शेम शेम: पत्रकारिता की आड़ में अपराधियों की सरपरस्ती,जटिलो का कुनबा और पर्सनल बदले की डायरी, पढ़िए.

  ये जो खबर है हो सकता है बहुतियाओं को पढ़ने में अच्छी न लगें उनमें से ऐसे भी होंगे जिन्हें मिर्च का टेस्ट आ जाए लेकिन जो सच सामने आ रहा है उसमें बड़ी गंभीरता से एक लेखक कहते हैं कि “पत्रकारिता की आड़ में अपराधियों की सरपरस्ती हो रही है... शांत और अफसरशाही में लोकप्रिय चांपा से विशेष रिपोर्ट सामने आ रही है। कड़वा मगर सच है कि सोशल मीडिया के इस जमाने में जितनी पत्रकारिता सरल हो गई है उससे कही ज्यादा जटिलो का कुनबा बढ़ गया है। लेखक अपनी पूरी बात कहते हैं कि. चांपा थाना क्षेत्र में हाल ही में नशीली सिरप और टेबलेट की भारी खेप पकड़ने के बाद, पुलिस की तेज़ और निष्पक्ष कार्यवाही की पूरे क्षेत्र में सराहना हो रही है। लेकिन कुछ लोगों की आंखों में यह सच्चाई चुभ रही है—खासकर कुछ ऐसे वेब के तथाकथित पत्रकारो को, जिसकी न तो पत्रकारिता की कोई डिग्री है, न ही नैतिकता की बुनियाद और न हो किसी संस्था और गुरु की सीख. हाल ए चांपा से सूत्रों के अनुसार, इन्हीं पत्रकारों का गैंग एक एनडीपीएस मामले में आरोपी के पक्ष में थाने में सिफारिश करने का दुस्साहस कर बैठे। लेकिन जब पुलिस ने कानून को प्राथमिकता देते हुए भारी मात्रा में नशीली सिरप जब्त की और आरोपी को सलाखों के पीछे भेज दिया, तब से उनके मन में पुलिस के खिलाफ निजी द्वेष की ज्वाला धधक रही है।

 अब यह पत्रकार अपने वेब पोर्टल को “पर्सनल बदले की डायरी” समझकर पुलिस पर अनाप-शनाप, मनगढंत और तथ्यहीन आरोप लगाकर सस्ती वाहवाही लूटने में लगे हैं। यह वही हैं जो अपनी ‘क्लीन इमेज’ को कैमरे के पीछे अपराधियों की चुपचाप सिफारिश करके दागदार कर चुके हैं।
  अब सवाल तो खड़े होंगे कि.. • क्या पत्रकार का काम आरोपियों के लिए सिफारिश करना है? • क्या यह पत्रकारिता है या फिर अपराधियों का प्रचार विभाग? पुलिस की दूसरी कार्रवाई में जब एक अन्य आरोपी से भारी मात्रा में नशीली दवाएं जब्त हुईं, तो वही पत्रकार फिर तिलमिला उठा। चुपचाप अपराधियों की ओर से खड़ा होकर पुलिस के खिलाफ अपने ‘की-बोर्ड शस्त्र’ से हमला करने लगा। पुलिस सूत्र कहते हैं कि यह कोई पहली बार नहीं है जब उक्त पत्रकार ने अपने “तथाकथित पत्रकारिता” के नाम पर अपराधियों को बचाने का प्रयास किया है। ऐसे लोगों को न पत्रकारिता का सम्मान है, न समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी। ये वही लोग हैं जो कलम की ताकत को बेचकर अपराधियों के हक़ में अदालत लगाते हैं—अपने लैपटॉप पर। अब जनता को सोचना होगा. क्या ऐसे पत्रकार समाज के लिए घातक नहीं हैं? क्या इनके वेब पोर्टल अपराधियों की शरणस्थली नहीं बनते जा रहे हैं? पत्रकार का काम सवाल पूछना होता है, सिफारिश करना नहीं। लेकिन जब पत्रकार अपराधियों के लिए बात करने लगें, तो समझिए वह सिर्फ पत्रकार नहीं—‘पेड रिपोर्टर’ है।





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