” रवि शुक्ला ”
विजयी तिलक की मच मच.
सुशासन की विष्णु देव सरकार के सुंदर राज में लगातार फोर्स नक्सलियों पर लगाम लगा माथे पर विजय तिलक लगा रही है जो काबिलेतारिफ है। सुशासन सरकार के बूते फोर्स का हौसला भी बढ़ रहा है लेकिन बस्तर डिविजन की कप्तानी में विजयी तिलक अपने माथे पर छुआने होड़ लगी है। जिससे सारे किए कराए ऑपरेशन मटिया मेट हो रहा है। मुद्दे की बात यह है कि बीते दिनों सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर से डीआरजी, एसटीएफ और सीआरपीएफ टीम ने सुकमा और बीजापुर बार्डर पर दस नक्सलियों को एनकाउंटर में मार गिराया।
कोई बता रहा था कि इस बड़ी कामयाबी के बाद फोर्स का रुद्रा अभिषेक करने की बजाए दो नक्सल प्रभावित जिलों के कप्तान होड़ लेने आपस उलझ गए, पहले दक्षिण में एफआईआर हो रही थी जैसे ही पश्चिम वाले ने सुना बस फिर क्या जैसे तैसे सारी फोर्स को बुला एफआईआर अपने जिले के थाने में दर्ज कराई।
फोर्स से दूरी, भूखे पेट रवानगी.
अब एफआईआर तो हो ही रही थी,कप्तान के मन में जाने कौन सी बात थी कि उन्होंने नक्सलियों से दो दो हाथ करने वाले जवानों यहां तक कि नक्सल आपरेशन के एडिशनल एसपी रैंक के अफसर को भी एफआईआर होते तक दूर रखा। अरे भई हद तो तब हो गई जब थकी मादी फोर्स को दाना पानी तक के लिए तरसा दिया गया। अब ऐसा हुआ है तो भूखे पेट भजन न होए गोसाई की चर्चा कैसे दब सकती है वैसे कमाल की बल्ले बाजी की कप्तान साहब आपने.
अब बदले बदले से हो गए अंदाज.
कहते हैं जो हो बेहतर अदाकार होता है वो हर भूमिका में फिट बैठ जाता है। जैसे हिंदी फिल्मों की दुनियां के मशहूर कलाकर जितेंद्र. छत्तीसगढ़ में एक आईपीएस पंडित जी है, तेज तर्रार, मातहतो को कस के गुर्रा कर काम करवाना जानते हैं। पिछली सरकार में बेहद खराब मौसम झेल चुके पंडित जी ने उस वक्त संस्कारधानी में कप्तानी के दौरान मोटी मलाई का भी टेस्ट खराब कर दिया था। फिर क्या कप्तानी कर नहीं पाए और लूप लाइन, लूप लाइन का खेल शुरू.
लेकिन अब समय के साथ सरकार बदल गई है नया रायपुर की एक बिल्डिंग में चर्चा होती है कि फलाने जिले का एसपी बड़ा कलाकारी के मूड में आ गए है। जो पहले हट-हूट करते थे अब सरकार के अनुरूप काम करने में आमादा है। बदले में सरकार उनका पूरा ध्यान रखे इसी पर सुशासन की पुलिसिंग हो रही है होना भी चाहिए भई तेज बरसात तो अच्छे अच्छों को ढहा देती हैं फिर ये तो बेचारे गंगा मईया के किनारे वाले एक इंसान ही है,जरूरी नहीं कि आईपीएस का तमगा लग जाने से कोई अलग सी शक्ति आ जाए समय और सिस्टम सब कुछ सिखा देता है वो अलग बात है कि विभाग और जिले में पंडित जी के अलग किरदार को लेकर बातें हो रही हैं और कहा जा रहा है कि अब बदल गया है अंदाज.
शराब प्रेमियों की हाय तौबा.
होली का खुमार अभी उतरा नहीं है और जब चढ़ा तो ऐसे की क्या पूछना लेकिन शराब प्रेमी शहर और गांव की भट्ठियों का चक्कर लगाने के बड़े दर्द से उबर नहीं पा रहे हैं। बोलते है न कि धन्ना सेठों को कोई फर्क नहीं पड़ता पिस्ता तो सामान्य और निचले तबके आदमी,होली के रंग में शराब का सुरूर चढ़ाने भट्ठी भट्ठी घूमना पड़ा, अध्धा गायब तो पव्वा सिर्फ दो चार कंपनियों का गोवा,पार्टी स्पेशल, कोलंबिया और एक्का दुक्का, बोतल का भी यही हाल जिसकी जैसी औकात उस हिसाब की दारू खरीदे लाए लेकिन बे मन क्योंकि मन पसंद माल भट्ठी से गायब था।
फिर भी आम दिनों की अपेक्षा तीन गुना से अधिक की शराब हजम कर गए मदिरा प्रेमी हालात ये है कि आबकारी विभाग के पास फिलहाल शराब के बूते कितनी रकम सरकार के खाते में गई उसका हिसाब नहीं है वजह गुणा भाग करने वाला कोई स्टॉफ ही नहीं आया खैर जैसे जैसे शराब के घूट अन्दर गए ‘शराबी आबकारी विभाग को कोस रहे है कि साला किसको फायदा पहुंचाने के लिए भट्ठी से माल गायब कर दिए बे,कुछ तो गड़बड़ है अगर शराब का मामला न होता न तो इतनी मेहनत न करते।
PWD का ‘केला’: बस खाइए और ठेका पाइए!
जिले के पीडब्ल्यूडी विभाग में एक अनोखा फल उगता है – केला! यह कोई आम केला नहीं, बल्कि ‘ठेका स्पेशल केला’ है। इसकी मिठास इतनी ज्यादा है कि इसे खाते ही ठेकेदारों की किस्मत चमक उठती है। सड़कों के गड्ढे खुद-ब-खुद भर जाते हैं, नालियां जादू से साफ हो जाती हैं और सरकारी बिल बिना चक्कर लगाए पास हो जाते हैं।
पीडब्ल्यूडी के अधिकारी की खासियत यही है कि उन्हें यह केला चढ़ाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। ठेकेदार आते हैं, मीठे केले की माला पहनाते हैं, और बदले में सरकारी ठेका लेकर निहाल हो जाते हैं।
कैसे उगता है पीडब्ल्यूडी का केला?
यह केला किसी आम खेत में नहीं, बल्कि सरकारी सिस्टम की उर्वरक मिट्टी में उगता है। इसमें भ्रष्टाचार का पानी, सिफारिश की खाद और नियमों की अनदेखी वाली धूप मिलती है। जिससे यह जल्दी तैयार हो जाता है। खास बात यह है कि इसकी मिठास सरकारी टेंडरों पर ज्यादा असर डालती है।
(अगले एपिसोड में केले के चढ़ावे की विशेषताएं)

