखिर ऐसा क्या हुआ और क्यों?
पहली सलाह– सीजीपीएससी पास कर डायरेक्ट डीएसपी बने 2013 बैच के अफसर (अब प्रमोट होकर एएसपी) और प्रमोशन पाने वाले नए नवेले के लिए मुफ्त की सलाह कि सोशल मीडिया पर ज्यादा हीरोपंती नहीं करना चाहिए काम कम और दर्शन ज्यादा को बड़े अफसर अच्छा नहीं समझते ज्यादा दिखने दिखाने से किसी न किसी की बुरी नजर लग ही जाती है.
दूसरी सलाह– बदलते वक्त में किसी अबला को अबला नहीं सबला समझना चाहिए तभी तो सबला ने पहले देहात के एएसपी गिरी की, फिर जिले के गुप्तचर विभाग की जिम्मेदारी को बखूबी संभाला,अब फिर से नवा पड़ोसी जिले में फील्ड में काम करेगी,अब ऐसा है कि कुर्सी पाने से ज्यादा उसे बचाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है और इसके लिए सत्ता के गलियारों में अनुभव की बेहद जरूरत होती है।
तीसरी सलाह– जीपीएम के फील्ड का काम भले हाथ से चला गया हो, लेकिन मुख्यालय के गुप्तचर विभाग में प्रभारी एसपी की कुर्सी जो मिली है उससे संतोष कर लेने में ही भलाई है जो प्राप्त है पर्याप्त है की तर्ज पर ज्यादा से ज्यादा अनुभव लेने की कोशिश करना चाहिए। तबादला कैंसिल करवाने के जुगाड़ में ज्यादा हाथ पैर मारना ठीक नहीं,क्या पता जो काम गुप्त सूचना एकत्र करने का मिला है,वह भी हाथ से न चला जाए।
पुलिस में नया चलता पुर्जा.
पुलिस की वर्दी मिले और जी हुजूरी के गुण हो तो पौ बारह होना तय है, तो 2013 बैच में भर्ती हुए डीएसपी प्रमोशन पाकर भले एएसपी बन गए हैं। लेकिन पुलिस विभाग में ट्रांसफर- पोस्टिंग को लेकर उनकी तूती बोलने की चर्चा आम और खास हो गई है और तूती क्यो नही बोलेगी भई जब उनके बैचमेट अपने प्रमोशन का जश्न आज मना रहे जबकि वह तो काफी पहले ही अपने कंधों पर प्रमोशन का अशोक चमका चुके हैं,आलम यह है कि अब बैचमेट अपना तबादला रुकवाने उनके सामने गिड़गिड़ा रहे हैं कहते हैं जब बीजेपी की सरकार थी तब भी और कांग्रेस की सरकार में अब भी वह चलता पुर्जा है, जो नहीं जानता पूछेगा आखिर यह है कौन?
कहते हैं सौ गुप्ता के ऊपर एक अग्रवाल भारी पड़ता है और यहां तो एक मारवाड़ी सब पर भारी पड़ गया है,अब दिगम्बर है कि या श्वेताम्बर यह तो नहीं पता।
जुए सट्टे पर बट्टा.
इस बार जिले को पुलिस कप्तान बहुत बढ़िया मिले हैं आते ही जुआ-सट्टा वालो को ठिकाने लगा दिया। तो सारे थानेदार रो रहे हैं अरपा पार के एक थानेदार का तो हाल बेहाल हैं सोचा था बड़ा थाना क्षेत्र मिला है कमाई भी बढ़िया होगी।
मगर गई भैंस पानी में,हाल ये है कि चाय पानी का ख़र्चा निकालना मुश्किल हो गया है। सारे सटोरियों की उम्मीद अब एक मात्र ऑनलाइन पर टिकी हुई हैं,थोड़ा बहुत इसी से खर्चा पानी निकलने की उम्मीद थी। अब उस पर भी बट्टा लग गया है क्योंकि पुलिस की साइबर टीम ने भी अपना हाथ खींच लिया है, सही तो है पहले साइबर टीम क्लू देती थी और माल-मलाई थानेदार सोट आते थे। आखिर कब तक ऐसा चलता साइबर वाले फ्री के बैल तो है नही सब मिलाकर जुए और सट्टे पर पुलिस का बट्टा लग गया है।
शाबास: सृष्टि संग डेविड.
जिले में पदस्थ एक महिला डीएसपी हैं जिन्होंने बिलासपुर में ही अपना प्रशिक्षण पूरा किया हैं और प्रशिक्षण पूरा करते ही उनके कंधों पर भारी भरकम जिम्मेदारियों का बोझ संभाल रही है। जिले में पुलिस अधिकारियों की कमी के चलते उन्हें जुलाई में सब डिवीजन का चार्ज मिला। श्रीमती सृष्टि चंद्राकर के ससुर सुनील डेविड चकरभाटा सब डिवीजन के सीएसपी हुआ करते थे,अब इसे चमत्कार ही कहेंगे कि उनके ससुर के रिटायरमेंट के बाद उनकी जगह सब डिवीजन का चार्ज श्रीमती चंद्राकर को मिला, इसलिए जायज है कि अब ससुर की पुरानी जिम्मेदारियों का निर्वहन बहु कर रहीं हैं।अजाक के डीएसपी के रूप में उन्हें जिले भर के अनुसूचित जाति,जनजाति के लोगो को भी न्याय और समानता दिलाने की जवाबदारी मिली हैं और वो अजाक थाने के अलावा जरूरत के हिसाब से जिले की पुलिसिंग में अपना योगदान दे रही है। लॉ एंड ऑर्डर महिला अफसर बखूबी निभा रहीं हैं।
जिले का बढ़ाया मान.
खास बात यह हैं कि महिला पुलिस अफसर का बखूबी निर्वहन करते हुए भी उन्होंने पीएससी मेंस 2020 की परीक्षा भी दिलाई औऱ पीएससी 2019 की परीक्षा मे पूरे प्रदेश भर में परचम लहराते हुए दूसरे स्थान पर कब्जा किया है। हालांकि इसके लिए सृष्टि चंद्राकर के 9 सालों की मेहनत रंग लाई, इंजीनियरिंग करने के बाद सन 2012 में पहली बार इंटरव्यू तक पहुची सृष्टि चंद्राकर ने सफलता नही मिलने पर हार नही मानते हुए प्रयास में लगीं रहीं और 2015 में सहायक जेल अधीक्षक और 16 में डीएसपी के बाद अब पीएससी के सर्वोच्च पद पाने में कामयाब रहीं हैं। इस आपाधापी के बीच उन्होंने अपने पति सोनाल डेविड जो कि वर्तमान में सहायक जेलर के पद पर केंद्रीय जेल बिलासपुर में पदस्थ है उनका भी भरपूर साथ दिया श्री डेविड 2015 में सहायक जेल अधीक्षक के लिए चयनित हुए उसके बाद 2017 में भू अभिलेख अधिकारी इसके बाद उनका मनोबल कम नहीं हुआ और पीएससी एक्जाम की तैयारी करते रहे। आखिरकार पत्नी के साथ उन्होंने भी पीएससी में पूरे प्रदेश में तीसरे नंबर रैंक हासिल किया और बिलासपुर जिले का नाम सृष्टि संग डेविड की जोड़ी ने रौशन किया है।
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