मुंह फट

'रवि शुक्ला'     रूखे या रूठे आईपीएस. प्रदेश में एक आईपीएस अफसर का टेस्ट जरा गड़बड़ है। सुशासन सरकार में प्रमोटी आईपीएस का तमगा लगाए पंडित जी आगंतुकों से ऐसे मिलते हैं जैसे सामने वाले को छुआ छूत की बीमारी हो, न बैठने को बोलना न ठीक तरह से सुनना परिचय की बात ही दूर से, कद काठी से लंबे चौड़े लेकिन दिल जरा सा भी नहीं,ये हम नहीं संजीव नी, का फ्लेवर चखने वालों का कहना है। रेंज के बड़े साहब की कुर्सी पर बैठे पंडित जी के तमगे पर व्यक्ति विशेष देख कर बातचीत करने का टैग लगा है वो भी ऐसा कि डायरेक्टर वाले भी आईपीएस अफसर फेल हो जाए। अब जैसे भी हो है तो अफसर और सम्माननीय, बस इनके रूखे या रूठे स्वभाव के लिए चंद फ्री की लाइने, कि... डालकर, अपने किरदार, पर पर्दा, हर कोई, कह रहा है, जमाना खराब है।   प्रमोटी..आईएएस, आईपीएस और. सरकार ने एक बार फिर ट्रांसफर पोस्टिंग का मोर्चा खोल दिया है। जिसकी शुरुआत बड़े लेवल (आईएएस, आईपीएस) से हुई। परफॉर्मेंस देखकर अफसरों को नई सीटिंग दी जा रही है लेकिन सरकार के सुशासन में कलेक्ट्री और पुलिस कप्तानी में प्रमोटियों का बोलबाला डारेक्टर वालों का एक धड़ा मन ही मन मुसियाए और किसी को न बताए वाली स्थिति में है। अंदर इतना गुस्सा भरा हुआ है कि जैसे ज्वाला मुखी तैयार हो रहा है और कब फटेगा पता नहीं बस इंतजार है समय का. पार्ट 2. इसी दौर में राज्य के तीसरे बड़े जिले के एसपी को हटा कर कमांडेंट बना दिया गया। कोई बता रहा था कि तेज तर्रार आईपीएस अफसर की पटरी सरकार से मेल नहीं खाई, शुरू में तो सब कुछ अच्छा चलता रहा। इसी सरकार ने इस आईपीएस को फर्श से अर्श तक लाया और सीधे एसपी का चार्ज देकर हीरो बना दिया लेकिन ऐसा क्या हुआ जो बटालियन की रवानगी दे दी गई। आईपीएस तेज तर्रार के साथ जरा नाफरमानी वाले स्वभाव के है तो सही, लगता है इसी को भाप कर सरकार ने अब बल्क में प्रमोटियों को चांस देने का मूड बना लिया है। पार्ट 3. ऐसे में सिखाड़ी आईएएस, आईपीएस टेंशन में आ गए हैं। कुछ बड़े छोटे जिलों में प्रमोटियों का अनुभव भरा चार्ज देख,हमारा क्या होगा का गहन चिंतन कर रहे हैं। बड़ी उम्मीद और स्पीड से प्रोबेशन काट आगे की राह पकड़ने की सोच के साथ छत्तीसगढ़ कैडर आए मगर उनको डगर आसान नहीं नजर आ रही है। बदले बदले से अंदाज. साहब बदल गए हैं क्या..पता नहीं लेकिन विभाग में ऐसी चर्चा रोज होती है। एसएसपी बनते ही कुछ बदले बदले से अंदाज हो गए हैं साहब के,खुश मिजाज हर मसले को बेहतरी से सुनने की कला तो अब भी है मगर कुछ तो हो बदल सा गया है। रोजमर्रा के काम के साथ इसी की खोज में मातहत लगे हुए हैं वैसे पहले और अब में फर्क तो आया है और आना भी चाहिए सीनियरिटी भी कोई चीज है भई,कुछ ने तो बहुत खुश थे और सुनी सुनाई पर अपने एसएसपी की विदाई के सपने भी संजो लिया था। मगर ऐसा हुआ नहीं, कुर्सी टस से मस नहीं हुई और समझ गया कि अब जैसे भी काम तो इनके साथ ही करना है।





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