‘रवि शुक्ला’
अपमान के ढाई साल.
शहर के नेता हंसमुख पाण्डेय का अपमान कोई साधारण घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे असाधारण राज छुपा है। बाबा से नज़दीकियां और उनके संग दिल्ली की दौड़ कीमत ,कहीं न कहीं चुकानी तो पड़ेगी न,जैसा कर वैसा भर और जैसा भर वैसा पा, यही सियासत का उसूल है।
सियासत क्रिकेट की तरह है कभी-कभी नो बॉल में भी छक्का पड़ जाता है। लोग सोचते हैं कि बाबा कहीं सीएम बन गए तो, अपमान करने वालों का क्या होगा और अब कका की जड़ों में मट्ठा डालने की कुछ तो कीमत चुकानी पड़ेगी। इसमें बुरा क्या मानना बाबा को उम्मीद थी कि चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस जागेगी और ढाई-ढाई साल का फार्मूला लागू करेगी। इसके लिए एक बार फ्री वे दिल्ली में पंडित जी के साथ डटे हुए थे।
डिजिटल भाजपा.
केंद्र में जब से भाजपा की सरकार आई है तब से सब कुछ ऑनलाइन होने लगा डिजिटल इंडिया का फार्मूला भाजपा संगठन ने भी लागू कर दिया गया है। शहर में कार्यकर्ताओं को नसीहत दी जा रही है कि बूथ लेवल पर अपना व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं लोगों को अपने विचारों से जोड़े और खासकर बुजुर्गों पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि उनके विचारों को बदलने में थोड़ा समय लगता है।
शहर के लाल यहां भी भाजपा को डिजिटल करने में लगे हुए एक बार हार ने नेता जी की कमर थोड़ी झुका दी है। बोली में मिठास आने लगी है। कार्यकर्ता सब जानते हैं, अब संगठन का काम है तो सब कर भी रहे है। देखेंगे शहर में भाजपा का डिजिटलआईजेशन कितना फलीभूत होता है।
पुलिस को नो एंट्री.
एक वक्त था जब पुलिस की कमाई का बड़ा जरिया शराब के ठेके से हुआ करता था पर शराब के सरकारीकरण के चलते पुलिस की आय का बड़ा हिस्सा मार खा गया। कमाई को मेंटेन रखने के लिए पुलिस अब कोयला,कबाड़ी,जुआ व सट्टा पर ही आश्रित रह गयी है। हालंकि थोड़ी सी राहत जिन थाना क्षेत्रों में बार संचालित है वहा के पुलिसकर्मियों को मिल रही थी।
यू तो बार संचालक सीधे सीधे ऊपर से लाइनअप होते है और छोटे पुलिसकर्मियों को मुँह नही लगाते पर फिर भी सुविधा शुल्क के रूप में व्यवहार में बार से फ्री में पीने की सुविधा मिल जाया करती थी। हाल ही में एक वाक्या सामने आया। शहर के एक थाना क्षेत्र में लगभग आधा दर्जन बार संचालित है। थाने के पुलिसकर्मी कभी किसी तो कभी किसी बार मे ड्यूटी के दौरान जाकर गला तर कर लेते थे। आदत के चलते पुलिसकर्मी बार पहुँचे तो बार कर्मियो ने उन्हें फ्री में पिलाने से इंकार कर दिया, कारण पूछने पर मैनेजर से बात कर लेने को कहा। पुलिसकर्मियों ने जब बार मैनेजर से पूछा तो उसने ऊपर के आदेश का हवाला देकर फ्री की शराब पिलाने से इंकार कर दिया। पुलिसकर्मियों के द्वारा ऊपर का पता पूछने पर दिलचस्प खुलासा हुआ। बार मैनेजर ने बताया कि आपके थानेदार का फरमान हैं कि मेरे किसी भी स्टाफ को फ्री शराब नही परोसनी हैं। जो भी हिसाब किताब करना है सीधा मुझसे ही करना होगा व बार का कोई काम आता भी है तो सीधा मुझसे सम्पर्क कर लें आप लोगो के सारे काम निपट जाएंगे। इतना सुनते ही पुलिस कर्मी अपना उतरा हुआ मुँह लेकर वापस लौट गए। एक तो थाने के बड़े मामलो को तो थाना प्रभारी डील करते हैं। बची खुची खुरचन पानी जो मिल जाती थी अब उस पर भी ग्रहण लग गया।
कांग्रेस की ऑनलाइन फजीहत.
कांग्रेस में छात्र संगठन चुनाव में पहले भी फजीहत होती थी और अब ऑनलाइन चुनाव कराने से और फजीहत हो रही है। पहले जब ऑफलाइन चुनाव होते थे तब भारी-भरकम सदस्य बनाकर दबदबा दिखाया जाता और जीत हार होती थी पर इतना सब कुछ न्यू न्यूनतम में हो जाता था।
इस बार आलाकमान ने सदस्य शुल्क 50 रुपए तो कही अलग अलग पदों के इससे भी ज्यादा का पैकेज बना दिया है। जो जितने सदस्य बनाएगा उसके जीतने की उतनी ज्यादा उम्मीद होगी सीधी सी बात है। कांग्रेस का सदस्य बनने कोई सदस्यता शुल्क क्यों देगा, लिहाजा चुनाव लड़ने वाला ही जेब ढीली करेगा ऐसी सदस्यता शुल्क भरते-भरते नेताओं को बाद में पता चला कि पूरे प्रदेश में पार्टी फंड के लिए पांच खोखे से ज्यादा का फंड जमा हो जाएगा। अब ऐसे नेता जो पदों की दौड़ में थे जेब ढीली होने के बाद आलाकमान को भला-बुरा कहते फिर रहे,वो इसलिए कि बड़े स्केल पर चुनाव कराकर उसकी आर्थिक स्थिति की कमर जो तोड़ दी है।
स्वास्थ्य विभाग में रस्साकशी.
यू तो स्वास्थ्य अमले का काम लोगो के स्वास्थ्य का ख्याल रखना होता है,पर इस वक्त जिले के स्वास्थ्य विभाग की हालत अभी खुद ही बिगड़ी हुई है और इसे सम्हालने वाला भी कोई भी नजर नही आ रहा है। स्वास्थ्य विभाग में पहले एक डॉक्टर सिविल सर्जन के चार्ज में थे। बीच मे उन्हें इस चार्ज के कार्यमुक्त करते हुए सीएमएचओ का सिविल सर्जन का चार्ज दे दिया गया।
सिविल सर्जन का चार्ज छीने जाने के बाद किसी तरह पूर्व डाक्टर ने जुगाड़ जमा कर फिर से सिविल सर्जन के पोस्ट पर कब्जा जमा लिया। तो बेशक सी बात है सीएमएचओ से सिविल सर्जन का चार्ज वापस ले लिया गया। यह बात साहब से ज्यादा उनके चंगु मंगुओ को नागवार गुजरी। उन्होंने सीएमएचओ के सामने नम्बर बढ़ाने के लिए मुखबिरी कर जिला अस्पताल का तब दौरा करवा दिया जब सिविल सर्जन अस्पताल में नही थे। उसके बाद टाइम में अस्पताल न पहुँचने का नोटिस भी सिविल सर्जन को थमा दिया गया। जिससे साहब के चंगु मंगुओ के दिल मे ठंडक पड़ गयी। अब देखना यह है कि डाक्टरो के बीच शह और मात का यह खेल खेलते हुए लोगो के स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाले स्वास्थ्य विभाग का स्वास्थ्य खुद ही न बिगड़ जाएं।