रायपुर। कहते हैं कि मरने के बाद भी सुकून नहीं. ऐसा ही कुछ 62 साल के जब्बार सिंह, 31 साल के पंकज और 43 वर्षीय दुकलहीन बाई के साथ हुआ है. इन तीनों की मौत कोरोना काल की पहले दौर में हो गई थी, लेकिन लापरवाह कहें या मुर्दा सिस्टम की वजह से बीते चार सालों से अंबेडकर अस्पताल में मर्च्यूरी में पड़े-पड़े इनकी लाशें कंकाल में तब्दील हो गई हैं.
राजधानी के अंबेडकर अस्पताल की मर्च्यूरी में तीन लाशें ऐसी पड़ी हैं, जिन्हें बीते चार सालों में किसी ने भी हाथ नहीं लगाया है. इन लाशों का कोई वारिशान नहीं मिला, जो कोरोना प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार अंतिम संस्कार के लिए अनुमति प्रदान करता. लिहाजा, समय के साथ पीपीई किट में पड़े-पड़े तीनों लाशें आज कंकाल में तब्दील हो चुकी हैं. इन तीन लाशों में से दो लाश निजी अस्पताल से भेजे गए थे, वहीं एक लाश अंबेडकर अस्पताल में भर्ती मरीज की ही है, जिसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी.
इन लाशों के अंतिम संस्कार के लिए अस्पताल प्रबंधन की ओर से पहली बार जून 2021 को पत्र लिखा गया था. सालभर तक कोई जवाब नहीं आया, जिसके बाद अगस्त 2022 को फिर से पत्र लिखा गया, फिर भी प्रशासन की नींद नहीं खुली. इसके बाद जनवरी 2023 को फिर पत्र लिखा गया. इस बार भी जिम्मेदार अधिकारी को होश नहीं आया. अब एक बार फिर अस्पताल प्रबंधन पत्र लिखने की तैयारी में है.