‘मुंह फट’

‘रवि शुक्ला’

सरगुजा के रेट गिरे..

सारी दुनिया को पता है कि तबादला लेनदेन के बाद ही होता है अब तबादला कोई चीज तो है नहीं जिसका दाम फिक्स हो जहां जिसकी जहां जितनी पुलिसिंग, जब जितना माल उतना दाम तय किया जाता है। बिलासपुर रायपुर कमाने खाने वाली जगह है यहां पर पुलिस विभाग में तबादले का रेट सबसे ज्यादा है।

क्योंकि यहां तो आम के आम गुठलियों के दाम भी मिलते हैं, हैरत की बात है सबसे कम दाम बस्तर के बाद सरगुजा का चल रहा है यहां कोई जाना नहीं चाहता कौन दाऊ और बाबा के पचड़े में पड़े। एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई पता नहीं ढाई साल में किसकी बारी आई, काम करें तो मुश्किल इससे अच्छा दूर ही रहो सरगुजा से,आलम तो ये है कि जो पुलिस अफसर सरगुजा रेंज में पदस्थ वो वहां से निकलने के जुगाड़ में है दूसरी तरफ बाकी जगहों से कोई सरगुजा जाना भी नही चाहता भले इससे अच्छा लूप लाइन में नौकरी करना पसंद करेंगे।

जेल का धंधा..

प्रदेश में भले ही कांग्रेस की सरकार लेकिन सेंट्रल जेल में आज भी भाजपाई ही मजे कर रहे हैं,असल में यहां कांग्रेसी अपने पैर ही नहीं जमा पाए हैं अब ज्यादा क्या बचा है। साल 2 साल में क्या कर पाएंगे भगवान ही मालिक है। पूरा दाना पानी जेल अधीक्षक की कुर्सी से बंधा होता है और यह की कुर्सी प्रभार पर चल रही थी अब प्रभार वाद से छुटकारा मिला और ऊपर वाले ने कांग्रेसियों की सुन ली।

नतीजा जेल में प्रभार वाद खत्म हो गया और नए जेल सुपरीटेंडेंट तैनात हो गए है। इसके बाद भी कांग्रेस के मंत्री, विधायक और संतरी किसी के भी चमचे यहां पांव नहीं जमा पा रहे हैं। स्टेशनरी का धंधा नहीं जमा, अनाज सब्जी के अलावा छोटा-मोटा टेंडर भी नहीं मिल पा रहा है। बेचारे सेंट्रल जेल के चक्कर काट अब चिड़चिड़े से हो गए है।

महंत की नाराजगी..

कांग्रेस में लोकतंत्र और समाजवाद के लिए कोई जगह नहीं है इसमें जिसको मौका मिला वह चौका छक्का मार दिया,नहीं मिला तो ब्रह्मचारी, अब महंत कह लो चाहे बिल्ली के भाग्य से कह लो छींका तो दाऊ खेमे के नाम ही टूटा है। उन्होंने निगम में अपने आदमी भर लिए महंत खेमे की एक न चली तो कहते हैं डॉक्टर स्पीकर ने मोर्चा खोल दिया है, और ढाई-ढाई साल वाले बारूद में तीली दिखा दी है।

भाग्य से सत्ता पाए इन कांग्रेसियों को कौन समझाए कि महंत जी गुड़ाखू घिस-घिस के परिपक्व नहीं हुए उनकी रगों में पुश्तैनी सियासत दौड़ रही है, डॉक्टर महंत की अनसुनी करना और आज के दौर में पंगा लेना किसी को भी भारी पड़ सकता है क्योंकि उनके कट्टर प्रतिद्वंदी जोगी जी भी अब नहीं रहे।

राजस्व विभाग पर भारी, पूर्व गुलाबी गमछा धारी..

गुलाबी गमछा छोड़ कर हाथ के छत्र छाया में आने वाले नेता को जम कर प्रतिसाद मिल रहा हैं और अपने खानदानी व्यापार में भी सरकार में अपने रसूख का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही वजह हैं कि राजस्व अधिकारियों ने भी नियमो से परे जा कर काम करने को ले कर अपनी आँखें मूंद ली हैं और जनता ठगी जा रही हैं।

ताजा मामला यह हैं कि नेता ने दो माह पूर्व एक जमीन का डायवर्शन करवाया हैं, डायवर्शन आदेश में स्प्ष्ट लिखा हुआ है कि उक्त खसरा नम्बर की टुकड़ो में रजिस्ट्री नही हो सकेगी,पर नेता ने डायवर्शन होते साथ नियम व शर्तों को किनारे करते हुए दो रजिस्ट्रियां भी करवा ली और अब नामांतरण के लिये प्रकरण लगवा दिया हैं। नेता के खेल भी निराले हैं, उन्होंने बाजू के खसरा की जमीन की रोड भी पहले खसरे में दर्शा दी हैं। गुलाबी गमछा त्यागने के बाद अब नेता का जलवा इतना है कि एसडीएम के आदेश का उल्लंघन करके जब वो रजिस्ट्रियां करवा सकते हैं तो नामतांतरण रोकने की बिसात तहसीलदार कैसे कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री गौठान योजना से नही मिला आश्ररा..

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी योजना का जिले में बुरा हाल है, पिछले साल तखतपुर के मेड़पार में गौठान में अव्यवस्थाओ के चलते कई गायों की मौत हो गई थी।यह स्थिति तब है जब मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार बिलासपुर जिले से आते हैं और माना जाता हैं कि जिस योजना के तहत गौठान संचालित होते हैं, मतलब नरवा गरुवा,घुरूवा आउ बारी उन्ही के दिमाग की उपज है।

उसके बाद भी मेड़पार जैसी घटना होना दुर्भाग्य जनक हैं।मेड़पार की तरह हाल बिल्हा ब्लाक के मटियारी ग्राम पंचायत का भी हैं, जहा खेतो में बुआई शुरू होने के साथ जानवरो से चराई रोकने के लिए गांव के ग्रामीणों ने अपने अपने जानवरो को तो घरों में कैद कर लिया पर आवारा घूमने वाले कई मवेशियों को पकड़ कर गांव के मंगल भवन में बंद कर दिया गया हैं। जहा चारा पानी के अभाव में एक बछड़े की मौत भी हो गई और बाकियों का भी बुरा हाल है। खास बात यह हैं कि ऐसा कोई लिखित आदेश से नही बल्कि बिल्हा जनपद सीईओ के मौखिक आदेश पर से किया जा रहा हैं और यदि तखतपुर के मेड़पार की तरह कोई अप्रिय घटना घटित होती हैं तो सरकार के लिए घटना की जिम्मेदारी तय करना मुश्किल हो जाएगी, क्योकि सब कुछ मौखिक हैं कागजो पर कुछ भी नही।

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