रायपुर। दूसरे चरण के चुनाव में दुर्ग संभाग की 12 सीटों पर मतदान 17 नवंबर को है. संभाग की 8 सीटों पर चुनाव 7 नवंबर को हो चुका है. जिन 12 सीटों पर चुनाव है उनमें कांग्रेस को 2018 में 11 सीटों पर जीत मिली थी. 1 सीट वैशाली नगर ही भाजपा जीत पाई है. दुर्ग संभाग बहुत ही हाई-प्रोफाइल संभाग है. इस संभाग से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, पंचायत मंत्री रविन्द्र चौबे, पीएचई मंत्री गुरु रुद्रकुमार, मंत्री अनिला भेंड़िया, सांसद विजय बघेल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय, जोगी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी जैसे नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है.
सामाजिक समीकरणों की बात करे तो 12 में 2 एसटी और 1 एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीट हैं. शेष 9 अनारक्षित सीटों में-
कांग्रेस से ओबीसी वर्ग में ( 2 कुर्मी, 1 साहू, 1 कलार, 1 निषाद, 1 यादव) हैं. सामान्य वर्ग में ( 2 ब्राम्हण और 1 पंजाबी) हैं.
भाजपा से ओबीसी वर्ग में ( 3 साहू, 2 कुर्मी, 2 यादव, 1 सेन ), सामान्य वर्ग में ( 1 ब्राम्हण) हैं.
पाटन (अनारक्षित सीट)- इसी सीट में मुख्य मुकाबाला भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच है. लेकिन अमित जोगी ने चुनाव लड़कर पाटन मुकाबला दिलचस्प बना दिया है.
कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल देश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री में से एक हैं. कांग्रेस के दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे. तेजतर्रार नेता के तौर पर चर्चित हैं. ठेठ छत्तीसगढ़िया और किसान नेता के रूप में भी लोकप्रिय हैं. राहुल और प्रियंका गांधी के विश्वनीय नेता हैं. कांग्रेस के सबसे प्रमुख स्टार प्रचारक हैं. 5 बार के विधायक हैं. 6वीं बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल से मुकाबला है. विजय बघेल एक बार विधायक और एक बार के सांसद हैं. राजनीति के शुरुआती दौर में कांग्रेस में रहे हैं. निर्दलीय नगर पालिका अध्यक्ष रहे हैं. बाद में एनसीपी में भी कुछ समय तक रहे. 2003 में एनसीपी से चुनाव लड़े थे, हार गए थे. एनसीपी छोड़ भाजपा में शामिल हुए. 2008 में भाजपा की टिकट पाटन से लड़े और भूपेश बघेल हराकर पहली बार विधायक बने थे. 2013 में विधानसभा चुनाव हार गए थे. 2018 में टिकट नहीं मिली. 2019 में दुर्ग लोकसभा लड़े और जीते. 2023 में चुनाव में भाजपा ने घोषणा-पत्र संयोजक बड़ी जिम्मेदारी दी. पाटन से एक बार फिर भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
अमित जोगी- पाटन से सीट से इस बार अमित जोगी भी चुनाव लड़ रहे हैं. अमित जोगी जेसीसीजे के प्रदेश अध्यक्ष हैं. स्व. अजीत जोगी के बेटे हैं. 2013 में मरवाही से विधायक रहे हैं. 2018 में चुनाव नहीं लड़े थे. जाति विवाद के बाद एसटी सीट में लड़ने से वंचित हो चुके है. एससी वोटों में जोगी की पकड़ रही है, उसी वोट में सेंधमारी की कोशिश है.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक भूपेश बघेल मजबूत हैं.
दुर्ग ग्रामीण (अनारक्षित सीट) – यह सीट 2008 में परसीमन के बाद बना है. इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. लेकिन 2013 में कमल भी खिल चुका है.
कांग्रेस प्रत्याशी ताम्रध्वज साहू- भूपेश सरकार में गृहमंत्री हैं. चार बार के विधायक हैं. एक बार दुर्ग से सांसद रहे हैं. कांग्रेस ओबीसी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं. छत्तीसगढ़ में साहू समाज के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं. 2013 में एक बार बेमेतरा से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं.
भाजपा प्रत्याशी ललित चंद्राकर से मुकाबला है. ललित चंद्राकर जिला महामंत्री हैं. सामाजिक रूप से सक्रिय हैं. कुर्मी समाज के बड़े नेताओं में से एक हैं. युवाओं के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस का पलड़ा भारी है.
दुर्ग शहर (अनारक्षित सीट)- इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. लेकिन भाजपा का कमल भी यहां हर 5 साल में खिलता रहा है. यह अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार के मुख्यमंत्री रहे स्व. मोतीलाल वोरा का इलाका है.
कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा- स्व. मोतीलाल वोरा के पुत्र हैं. 3 बार के विधायक हैं. 3 बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. सहज-सरल नेता के तौर पर लोगों के बीच लोकप्रिय हैं.
भाजपा प्रत्याशी गजेन्द्र यादव से मुकाबला है. गजेन्द्र यादव संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं. आरएसएस के प्रांत प्रचारक रहे बिसराराम यादव के बेटे हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला बराबरी का है.
भिलाई नगर (अनारक्षित सीट)- इस सीट पर विधायक बदलने की परंपरा रही है. एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस को जीत मिलती है.
इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी प्रेम प्रकाश पाण्डेय पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हैं. रमन सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में भी मंत्री रह चुके हैं. चार बार विधायक रहे हैं. 2008 और 18 में चुनाव हार चुके हैं. सातवीं बार चुनावी मैदान में हैं.
कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र यादव से एक बार फिर मुकाबला है. विधायक देवेन्द्र यादव दूसरी बार चुनाव लड़ रहा है. देवेन्द्र भिलाई नगर का महापौर भी रहा है. युवा नेता हैं. लेकिन ईडी केस में फंसे हुए भी हैं.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला बराबरी का है.
साजा (अनारक्षित सीट)- बेमेतरा जिले में कांग्रेस का गढ़ है यह सीट. इस सीट पर चौबे परिवार का ही कब्जा रहा है. बिरनपुर साम्प्रदायिक हिंसा के बाद देशभर की नजर इस सीट पर है. भाजपा हिंसा पीड़ित परिवार के सदस्य को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है.
इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र चौबे भूपेश सरकार में पंचायत एवं शिक्षा मंत्री हैं. 7 बार के विधायक हैं. 2013 में एक बार चुनाव हार चुके हैं. 9वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. नेता-प्रतिपक्ष भी रहे चुके हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश समय से कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं.
भाजपा प्रत्याशी ईश्वर साहू से मुकाबला है. ईश्वर साहू का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है. बिरनपुर साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ित हैं. मृतक भुवनेश्वर साहू के पिता हैं.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मंत्री चौबे को कड़ी टक्कर मिल रही है.
नवागढ़ (एससी आरक्षित सीट) – बेमेतरा जिले की आरक्षित सीट है. भाजपा का गढ़ इसे कहा जाता है. राज्य बनने के बाद चार चुनावों में 3 बार भाजपा जीती है.
इस सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायक को बदलकर मंत्री गुरु रुद्रकुमार को उम्मीदवार बनाया है. गुरु रुद्र भूपेश सरकार में पीएचई मंत्री हैं. दो बार के विधायक हैं. 2013 में आरंग सीट से चुनाव हार चुके हैं. 2018 में अहिवारा से लड़े थे. अब 2023 में फिर से सीट बदलकर नवागढ़ से लड़ रहे हैं. छत्तीसगढ़ के संत गुरु घासीदास के वंशज हैं. सतनामी समाज के धर्मगुरु हैं.
भाजपा प्रत्याशी दयालदास बघेल से मुकाबला है. दयालदास बघेल रमन सरकार में मंत्री रह चुके हैं. 2003 से 18 तक लगातार तीन बार विधायक रहे. 2018 में चुनाव हार गए थे. पांचवीं बार फिर चुनाव मैदान में हैं.
स्थानीय जानकारों के मुताबिक मुकाबला 50-50 का है.
डौंडीलोहारा (एसटी आरक्षित सीट)- यह बालोद जिले की आरक्षित सीट है. इसे कांग्रेस का गढ़ भी कहा जाता है. इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी अनिला भेंड़िया- भूपेश सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं. लगातार दो बार की विधायक हैं. तीसरी बार चुनावी मैदान में हैं. सहज-सरल स्वाभव की महिला नेत्री के तौर पर लोकप्रिय हैं. भाजपा प्रत्याशी देवलाल ठाकुर से मुकाबला है. देवलाल पहले कांग्रेस रहे हैं. 2018 में कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़ चुके हैं. अब भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस में रहते हुए बालोद जिला पंचायत के अध्यक्ष भी रहे हैं. स्थानीय जानकारों के मुताबिक कांग्रेस मजबूत है.