‘ मनोज शर्मा ‘
बिलासपुर. चुनाव भी बड़ी गजब चीज है, इसके लिए मिलने वाली टिकट अच्छे-अच्छों को नाच नचा देती है। नेता भले साढ़े चार साल तक पब्लिक को अपनी अंगुली पर नचवाए पर आखिरी के 6 माह में वोट के लिए उन्हें भी नाचना पड़ता है। वैसे भी अपने यहां लोकतंत्र को उत्सव के रूप में मनाया जाता है तो गाना बजाना तो बनता है। बिलासपुर जिले में मंत्री कद की नेताइन का डांस देखकर तखतपुरिहा पब्लिक को कोई ताना नहीं मारना चाहिए। बिल्कुल नहीं पूछना चाहिए की डांस करके कांग्रेस आलाकमान को सोशल मीडिया में टैग करके क्यों दिखाया जा रहा है।
अरे भाई एक अदद टिकट का ही तो सवाल है। एक बार मिल जाए तो बस, फिर क्या कहने। मेहनत में कहीं कोई कमी नहीं है। इधर नेताइन डांस कर रही हैं और उधर गणेश उत्सव में पति महोदय ढोल ताशा बजा रहे हैं। इतना सब कुछ पब्लिक को रिझाने के लिए ही तो कर रहे हैं। भला इतनी मेहनत कोई परिवार करता है क्या। केन्द्र के भाजपाई आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव मना चुके है तो कांग्रेसी भी मुकाबले में पीछे कैसे रहते। इसलिए ‘अब की बार 75 पार’ का फार्मूला ले आए। भरोसा यात्रा में नेताइन भी डांस करके इसका उत्सव मना रही हैं तो बताओ इसमें कुछ गलत है क्या। ये तो गांव की महिलाएं कुछ समझती नहीं, साथ में डांस करने से भी कतरा रहीं हैं।
पेड़ के नीचे जाकर खुसुर-पुसर कर रही हैं कि टिकट मिली नहीं, चुनाव हुआ नहीं, रिजल्ट आया नहीं तो अभी से काहे का विधायक उत्सव। बेकार म कहत हावे, काबर अभी ले विजय जुलूस निकालत हावे। कौन और कैसे समझाए इनको कि कांग्रेस आलाकमान टिकट देने के लिए ताबड़तोड़ सर्वे करा रहा है कि किस विधायक की कितनी एंटी इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) है। ऐसे में नाच गाकर पब्लिक को मनाना और एंटी इनकंबेंसी को मैनज भी तो करना पड़ेगा ना।
तखतपुर का झंडा बिलासपुर में रहा बुलंद.
तखतपुरिहा पब्लिक वैसे भी बड़ी भोली है। नेताइन दो चार बात सुना ले या काम के लिए जाने पर झिड़क दे तो भी वह बुरा नहीं मानती। क्योंकि वह जानती है कि नेताइन दंपती के भरोसे ही साढ़े चार साल तक तखतपुर का झंडा बिलासपुर में बुलंद रहा है। नेता दंपती की पकड़ कांग्रेस में ऊपर तक है, किसी की बखत नहीं की कोई उनकी टिकट काट दे। इसलिए पब्लिक को नसीहत है कि कायदे में रहो तो फायदे में रहोगे और सब उत्साह से बोलो ‘मिलेगी दुल्हनियां को टिकट तो बाबू बजाएंगे बाजा.
निशाना भले ही कमल पर लड़ेंगे कांग्रेसी.
पता नहीं किसने भाजपा को ज्ञान दिया कि उसने श्रेष्ठ विधायक को मुकाबले में उतारने का मन बनाया है। उनका निशाना भले ही कमल होगा पर लड़ेंगे तो कांग्रेसी ही। इसी वजह से कांग्रेस आलाकमान की सीधी नजर तखतपुर पर है। मंत्री कद की नेताइन की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। वैसे भी तखतपुर कांग्रेस में पहले से रायता फैला हुआ था, चुनाव से पहले समेट भी लेते लेकिन अब तो फैले रायते में और दही पड़ गया है।
बात महिला सम्मान की.
पूरे देश में 33 फीसदी महिला आरक्षण की बात हो रही है तो ऐसे में नेताइन को तो टिकट मिलना ही चाहिए। भले वो जीते या हारे पर महिला सम्मान की बात है। चलो मान भी लो कि महिला प्रत्याशी रिपिट करने से नुकसान होगा तो विधायक पति को प्रमोट करके विधायक की टिकट मिलना ही चाहिए क्योंकि वे भी तो बाजा बजा कर मेहनत कर रहे हैं। कोई नहीं कहेगा कि यह भाई भतीजावाद है। घर की टिकट घर में ही रह जाएगी, कार्यकर्ताओं का क्या है वो तो पहले भी दरी बिछाता था अब भी बिछा लेगा। फिर किसके पास है इतना पैसा जो तखतपुर का हाई प्रोफाइल चुनाव लड़ सके। इसलिए दे दो भइया टिकट दे दो, पत्नी को नहीं तो पति को दे दो।