छत्तीसगढ़ में चुनावी साल में सर्व आदिवासी समाज और ओबीसी महासभा के मिलकर चुनाव लड़ने के ऐलान कर चुके हैं. इस ऐलान के बाद दूसरे राजनीतिक दलों में हलचल मची हुई है. 15 साल सुशासन और विकास के दावों के बीच ये ऐलान बताने के लिए काफी है कि चाहे सर्व आदिवासी समाज हो या फिर ओबीसी वर्ग दोनों सरकार से नाराज होकर चुनावी ताल ठोके हुए हैं.
राजधानी रायपुर में दोनों वर्गों ने गठबंधन कर संयुक्त मोर्चे का गठन किया और प्रदेश की 90 में से 49 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. इसके बाद राजनीतिक दलों की धड़कनें तेज हो गई हैं. क्योंकि प्रदेश में सबसे ज्यादा ओबीसी वोटर करीब 47 प्रतिशत और आदिवासी वर्ग से 31 प्रतिशत हैं. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम, समाज के नेता सोहन पोटाई और ओबीसी महासभा के अध्यक्ष सगुनलाल वर्मा ने बताया कि संयुक्त मोर्चा के बैनर तले समाज के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे. क्योंकि राष्ट्रीय दल समाज के हित के लिए काम करने में असफल साबित हुए हैं.
एसटी व ओबीसी महासंघ के इस ऐलान के बाद अब कांग्रेस और भाजपा के नेता समाज प्रमुखों को साधने में जुट गए हैं. यह बात अलग है कि बीजेपी इसे लोकतंत्र में अधिकार और कांग्रेस ऐसे गठबंधन का स्वागत और जोगी कांग्रेस के नेता कोई फर्क ना पड़ने की बात कह रहे हैं. लेकिन भीतर खाने मचे हलचल से साबित होता है कि दोनों ही वर्गों के मिलने से राजनीतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं