‘रवि शुक्ला’
निंदा और सजा..
एक जमाने से दोहा है निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, मगर यह आजकल ज्यादा दिनों तक चलता नहीं है। खासकर पुलिस व आबकारी विभाग में तो बिल्कुल नहीं चलता, हम सबको याद है बीजेपी सरकार में आबकारी के पूर्व मंत्री के जमाने में एक महिला एसआई (सुविख्यात) हुआ करती थी।
आजकल ऐसे ही दोहे की बदौलत व आबकारी विभाग छोंड़ पुलिस विभाग में एडिशनल एसपी बन गई है। राज्य के एक अंतिम छोर के जिले में करीब 4 माह पदस्थ रही और कहते फिरती थी मेरा जुगाड़ 10 जनपद तक है,अब पता चला कि भाजपा शासन काल में भी कुछ नहीं था और कांग्रेस राज में तो हासिल आई सुन्न है। मंत्री के सामने एसपी की चारी चुगली तो एसपी के सामने थानेदारों की बुराई मन नही भरा तो खुद को सुपीरियर साबित करने बीजेपी वालो से मंत्री की कानाफूसी इसके बाद भी मंत्री-अफसरों के सामने मुंह लगे और अच्छे बने रहना,पर यह अब एक्सपोज हो चुका है नतीजा बेचारी पीएचक्यू में अटैच हो गई है।
बाबा-बृहस्पति द एंड..
राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं, सब कह रहे हैं बाबा-बृहस्पति विवाद खत्म हो गया तो इस लिहाज से कहा जा सकता है कि यह मामला दब गया है मगर खत्म नहीं हुआ है।
सियासत मे अगर बात निकली है तो बहुत दूर तलक जाएगी। शतरंज की बिसात पर प्यादे से राजा को घेरने की कोशिश सब समझ रहे हैं। यकीन मानिए लोग बोलेंगे और बोलेंगे क्या गला फाड़कर चीखेंगे, बस चुनाव तो जरा नजदीक आने दो इस मामले से किसका कितना फायदा हुआ यह तो वही जाने, लेकिन कांग्रेस को भरपूर नुकसान हुआ है यह सब जानते हैं। अभी भी वक्त है दिग्गजों को ऐसे दांव पर से बाज आ जाना चाहिए।
भोज राजा और कसावट..
समाज को शिक्षा देने वाला गुरु जी यदि पुलिस अधिकारी बन जाए तो सोचो कि कितना अच्छा हो जाएगा, डिपार्टमेंट में इसका एक उदाहरण मिलता है ऊर्जा नगरी में कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन कोरबा के पुलिस कप्तान की वर्किंग स्टाइल देखिए जो सबसे जुदा है।
वैसे ये स्टाइल राज्य के दूसरे जिलों के पुलिस कप्तानों के लिए सीख भी है की ऊर्जा नगरी की फिजा में जरा चेंज आ गया है नए पुलिस कप्तान जिले की पुलिसिंग में मातहतों को विश्वास, विकास और सुरक्षा की थीम सीखा रहे है। कप्तान अपने मातहतों के कामकाज को क्रॉस चेक भी करते हैं। जिले भर में पुलिस से सताए दुखायारे एसपी से मिलने जाते हैं उनका दुख दर्द मिटा या नही मिटा, इसे खुद पुलिस कप्तान पूछते ही नही बल्कि इसके लिए कोरबा में नई ट्रिक अपना रहे है। एसपी ऑफिस आने वालों के लिए विजिटिंग रजिस्टर रखा गया है। जिससे टॉप 5 नामों को सलेक्ट कर एसपी खुद उन्हें फोन लगा के दुखायारे का हालचाल पूछते हूं कि उनका काम हुआ कि नही,जिस थानेदार ने हुकुम उदुली की फिर उसकी खैर नही और इसी आधार पर जिले के थानेदारों की सीआर तय होती है। प्रदेश में पुलिस विभाग के बड़े साहब की मॉनिटरिंग में कप्तान साहब बता देते हैं कि फलाना थानेदार कामकाज कर रहा है और ढेकाना थानेदार बेकार है। ऐसे में राजा भोज के जमाने में कामकाज में कसावट आना तो तय है।
नए समर्थक और विज्ञापन के खर्चे..
कांग्रेस की सरकार आने के बाद जिले की राजनीति में एक ताकतवर शक्ति केंद्र का उदय हुआ है। विधायक की टिकट कटने के बाद भी भूपेश बघेल के सीएम बनने पर एक स्थानीय नेता ताकतवर साबित हुए और कई नए पुराने समर्थक उक्त नेता के इर्द गिर्द परिक्रमा करने लगे है। इनमे कई ऐसे नेता भी थे जो स्थानीय नेता से दुआ सलाम तो दूर मुरव्वत रखें हुए थे,पर वक्त की नजाकत को देखते हुए सबने नगर के भैया को माई बाप बना लिया।
इनमें सीएमडी के पूर्व छात्र नेता से लेकर कई बीजेपी के नेता भी हैं जो भैया के अघोषित समर्थक और शुभचिंतक बन गए थे और कांग्रेस के लिए किए उनके बलिदानों का बखान कर रहे थे। इस तरह जल्द ही लोकसभा चुनाव आ गया और सभी नुमाइंदो ने ऊपरी तौर पर सक्रियता दिखाई पर भैया मोदी लहर के चलते हार गए। उसके बाद समर्थकों की भीड़ उनके इर्दगिर्द से छिटकने लगी थी।सरकार के ढाई साल बीतने के बाद भैया को पर्यटन मण्डल की जिम्मेदारी मिली तो जाहिर हैं लालबत्ती के साथ ही भैया का वजन भी बढ़ गया है,मौके की नजाकत को देखते हुए मौकापरस्त नेताओ की भीड़ भैया के आस पास फिर से बढ़ गई हैं और कई ठेकेदारों व सप्लायरों ने अखबारों में विज्ञापनो में पानी की तरह पैसा बहाया हैं,जो क्रम आगे भी जारी रहने वाला है। क्योकि भैया का अब जगह जगह लोकापर्ण,शिलान्यास और दौरा होगा तो जाहिर तौर पर भैया के नजरो में आने के लिए विज्ञापन तो बनता हैं।
पिता का रसूख बेटे को फायदा..
सोने की खान मानी जाने वाले राजस्व विभाग में शहरी एरिया में जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं, लिहाजा शहरी एरिया में पटवारी की पोस्टिंग के लिए यहां ऊँची बोली के साथ ऊँची पहुँच भी लगती हैं और विभाग में ऊँची पहुँच बनाने में सालों की सेवा लग जाती हैं, तब जाकर विभाग के उच्चाधिकारियों के भरोसेमंद बन पाते हैं और अधिकारी अपने भरोसेमंद पटवारियों को शहरी एरिया में पदस्थ करते हैं ताकि बिना कोई बाधा के मलाई अधिकारियों तक पहुचती रहें।
नए पटवारी इसलिए शहरी एरिया में पोस्टिंग पाने में असफल हो जाते हैं पर वो कहावत हैं न कि पिता के पुण्यों का प्रताप बेटे को मिलता हैं,इसकी बानगी जिले के राजस्व विभाग में भी देखने को मिल रही हैं। यहां जिले में सकरी क्षेत्र में एक राजस्व निरीक्षक लम्बे समय से पदस्थ हैं, लिहाजा अधिकारीयो के विश्वास पात्र भी हो गए हैं,अब उक्त राजस्व निरीक्षक रिटायरमेंट की आयु में आ गए है तो सेवानिवृत्त होने से पहले अपने पटवारी बेटे का काकस विभाग में तैयार कर रहें हैं, उन्होंने अपने बेटे को नौकरी की शुरुवात में ही शहरी एरिया में पोस्टिंग दिलवा दी हैं,जहा पोस्टिंग के लिए विभाग में सालों चप्पल घिसने पड़ जाते हैं,वहां पिता की विभाग में विश्वसनीयता के चलते अधिकारियों ने आँखे मूंद कर शहरी क्षेत्र में पटवारी बेटे को पोस्टिंग दे दी हैं। क्योकि पिता की विभाग में दी गई सेवा और उनसे मिले मेवा से राजस्व अधिकारी अच्छी तरह वाकिफ हैं, इसलिए उनके बेटे पर भी बिना परखे हुए अधिकारी आँख मूंद कर विश्वास कर रहें हैं।