किशोर सिंह..
मैं सपनों का सौदागर हूं ,और सपने बेचता हु। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी की यह बात आज उनके स्वर्गवास के आज 29 मई को 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी सच साबित हो रही है। उनका सपना आज़ बड़े रूप में साकार होने ज़ा रहा है। उन्होंने दूरस्थ ग्रामीण अंचल, वनांचल और मजरा -टोला में स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए मितानिन की नियुक्ति की कल्पना की थी । अब वह दिन भी आ गय़ा ज़ब मितानिनों को नर्स पद पर नियुक्ति दी ज़ा रही है। छत्तीसगढ़ की मौज़ूदा सरकार ने इसके लिए विज्ञापन भी ज़ारी कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अज़ीत जोगी ने ही मितानिनों की नियुक्ति की थी और उसे पूरे प्रदेश में लागू किया था। इतना ही नहीं इस योजना को यूरोपीय यूनियन ने भी सराहा और आर्थिक सहायता भी दी। उसके बाद केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने इसे अंगीकार करते हुए पूरे देश में लागू किया। जिसे आशा वर्कर का नाम दिया गया। छत्तीसगढ़ सरकार ने 24 मई 2021 को 4 जिलों में स्टाफ नर्स नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया है । रायपुर, बिलासपुर , बस्तर और सरगुजा शामिल है । जिसमें की 267 पदों पर स्टाफ नर्स की भर्ती की जाएगी । इन पदों में भर्ती के लिए मितानिनों को भर्ती दी जाएगी । वर्तमान में पूरे देश में सबसे अधिक मितानिन छत्तीसगढ़ में ही कार्यरत हैं । इनकी संख्या लगभग 68, 000 है। यह मितानिने महिलाओं की स्वास्थ्यगत समस्याएं, पोषण व खाद्य सुरक्षा , बच्चों का विकास, महिलाओं के अधिकार, टीकाकरण, स्वास्थ्य जागरूकता सहित सभी प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सा का कार्य करती हैं। सही मायने में यह मितानिनें स्वास्थ्य विभाग की आखिरी जमीनी कड़ी के रूप में कार्य करती हैं । जो बहुत ही संवेदनात्मक रूप से लोगों से जुडी रहती हैं। निश्चित रूप से। मितानिनो की नर्स पदों पर नियुक्ति से उनके वर्षों तक काम करने का तजुर्बा और व्यवहारिक ज्ञान का लाभ सभी को मिलेगा। उनके बेहतर कार्य को देखते हुए सरकार ने समय-समय पर उनके वेतन मानदेय में वृद्धि की। इस नियुक्ति के बाद उन्हें एक बहुत ही सम्मानजनक वेतन मिलेगा, और वह एक बेहतर जीवन यापन का स्तर व्यवस्थित कर सकेंगे।
अजीत जोगी ने अपनी आत्मकथा सपनों के सौदागर में लिखा है कि ” मैंने अपने आदिवासी अंचल के गांव में अनुभव किया था, कि ऐसे हर गांव में अनेक छोटे-छोटे मजरा टोला होते हैं। मेरे ही मरवाही विधानसभा क्षेत्र में उषाढ ग्राम में ऐसे 23 मजरा टोला हैं । इन गांव के मजरा टोला में कोई स्वास्थ सुविधा उपलब्ध नहीं थी,।
गैर आदिवासी गांव में भी अलग-अलग कई छोटे-छोटे मोहल्ले हैं, और उनके लिए भी अलग कोई तत्काल मिलने वाली प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा नहीं है । विशेषकर इन मोहल्लों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी उचित मार्गदर्शन के लिए कोई उपलब्ध नहीं होते । पृष्ठभूमि को देखते हुए हमारी सरकार ने निर्णय लिया, कि हम गांव के ऐसे मजरा टोला या मोहल्लों में वही के लोगों से परामर्श करके चुने हुए किसी सक्रिय और साक्षर महिला को चुनेंगे। उन सब को एक महीने का त्वरित और प्राथमिक स्वास्थ्य से संबंधित तात्कालिक व्यवस्थाओं के संबंध में अच्छा प्रशिक्षण दिया जाएगा । हमारा उद्देश्य था , कि वह चिकित्सा नहीं करेंगे पर अपने अपने क्षेत्रों के हर घर में घूम- घूम कर चिकित्सा के लिए सही और उपयोगी परामर्श देंगे। प्रशिक्षण के बाद पहले कुछ जिलों और हमने इसे पूरे प्रदेश में लागू किया । इस प्रशिक्षित महिलाओं को मितानिन का नाम या। संयोग से न जाने कैसे यूरोपीय यूनियन को इस अभिनव कार्यक्रम की जानकारी मिली।
उन्होंने सर्वेक्षण कराकर इसे बहुत उपयोगी माना। समय केंद्र के स्वास्थ विभाग को भी अभिनव प्रयोग की जानकारी मिली। उन्होंने भी स्वास्थ विभाग के अधिकारियों के साथ कार्यक्रम को विस्तार से समझने के लिए दिल्ली बुलाया। केंद्र सरकार ने इसे अत्यंत उपयोगी और उचित पाकर पूरे राष्ट्र में लागू करने का फैसला लिया। भारत सरकार ने इस योजना का नाम परिवर्तित कर आशा वर्कर रखा , मेरे विशेष आग्रह पर छत्तीसगढ़ में आप भी वही मितानिन कहलाता है” अजीत जोगी लिखते हैं , कि मेरे मितानिन कार्यक्रम को पूरे राष्ट्र में आशा के नाम से स्वीकार किया गया। इससे बड़े आत्मसंतोष की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है।