‘OMG’ की खास पड़ताल, जेल सुधार नही यातना गृह क्रमशः 10-लाइब्रेरी में पुस्तके 5 साल में नही खरीदी, सरकारी फंड जेब मे.

बिलासपुर. सेंट्रल जेल को सुधार गृह से यातना गृह में बदलने वाले अफसरी गिरोह की एक और अजीबोगरीब करतूत का खुलासा हुआ है। ‘OMG NEWS NETWORK’ की पड़ताल में पता चला है कि कैदियों के लिए आना वाला लाइब्रेरी फंड भी अफसरों की जेब मे पहुच रहा है और पुस्तकें बीते पांच साल से नही खरीदी गई है। धूल खाती, दीमक लगी पुरानी पुस्तकें अब पढ़ने के काबिल भी नहीं रही।

‘OMG NEWS NETWORK’ बनाम एक कैदी कहता है कि जेल के भीतर जेल के अफसरों की हुकूमत बड़ी चतुराई से चलती है, आरोप है कि जेल के अंदर आने के बाद चाहे कुछ भी जेल के अफसरी गिरोह का काला साया उस पर पड़ जाता है। जैसे तैसे भी हो भर-भर मोटी रकम से बस जेब भरना चाहिए। अब इस अफसरी गिरोह की एक अजीबोगरीब करतूत ही सुन लीजिए, जेल की लाइब्रेरी की कहानी बनाम कैदी की जुबानी, खामोश रहकर सादगी का ढोंग करने वाले जेल अधीक्षक एस एस तिग्गा और जेलर आर आर राय जो अपने फायदे के लिए कभी भी अफसर गिरोह की पार्टी बदल लें इनका ही बोल बाला है,दोनो अफसरों के गुर्गे (जिनमें जेल स्टाफ और उनके नीचे का करने वाले सजायाफ्ता कैदी शामिल है) सारा खेल करते है।

जेल की अफसरी गिरोह ने तो कैदियों की लाइब्रेरी में भी अपना कब्जा जमा रखा है और किसी दीमक की तरह किताबों के फंड को चट कर सरकार को चूना लगा रहे है। बीते पांच साल से एक भी नई किताब जेल प्रबंधन ने नही खरीदी है जिन कैदियों को पढ़ने का शौक है वो पुरानी किताबो को पढ़- पढ़ के एक तरह की अलग कैद पा रहे है,कैदी ने बताया कि कैदियों की सुनने वाला तो कोई है नही तो क्या करें, पढ़ी हुई किताबों को बदल -बदल कर पढ़ अपना मन भरते है।
ऐसा नही है कि जेल के लिए सरकार द्वारा फंड नही दिया जाता जो भी आता है सरकार के सारे फंड जेल का अफसरी गिरोह डकार जाता है फिर लाइब्रेरी में किताबों के फंड से क्या लेनादेना, सब कुछ कागजों में दिखा मोटी रकम सरकार से मंगाई जाती है और फिर सारा माल जेल के अफसरी गिरोह की जेब मे.

जेल के हेड साहब एंड टीम.

कैदी ने आरोप लगाया कि जेल में जातिवाद का कार्ड खेला जाता है। अपने खास इंतजाम अली को सारा कामकाज सौप कर जेल के अफसर बाकी के मैनेजमेंट में लग जाते है। कैदियों की देखरेख से ज्यादा तो उनकी नजर तोड़ी-बोड़ी पर रहती है। अब बात करते है जेल में बाहर से लेकर भीतर तक के चार पहरेदारओं की,जो मुलाकात से लेकर हर काम के एवज में पैसे लेते है, आनंद ध्रुव मुख्य प्रहरी (चीफ साहब),कुसुम लकड़ा,वेदराम टंडन और भूपेंद्र सिंह ध्रुव (तीनो प्रहरी) अभी जेल की अफसरी की सारी कारगुजारियों की जिम्मेदारी इनके कंधो पर है।

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